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प्रेमी-अभिनंदन-ग्रय
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११ सुराष्ट्र (द्वारका) मौराष्ट्र (काठियावाड) की गणना महाराष्ट्र, आन्ध्र और कुडुक्क (कुर्ग) देशो के साथ की गई है, जिन्हें सम्प्रति राजा ने जैन-श्रमणो के विहार योग्य बनाया। कहते है कि कालकाचार्य यहाँ पारसकूल (पशिया) से छियानवें शाहो को लेकर आये और इस कारण यह देश छियानवे मडलो मे विभाजित किया गया। सुराष्ट्र व्यापार का एक वडा केन्द्रस्थल था और यहाँ दूर-दूर के व्यापारी माल खरीदने आते थे।'
द्वारका एक अत्यन्त सुन्दर और समृद्ध नगर गिना जाता था। इस नगर के उत्तर-पश्चिम में प्रसिद्ध रेवतक (गिरनार) पर्वत अवस्थित था, जो दशाह राजाप्रो को अत्यन्त प्रिय था। यहाँ अरिष्टनेमि ने मुक्ति पाई थी। कहते है कि यादवो के अत्यधिक मदिरापान से द्वारका का नाश हुआ। द्वारका व्यापार का एक बडा केन्द्र था और व्यापारी लोग यहाँ नेपाल पट्टण से नाव द्वारा आते-जाते थे। कुछ विद्वान् आधुनिक द्वारका को द्वारका न मानकर जूनागढ को प्राचीन द्वारका बताते हैं।'
१२ विदेह (मिथिला) विदेह (तिरहुत) में महावीर का जन्म हुआ था। विदेह-निवासी होने के कारण महावीर की माता त्रिशला विदेहदत्ता (विदेहदिन्ना) कही जाती थी तथा रानी चेलना के पुत्र कूणिक को विदेहपुत्र कहा जाता था। विदेह व्यापार का केन्द्र था।
मिथिला (जनकपुर) मे महावीर द्वारा छ चातुर्मास किये जाने का उल्लेख आता है ।" मैथिलिया नाम को एक जैन-श्रमणो की प्राचीन शाखा थी।" यहाँ आर्य महागिरि का विहार हुआ था। जिनप्रभ मूरि के समय मिथिला नगरी 'जगड' के नाम से प्रसिद्ध थी।" बौद्ध-ग्रन्थो के अनुसार वैशाली (वसाढ) विदेह की राजधानी थी
और यह मध्यदेश का एक प्रधान नगर माना जाता था। वैशाली लिच्छवी लोगो का केन्द्र था। जैन-ग्रन्थो मे वैशाली का राजा चेटक एक वडा प्रभावशाली राजा हो गया है। वह गणराजानो का मुखिया था और उसने अपनी सात कन्याओं को विभिन्न राज-धरानो में देकर उनसे सम्बन्ध स्थापित किया था। चेटक की कन्या प्रभावती वीतिभय के राजा उदायन के साथ, पद्मावती चम्पा के राजा दधिवाहन के साथ, मृगावती कौशाम्बी के राजा शतानीक के साथ,
'बृहत्कल्पभाष्य १.३२८९ 'वही १९४३
दशवकालिक चूणि, पृ० ४० 'नायाधम्मकहा ५ 'अन्तगडदसानो ५ 'निशीय चूणि पीठिका (एनसाइक्लोस्टाइल की हुई प्रति), पृ० ६१ "इन्डियन हिस्टोरिकल क्वारटर्ली, १९३४, पृ० ५४१-५० 'कल्पसूत्र ५.१०६ 'भगवतीसूत्र ७६ "कल्पसूत्र ५१२३ "वही, पृ० २३१ "प्रावश्यक नियुक्ति ७८२ "विविधतीय, पृ० ३२