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महाकवि रन का दुर्योधन
४६१ दडनीति में प्रतिपादित कुटिल नीति तथा कपटयुद्ध राजानी के लिए दोष नहीं है। फिर भी दुर्योधन अपने गदाघात से मूच्छित भीम को नहीं मारता । उलटा उमे सचेत करने की चेष्टा करता है। यह वास्तव में उमकी धर्मयुद्धप्रियता का एक उदाहरण है । अगर दुर्योधन मे बडा भारी दोष था तो वह भरी सभा मे द्रौपदी का वस्त्रापहरण कराने की चेष्टा करना । यह दोष उममे नहीं होता तो वह क्षत्रकुलालकार होता। 'गदायुद्ध' में भीष्म ने इस भाव को व्यक्त किया भी है। रन के भीम की अपेक्षा दुर्योधन में हमें अधिक अभिमान दिखाई देता है । न्यायत 'गदायुद्ध' का नायक भीम न होकर दुर्योधन होना चाहिए था। दुर्योवन किनना उदार है । रणक्षेत्र में वह अपने ही व्यक्तियो के लिए प्रामू नही वहाता, बल्कि अभिमन्यु जैसे शत्रु वीरो के लिए भी। भीष्म, द्रोण, कर्ण आदि महावीरो के माथ अपनी अपरिमित मेना निग्गेप होने पर भी कालदडमदृश अपनी प्रचड गदा को कन्चे पर रख कर रण-क्षेत्र की ओर वढने वाले एकाकी दुर्योधन का गौर्य एव माहम प्रशमनीय है। रण-क्षेत्र में द्रोण, दुश्मासन, कर्ण आदि अपने पक्ष के महावीरो के मृत शरीरो को देख कर भी दुर्योधन का मन निलमात्र भी विचलित नहीं होता, प्रत्युत उद्विग्न होता है। उनके मरण में उत्पन्न अपार दुख का प्रतिकार वीरोत्रित गम्त्र के द्वारा ही करने के लिए वह तैयार है। गुरु भीम की आजा मे वैश्म्मायन सरोवर में ममय विताने वाला दुर्योवन भीम की अभिमानोक्तियो को न सह कर तुरन्त ही निर्भय हो बाहर निकलता है और उसके माय लडने के लिए उत्माह मे आगे वढता है।
निष्कलक न होता हुआ भी दुर्योधन पूर्ण कलकी भी नही था। उसके शील में अविचार अवश्य थे, फिर भी वह निश्मीन नहीं था। वह गुणी था। माय-ही-माथ उसकी मना हम सभी को अपनी ओर आकृष्ट करने की शक्ति रग्बती थी। दुर्योधन में छोटी-मोटी अभिलापाएं नो थी ही नहीं। वीर सदैव वीरत्व का उपासक होता है। न्वपक्षी या परपक्षी कोई भी हो, वह वीर को पूजता था। इमीलिए शत्रुकुमार अभिमन्यु को देख कर वह हाथ जोडता है। इसमे यह भी व्यक्त होता है कि दुर्योवन दुम्साहमी नहीं था, अपितु अविश्रान्त पराक्रमी था। वह शत्रु के लिए निर्दयी और मित्र के लिए महृदयी था। इन सब बातो को महाकवि रन्न ने भिन्न-भिन्न प्रकरणो में भले प्रकार दिखलाया है। रन का दुर्योवन दुर्योधन नहीं, बल्कि मुयोधन है। दुर्योधन जैसे महावीर के लिए मरण भूपण ही है। इसलिए उमके मरण के लिए चिन्तित होना भूल है।' मूडबिद्री ]
"रन्न कवि प्रशस्ति के आधार पर।