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जैन साहित्य में प्राचीन ऐतिहासिक सामग्री .
४५६ 'पार्श्वचरित्र', 'महावीर चरित्र', 'भुजवलि चरित्र', 'जम्बूस्वामी चरित्र', 'कुमारपाल चरित्र', 'वस्तुपाल रास' इत्यादि अनेकानेक चरित्रग्रय इतिहास के लिए महत्त्व की वस्तु है।
जैन सस्कृत माहित्य मे पुरातन प्रवन्ध-अथ इतिहास की दृष्टि से विशेष मूल्यवान् है। ये प्रवन्व-अथ एक प्रकार के विशद निवन्ध है, जिनमें किमी ऐतिहासिक घटना अथवा विद्वान् या शासक का परिचय कराया गया है। श्री मेरुतुगाचार्य का 'प्रवन्ध चिन्तामणि' प्रवन्ध-ग्रयो में उल्लेखनीय है, जो "सिंघी जैन ग्रथमाला' में छप भी चुका है। श्री राजशेखर का प्रवन्धकोष', श्री जिनविजय का 'पुरातन प्रवन्धसग्रह' एव 'उपदेशतरगिणी' धादि प्रववाथ भी प्रकाशित हो चुके है।
किमो समय श्वेताम्बर जैन साधु सम्प्रदाय में 'विज्ञप्तिपत्र' लिखने-लिखाने का प्रचार विशेष रूप से था। आजकल मभवत इम प्रथा में शिथिलता आ गई है। "विज्ञप्ति पत्र कुडली के आकार के उस आमन्त्रणपत्र की सज्ञा है, जिसे स्थानीय जैन समाज भाद्रपद में पqपण पर्व के अन्तिम दिन अपने दूरवर्ती प्राचार्य या गुरु के पास भेजता था। उसमें स्थानीय मध के पुण्य-कार्यों के वर्णन के माय गुरु के चरणो में यह प्रार्थना रहती थी कि वे अगला चातुर्मास उम स्थान पर आकर विताये । विज्ञप्तियो का जन्म गुजरात में हुआ और जनेतर समाज में इनका अभाव है। पहले विज्ञप्तिपत्र मामान्य प्रार्थनापूर्ण आमन्त्रण के रूप में लिखे जाते होगे, परन्तु काल पाकर उनका रूप अत्यन्त सस्कृत हो गया। उनमे चित्रकारी को भी भरपूर स्थान मिला। प्रेपण-स्थान का चित्रमय प्रदर्शन विज्ञप्तिपत्र में किया जाता था। सघ के मदस्यो का भी परिचय रहता और कभी-कभी इतिहास विषयक घटनाएं भी आ जाती थीं। वस्तुत कला और इतिहास उभयदृष्टि से विज्ञप्निपत्र महत्त्वपूर्ण है। इनमें से कुछ 'श्री प्रात्मानन्द जन सभा अम्बाला और डा० हीरानद शास्त्री द्वारा श्री प्रतापसिंह महाराज राज्याभिषेक ग्रन्थमाला वडीदा' से प्रकट भी किये जा चुके है । डा० हीरानद शास्त्री का सग्रह अग्रेजी में ऐशियेंट विज्ञप्ति पत्राज़' नाम से सचित्र प्रकाशित हुआ है । कुछ अप्रकाशित विज्ञप्तिपत्र श्री अगरचन्द्र नाहटा (बीकानेर) और प्रसिद्ध नाहर-सग्रह कलकत्ते में दर्शनीय है। दिगम्बर जैनो में यद्यपि विनप्तिपत्र लिखने की प्रथा कभी नही रही मालूम होती, परन्तु उनमें विशेष जनोत्सव, जैसे रथयात्रा आदि के अवसर पर निमत्रणपत्र अन्य स्थानो के जन-मघो को भेजने का रिवाज अवश्य रहा है। इनमें से कुछ निमत्रणपत्र मचित्र भी होते थे। इन निमत्रणपत्रो की खोज शास्त्रभडारो में होनी चाहिए। हमें सौ-डेढ-सौ वर्षों से अधिक प्राचीन निमत्रणपत्र नहीं मिले हैं। इनमें मघ कास्थानीय परिचय और उत्सव की विशेषता का दिग्दर्शन सुन्दर काव्यरचना में किया जाता था और अव भी कियाजाताहै। पहले यह निमत्रणपत्र हाथ से लिखकर भेजे जाते थे। उपरान्त जवछापेका प्रचार हुयातववेलियो और प्रेस में छपाकर भेजे जाने लगे। हमारे संग्रह में सबसे पुराना हस्तलिखित निमश्रणपत्र विक्रमसवत १८८० चैत्र वदी २ का है, जिसे मैनपुरी के जनो ने कम्पिलातीर्थ में रथयात्रा निकालने के प्रसग में लिखा था। ऐसाही एक निमत्रणपत्र स० १९५५ काहै, जिसकाप्रारभ निम्नलिखित श्लोक से होताहै
"श्री नाभेय जिन प्रणम्य शिरसा वद्य समस्तैर्जन । लोकाना दुरिता पवृहण पवि वाचा सुधावषिणपत्रीमद्य लिखामि चारुरचनाविन्मनोहारिणी।
श्रुत्वता विधाजना. स्वयमुदागच्छतु धर्मोत्सवे ॥" लियो की छपी हुई एक निमत्रण पत्रिका वि० स० १९५६ की हमारे सग्रह में है, जिससे प्रकट है कि उस वर्ष भोगाव में एक जिनविम्ब प्रतिष्ठोत्सव श्री बनारसीदाम जी ने कराया था, उसका प्रारम निम्नलिखित रूप में हुआ है
"अनेकान्त' वर्ष ५, अक १२ और वर्ष ६, प्रक २। "अनेकान्त' वर्ष ५, पृ० ३९६-३६७ ।