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अभिनव धर्मभूषण और उनकी 'न्यायदीपिका'
प० दरवारीलाल जैन कोठिया जैन तार्किक अभिनव धर्मभूषण से कम विद्वान् परिचित है। प्रस्तुत लेख द्वारा उन्ही का परिचय कराया जाता है । उनको जानने के लिए जो कुछ साधन प्राप्त है वे यद्यपि पर्याप्त नहीं है-उनके माता-पितादि का क्या नाम था, जन्म और स्वर्गवास कब और कहाँ हुआ, आदि का उनमे कोई पता नहीं चलता है फिर भी सौभाग्य और सन्तोष की बात है कि उपलब्ध साधनो से उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व, गुरुपरम्परा और समय का कुछ प्रामाणिक परिचय मिल जाता है । अत हम उन्ही शिलालेखो, ग्रन्थोल्लेखो आदि के आधार पर अभिनव धर्मभूषण के मम्वन्ध मे कुछ कह सकते है।
अभिनव तथा यतिविशेषण
अभिनव धर्मभूषण की एक ही रचना उपलब्ध है । वह है 'न्याय-दीपिका' । 'न्याय-दीपिका' के पहले और दूसरे प्रकाश के पुष्पिकावाक्यो मे 'यति' विशेषण तथा तीसरे प्रकाश के पुप्पिकावाक्य में 'अभिनव' विशेषण इनके नाम के साथ पाये जाते है, जिससे मालूम होता है कि 'न्याय-दीपिका' के रचयिता प्रस्तुत धर्मभूषण'अभिनव' और 'यति' दोनो कहलाते थे। जान पडता है कि अपने पूर्ववर्ती धर्मभूपणो मे अपने को व्यावृत्त करने के लिए 'अभिनव' विशेपण लगाया है, क्योकि प्राय ऐमा देखा जाता है कि एक नाम के अनेक व्यक्तियो मे अपने को पृथक करने के लिए कोई उपनाम रख लिया जाता है । अत 'अभिनव' न्याय-दीपिकाकार का एक व्यावर्तक विशेषण या उपनाम समझना चाहिए । जनसाहित्य मे ऐसे और भी आचार्य हुए है, जो अपने नाम के साथ 'अभिनव' विशेषण लगाते हुए पाये जाते है। जैसे अभिनव पडिताचार्य' (गक स० १२३३), अभिनव श्रुतमुनि, अभिनव गुणभद्र' और अभिनव पडितदेव आदि । पूर्ववर्ती अपने नाम वालो से व्यावृत्ति के लिए 'अभिनव' विशेपण की यह एक परिपाटी है । 'यति' विशेपण तो स्पष्ट ही है, क्योकि वह मुनि के लिए प्रयुक्त किया जाता है । अभिनव धर्मभूषण अपने गुरु श्री वर्द्धमान भट्टारक के पट्ट के उत्तराधिकारी हुए थे और वे कुन्दकुन्दाचार्य की आम्नाय मे हुए है। इसलिए इस विशेषण के द्वारा यह भी निभ्रान्त ज्ञात हो जाता है कि अभिनव धर्मभूपण दिगम्वर परम्परा के जैन मुनि थे और भट्टारक मुनि नाम से लोकविश्रुत थे।
धर्मभूषण नाम के दूसरे विद्वान् ऊपर कहा गया है कि अभिनघ धर्मभूषण ने दूसरे पूर्ववर्ती धर्मभूपणो से भिन्नत्व स्यापित करने के लिए
'देखिए, शिलालेख न० ४२१ 'देखिए, जैन शिलालेख स० पृ० २०१, शिलालेख १०५ (२४५) 'देखिए, 'सी० पी० एण्ड वरार कैटलाग रा०प० हीरालाल द्वारा सपादित । "देखिए, जैन शिलालेख स० पृ० ३४५, शिलालेख न० ३६२ (२५७) ५"ऋषिपतिर्मुनिभिक्षुस्तापस सयतो व्रती ।'-नाममाला (महाकवि धनञ्जय कृत)। "शिष्यस्तस्य गुरोरासीद्धर्मभूषणदेशिक । भट्टारक मुनि श्रीमान् शल्यत्रयविवजित ॥"-विजयनगर शिलालेख न० २