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कुछ जैन अनुभुतियां और पुरातत्त्व
२३१ में पछ-ताछ करेगा, तव उसे उत्तर में कहा जायेगा कि यहां पर बल, रूप, धन और यश से समृद्ध नन्द राजा बहुत समय तक राज कर गया है, उसी के बनवाये हुए ये स्तूप है। इनमें उसने सुवर्ण गाडा है, जिसे कोई दूसरा राजा ग्रहण नही कर सकता । यह सुन कल्की उन स्तूपो को खुदवायेगा और उनमें का तमाम सुवर्ण ग्रहण कर लेगा। इस द्रव्यप्राप्ति से उसका लालच वढेगा और द्रव्य प्राप्ति की आशा से वह सारे नगर को खुदवा देगा। तव जमीन में से एक पत्थर की गौ निकलेगी, जो 'लोणदेवी' कहलाएगी।
लोणदेवी आम रास्ते मे खडी रहेगी और भिक्षा निमित्त आते-जाते साधुप्रो को मार गिरावेगी, जिससे उनके भिक्षापात्र टूट जायेंगे तथा हाथ-पैर और शिर भी फूटेगे और उनका नगर में चलना-फिरना मुश्किल हो जायगा।
तव महत्तर (साधुओ के मुखिया) कहेंगे-श्रमणो, यह अनागत दोष की-जिसे भगवान् बर्द्धमानस्वामी ने अपने ज्ञान से पहले ही देखा था-अग्न सूचना है। साधुओ। यह गौ वास्तव में अपनी हितचिन्तिका है। भावी सकट की सूचना करती है । इस वास्ते चलिए, जल्दी हम दूसरे देशो मे चले जायें।
___ गौ के उपसर्ग से जिन्होने जिन-वचन सत्य होने की सम्भावना की वे पाटलिपुत्र को छोडकर अन्य देश को चले गये। पर बहुतेरे नही भी गये।
गगा-शोण के उपद्रव विषयक जिन-वचन को जिन्होने सुना वे वहाँ से अन्य देश को चले गये। पर वहुतेरे नही भी गये।
"भिक्षा यथेच्छ मिल रही है, फिर हमें भागने की क्या जरूरत है ?" यह कहते हुए कई साधू वहाँ से नही गये।
दूर गये भी पूर्वभविक कर्मों के तो निकट ही है। नियमित काल में फलने वाले कर्मों से कौन दूर भाग सकता है ? मनुष्य समझता है, मै भाग जाऊँ ताकि शान्ति प्राप्त हो, पर उसे मालूम नहीं कि उसके भी पहले कर्म वहां पहुंच कर उसकी राह देखते है।
वह दुर्मुख और अधर्म्यमुख राजा चतुर्मुख (कल्की) साधुग्री को इकट्ठा करके उनसे कर मांगेगा और न देने पर श्रवण-सघ तथा अन्य मत के साधुओ को कैद करेगा। तब जो सोना-चांदी आदि परिग्रह रखने वाले साधु होगे वे सब 'कर' देकर छटेंगे। कल्की उन पाखडियो का जवरन् वेष छिनवा लेगा।
लोभग्रस्त होकर वह साधुनो को भी तग करेगा। तव साधुनो का मुखिया कहेगा-'हे राजन् । हम अकिंचन हैं, हमारे पास क्या चीज है जो तुझे कर-स्वरूप दी जाय?' इस पर भी कल्की उन्हें नही छोडेगा और श्रमणसघ कई दिनो तक वैसा ही रोका हुआ रहेगा। तव नगर-देवता आकर कहेगा-'अरे निर्दय राजन् । तू श्रमणसघ को हैरान करके क्यो मरने की जल्दी तैयारी करता है ? जरा सवर कर। तेरी इस अनीति का आखिरी परिणाम तैयार है।' नगरदेवता की इस धमकी से कल्की धवरा जायगा और आर्द्र वस्त्र पहिन कर श्रमणसघ के पैरो में गिरकर कहेगाहे भगवन् । कोप देख लिया । अव प्रसाद चाहता हूँ।' इस प्रकार कल्की का उत्पात मिट जाने पर भी अधिकतर साधु वहाँ रहना नही चाहेंगे, क्योकि उन्हें मालूम हो जायगा कि यहां पर निरन्तर घोर वृष्टि से जल प्रलय होने वाला है।
तव वहां नगर की नाश की सूचना करने वाले दिव्य, मान्तरिक्ष और भौम उत्पात शुरू होगे कि जिनसे साधुसाध्वियो को पीडा होगी। इन उत्पातो से और अतिशायी ज्ञान से यह जानकर कि-'सावत्सरिक पारणा के दिन भयकर उपद्रव होने वाला है ?'-साधु वहाँ से विहार कर चले जायेंगे। पर उपकरण, मकानो और श्रावको का प्रतिवन्ध रखने वाले तथा भविष्य पर भरोसा रखने वाले साधु वहाँ से जा नही सकेंगे।
तव सत्रह रात-दिन तक निरन्तर वृष्टि होगी, जिससे गगा और शोण में बाढ आयेंगी। गगा की वाढ और शाण के दुर्घर वेग से यह रमणीय पाटलिपुत्र नगर चारो ओर से बह जायगा। साधु जो धीर होगे वे आलोचना प्रायश्चित्त करते हुए और जो श्रावक तथा वसति के मोह में फंसे हुए होगे वे सकरुण दृष्टि से देखते हुए मकानो के साथ