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प्रेमी-यभिनदन-प्रव रचित तीर्पमालासोचैत्य परिपाटियो की नल्या प्रचुर है, जिनमें कई तो बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। इनमें ने कई रचनामो मेतो मार्ग के न्यानो का भी अच्छा वर्णन है। कइयो मे जैन मदिरो उनके निमानात्रो के उल्लेख के साथ उन-उन नादिरी की प्रतिमानो की नरना भी वलाई गई है। नाधारण चनात्रो मे मे कइयों में केवल तीर्थस्थानों का नामनिए कवि ने अपनी यात्रादि के समयादि का उल्लेख हो किया है। जन तीयों में गनुजय तीर्पतीयाविराज कह
लाता है। इसी के समय में नवने अधिक न मनी प्राप्त होती है। पौराणिक ढग ने इन ती नाहात्म्यम बोवहिजो रनि मजय माहात्म्य नामक विशाल गन्ध पाया जाता है एवं कई 'कल्प उपलब। इस नार्थ के पत्रात माब एक गिरिनार का नाम उल्लेखनीय है। न-नीर्य नान के चारो कोनो में जनो का निवान होने के कापना फैन हुर, पर नमकान ने अब तक गुजरात के यानपान का प्रदेशही श्वेताम्बर जैनो का केन्द्र होने के का 1 अन्य प्रान्ना के स्थानों मबवो नानी अक्षाकृत पोडी ही है।
___ मौलिक नानी के अतिरिक्त अन्य ऐतिहानिक न्यो मे भी जैन तीर्थों के नवन में बहुत नी महत्त्वपण बाते पाई जाती है। एने न्यो ने पेयडरान विमन्तवव, विमलचत्रि, वन्नुपाल गोरजपाल के चन्त्रि, गम नमरा गन, प्रतापनि रानादिनन । कतिपय प्राचागें के रान एक पट्टावलियोम भी अच्छी ऐतिहानिकानमत्री पाईजातो है। विनि त्रिवेगी मादि विज्ञप्निपत्र एव तलन गर्दावती जी भ्रमणवृत्तान में उल्लेखपोग्य है ।
ग्राम एव नगरो के इतिहास के अन्य साधन ___वन-चरिनबी गन्यो, कालोएव तीर्थयानो नीहित्य के प्रतिकित अन्यईनधन भी जैन नाहित्य में हैं, जिनके द्वारा भारत के पाम एव नगरो का महत्वपूर्ण इतिहास नकलित किया जा सकता है। उनकी कुछ चर्चा क.देना भी यहा प्रावश्यक प्रतीत होता है। ऐने नावनो में नगर वर्णनात्मक गजने दिशपम्प से उल्लेखनीय है। हमारी कोज ने ऐती पत्रानो गजलो की प्राप्ति हुई है, जिने भारतीय नाहिय मे एक नवीन यन्त्रही पहा मानना है। इन गजलों में एक-एक नगर का अलकारिक भापा ने वर्णन होने के नायनाय वहाँ के जैन-जनेतर मनी दर्शनीय एव
तोर्यनालामो में अपने यात्रा किए हुए या सुने हुए तीयों के नाम, उनका माहात्म्य. प्रतिमा आदि का वर्णन एव स्तुति होती है। ऐसी तीर्थमालाओं का प्रारभ भी १३वीं शताब्दी के लगभग से ही होता है। सिद्धसेन तरि रचित सकलतोयस्तोत्र उपलब्ध तीर्थ स्तवनो में सबसे प्राचीन प्रतीत होता है। इसकी ताडपत्रीय प्रति पाटण के भडार में उपलब्न है । तोर्यमालामो में सौभाग्यविजय और शीलविजय की तीर्थमालाएं बहुत महत्त्व को है।
चैत्य परिपाटीमें किती ग्रामनगर के ममत्तमदिरों को क्रमवद्ध यात्रा का (जिन-जिन तीर्थपरो के जिनालय हों उन मदिरो के नाम, किनमोहल्ले में है उनका भी निर्देश एव किसी-किसी में प्रतिमानो की सरमा को भी सूचना मिलती है) वर्णन किया जाता है। ऐसी चैत्य परिपाटियों में हेमहतगणि व रगसार रचित गिरनारचंत्यपरिपाटी, देवचन्द्र और लेनो आदि के रचित शत्रुजय चैत्य परिपाटी, हससोमरचित पर्वदेश चैत्य परिपाटी, नगागणिको जालोर चत्य परिपाटी लाघा एविनय विजयजी रचित सूरत चै-यपरिपाटी, जिन सुखसूरि मादि रचित जैसलमेर चैत्य परिपाटी, सित्तूर, ललितप्रभसूरि, हविजय रचित पाटगचैत्य परिपाटी, डुगर रचित खभात चैत्य परिपाटी, जयहमशि एव गपेन्द्र रचित चित्रकूट चैत्य परिपाटी, धर्मवर्षन विमलचारित्रादि रचित बीकानेर चैत्य परिपाटी, खेमराज रचित माडवगढ चैत्य परिपाटी, ज्ञानसागर रचित आव चत्य परिपाटो, अनतहमकृत इलाप्रकार चैत्य परिपाटी आदि अनेक रचनाएँ उपलब्ध है।
तोर्यमालाओ, चंय परिपाटियो प्रादि का एक सुन्दर सग्रह श्री विजयधर्मसूरि जी ने 'प्राचीन तीर्थमाला सग्रह के नाम से प्रकाशित किया है। जनयुग, जनसत्यप्रकाश ग्रादि पत्र एव कई ग्रन्यो में भी कई सुन्दर रचनाए प्रकाशित हुई है।