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प्रेमी-प्रभिनदन-प्रथ
मे उनकी काव्यात्मक मनोवृत्ति का गहरा अमर है। 'गोविंदाग्रज' के नाम से गडकरी ने कविता लिखी। उसमें वायरन जैसी उत्कट भावुकता, गहरी करुणा और गहरा शृगार मिलता है। 'राजहस माझा निजला', 'गुलावी कोडे', 'मुरली', 'घुवड', 'दसरा', 'कवि अणि कैदी' आदि कई रचनाएँ अविस्मरणीय है । कही-कही ऊँची दार्शनिक उडान, कही प्रकृति का अत्यत सजीव वर्णन और कही मनोभावनायो का सूक्ष्म हृदयस्पर्शी वर्णन आपकी कविताओ में मिलता है । प्रेम निराशाजन्य कड आहट भी कई गीतो में है। अनुप्रासो की बहुत सुन्दर छटा सर्वत्र पाई जाती है।
माधुर्यप्रधान मराठी कविता की इस दूसरी धारा के तीसरे अत्यन्त कोमल कवि है अवक वापूजी ठोवरे उर्फ 'बालकवि' (१८६०-१९१८)। आपने प्रकृति-प्रेम को ही अधिक रचनाएं की है। इन्हें मराठी का मुमित्रानदन पत कह सकते है । 'सध्यातारक', 'निर्भर', 'पाऊप', 'फुलराणी', 'श्रावणमास', 'ताराराणो', 'काल अणि प्रेम' ये आपके विषय है । आपसीदर्यवादी है पौरपत जिस प्रकार 'सुदरतर मे सुदरतम' मारी सृष्टि को देखते है, वैसे ही वालकवि भी 'पानदी आनद गडे', 'इकडे तिकडे चोहिकडे', मर्वत्र आनद के दर्शन करते हैं। भारत के विषय मे वे 'देहात में एक रात' कविता में कहते है -
__ "हम्मालो का (कुलियो का) यदि कोई राष्ट्र है तो वह हिंदभूमि है । हे मन, यह दैन्य, यह दीर्वल्य देखा नही जाता। हिंदभूमि की व्यथा सहन नहीं होती।"
एकनाथ पाडुरग रेदालकर (१८८६-१९२०) मराठी मे मुक्तछद और अतुकान्त रचना के प्रथम प्रवर्तक है । आपकी रचना मे स्वाभाविकता विशेप है। 'रुक्मिणी पत्रिका', 'कृष्णा', 'वसत', 'उजाड मैदान', 'गिधाड' आदि आपको प्रसिद्ध रचनाएँ है । परतु 'प्रसाद' के आंसू की भाति आपकी रचनायो में करुणरस की एक अन्तर्धारा सतत प्रवहमान है। यदि माधुर्य तावे और गोविंदाग्रज मे मिलता है तो प्रसाद गुण बालकवि और रेदालकर मे । वचा हुआ प्रोजगुण वा० विनायक दामोदर सावरकर-जो अपने क्रान्तिकारी राजनैतिक जीवन के कारण भारत विख्यात है-की रचनायो मे मिलता है। मावरकर के कवि को सावरकर का राजनैतिक व्यक्तित्व खा गया और मराठी माहित्य ने एक बहुत अच्छे महाकवि को खो दिया, यह खेद से कहना पडता है। 'रानफुले' और हाल में प्रकाशित उनकी सपूर्ण रचनायो मे-युगातरीचा घोप', 'जगन्नाथचा रथोत्सव', 'माझे मृत्युपत्र', 'सागरा, प्राण तलमलला', 'सप्तपि' आपकी ऐसी रचनाएं है जो विश्व साहित्य में गर्व का स्थान प्राप्त कर सकती है। 'वैनायक' तथा 'कमला' नामक दी खडकाव्य भी आपने लिखे है। आपकी प्रतिभा 'क्लासिक' अथवा 'आभजात्य' लिये हुए है। आप 'महासमर' नामक एक और काव्य लिख रहे थे। वह पता नही, अभी पूरा हुआ या नहीं।
प्रथमोत्थान मे जहाँ रूढियो के प्रति अनावश्यक मोह अथवा निर्भयता की अतिरेकपूर्ण वृत्ति प्रदर्शित हो रही थी, द्वितीयोत्यान में अग्रेजी रोमेंटिक कवियो की भाति एक प्रकार की ताज़गी, प्रकृति के प्रति विशेष प्रेम, जातीयता तया स्वदेशभक्ति के दर्शन होते है।
तृतीयोत्यान
तृतीगोत्यान में मुख्य हाथ पूना की 'रविकिरण मडल' नामक सात कवियो की एक मडली का रहा। उनमे प्रमुख कवि थे और है-डॉ. माधव त्र्यवक पटवर्धन उर्फ 'माधव जूलियन', यशवत दिनकर पेंढारकर उर्फ 'यशवत,' शकर केशव कानिटकर उर्फ 'गिरीश, मायदेव, घाटे आदि। 'माधव जूलियन' फारसी के प्रोफेसर थे और छदशास्त्र पर आपने ववई विश्वविद्यालय से मराठी की पहली डाक्टरेट पाई। फारसी-पद्धति के कई छद आप मराठी में लाये-रुवाई, गजलो की कई किस्में आदि। उमर खय्याम की रुवाइयो का मूल फारसी से ममश्लोकी तथा फिज्जेराल्ड के अग्रेजी अनुवाद से समश्लोकी अनुवाद मराठी में आपने प्रस्तुत किया। 'सुधारक' नामक एक व्यगपूर्ण खडकाव्य, 'विरहतरग' नामक प्रेम-प्रधान खडकाव्य, प्रगीत मुक्तको से भरा'तुटलेले दुवे' नामक दूसरा खडकाव्य केवल 'सुनीतो' में ('सुनीत' अर्थात् अग्रेजी 'सानेट' या चतुर्दशक को मराठी मे रूढ किया हुआ शब्द)