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प्रेमी-अभिनदन-प्रय __ "यद्यपि महाराष्ट्र के पढ़े-लिखे लोग देवनागरी अच्छी तरह जानते है तथापि व्यापारी लोगो में ये (मोडी) असर अधिक प्रचलित है। ये देवनागरी से प्राकृति में छोटे और रूप में कुछ भिन्न है। सख्या इन अक्षरो की देवनागरी के समान ही है। हमने इस (मोडी) टाइप का एक फाउट वनवाया है और इसमें मराठी का 'नया करार' पीर मराठी कोश छपाना शुरू किया है। ये टाइप सुन्दर, स्पष्ट और मध्यम प्राकृति के है।"
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वनिया गुजराती (पहला कॉलम) और मोडी मराठी
(दूसरा कॉलम) टाइप के नमूने पचानन की मृत्यु के बाद उसके माथ काम करने वाला मनोहर लुहार उसकी जगह काम करने लगा। मनोहर एकनिष्ठ हिन्दू था। वह अपने पाराध्य देव के सामने बैठकर ही टाइप बनाने का काम कर सकता था। अन्यत्र उसमे काम नहीं होता था। इस बात का सन १८३६ मेंरेजेम्स ने उसकी स्थिति देखकर उल्लेख किया है।
सीरामपुर मे अपने प्रेस के लिए ही टाइप नही ढाले जाते थे, बल्कि दूसरे प्रेसो के लिए भी यही से टाइप डालकर भेजे जाते थे। सन १८६० तक पूर्व में मीरामपुर को फाउडरी ही मुख्य थी।
विल्किम और पचानन हिन्दुस्तान मे मुद्रण-कला के प्राद्य प्रवर्तक है और पूर्व मे उन्होंने इसका प्रारभ किया था, परन्तु अन्य प्रान्तो में यह कला कब और कैसे फैली, खास करके भारतीय लोगो के हाथ में यह काम कव आया, इसकी जानकारी मनोरजक होगी। यद्यपिइसका पूर्ण इतिहास उपलब्ध नहीं है, तथापि जो जानकारी प्राप्य है, वह यहाँ दी जाती है।
वम्बई में सन् १८१७ ईस्वी में 'मेंट मेथ्यू का शुभ वर्तमान' नामक पुस्तक मगठी भाषा में छपी। इसका प्रकाशक अमेरिकन भिगन था। इसमेजो टाइप है, कहा जाता है, वह मीरामपुर की टाइप फाउडरी से लाया गया था। मगर सन् १८१६ मे सीरामपुर प्रेस द्वारा प्रकाशित 'जूना करार' और मन् १८१७ मे अमेरिकन प्रेस द्वारा प्रकाशित 'मेट मेथ्य काशुभ वर्तमान' दोनो के टाइपोमे वहुत फर्क है। मम्भव है, इसके लिए खास तरह से अलग टाइप वनवाया गया हो।