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'जन-सिद्धान्त-भवन' के कुछ हस्तलिखित हिन्दी ग्रन्थ सम्बत अष्टादश शत जोयो और छवीस मिलावो सोयो।
मास जेठ वदि पा सारौ अन्य समापति को दिन धारौ ॥ अर्थात् स० १८२६ मे ज्येष्ठ कृष्णा अष्टमी को यह गन्थ समाप्त हुआ।
१४ चन्द्रप्रभ पुराण-इन ग्रन्थ मे सोलह अधिकार और १८१ पृष्ठ है। कविवर ने यह गन्य गुणभद्राचार्य विरचित उत्तर पुराण के आधार पर हिन्दी के विविध छन्दो मे लिखा है। इसके श्लोकों की सख्या ३००० से अधिक है। कवि की कविता के नमूने इस भाति है -
एक दिना नृप सभा मझारे, वैठे शक निहारे ।
मंत्री आदि सकल उमराव, बैठे मानो निर्जर राव ॥ पुत्र शोक का वर्णन
मूर्छा पाय धरनि पर पर्यो, मानो चेतन ही निसरो। अव कीनो शीतल उपचार, भयो चेत नृप कर पुकार। हा हा ! कुंवर गयोतू काय, तो बिनमो को कहूँ न सुहाय ।
सिर, छाती फूटे अकुलाय, सुनत सभा सव रुदन कराय ॥ पुत्र-योक का कितना स्वाभाविक चित्र कवि ने खीना है, जिने पढ कर हृदय द्रवित हो उठता है । पुन न होने का वर्णन
बिने देखि मन भया उदास, नैन नीर भर आयो जास। जो मेरे सुत होतो ये कोय, केलि करत लखि अति सुख होय । पुत्र विना सूनो ससार, पुत्र विना त्रिय पावे गार। पुत्र बिना सजन क्यो मिले, विना पुत्र कुल कैसे चले। जैसे फूल विना मकरन्द, कमल-नैन सज्ञा दृग अन्ध । पडित बिनाज्योसभा अपार, चन्द्र बिना निशि ज्योअंधियार॥
कवित्त
कमल बिना जल, जल बिन सरवर, सरवर बिन पुर, पुर विन राय । राय सचिव विन, सचिव बिना बुधि, बुधि विवेक विन को सोभा न पाय ॥ विवेक विना क्रिया, क्रिया दया विन, दया दान बिन, धन बिन दान ।
धन बिन पुरुष तथा बिन रामा, रामा विन सुत त्यो जग माहि ॥ इन पद्यो मे कवि ने नारी हृदय के भावो को सजीव ढग से चित्रित किया है । ग्रन्थकार का नाम हीरासिंह प्रतीत . होता है । इस ग्रन्य की रचना बडोत नगर में हुई है। रचना काल० '१६१२ भादो कृष्ण त्रयोदशी ।
१५ श्री गुरूपदेश श्रावकाचार-इस पथ के रचयिता प० डालूराम है । ग्रन्थ की पत्र संख्या १८३ है और वह पद्यात्मक है, जिसमे ३६ सन्धियां है । १० डालूराम जी ने विविध ग्रन्थो का पयालोचन कर इस ग्रन्थ का निर्माण किया है। अन्य का वर्ण्य-विषय प्रधानतया श्रावको का प्राचार है, किन्तु बीच-बीच मे श्रावको के चरित्र-सवधी अन्य विषयो का भी समावेश हुआ है, जिससे यह ग्रन्थ सर्वागीण सुन्दर और सुपाठ्य हो गया है। ग्रन्थ के अन्दर दोहा, चौपाई, सवैया, पद्धरि, सोरठा, अडिल्ल, कुण्डलियां, आदि छन्दो का ललित भाषा मे प्रयोग हुआ है। कही कही द्रुतविलवित जैसे सस्कृत छन्द भी दृष्टिगोचर होते है । एक नमूना -