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जैन-साहित्य का भौगोलिक महत्त्व
श्री अगरचन्द नाहटा
किमी भी देश का इतिहास जब तक उस देणान्तर्गत ग्राम-नगर भूमि, उसके शासक और वहां के निवासी, इन तीनो का यथार्थ चित्र अकित न कर दे तव नक उमे पूर्ण नहीं कहा जा सकता। भारतीय इतिहास अभी तक गामको के इतिहास के स्प में ही विगेपनया हमारे सामने आया है। अत इमे एकागी ही कह सकते है। हमारे इनिहाम की इम कमी को पूर्ण करने की नितान्त आवश्यकता है। भारत के ग्राम और नगरी के इतिहाम की जो महत्त्वपूर्ण विशाल मामग्री जैन-साहित्य म पाई जाती है उनकी ओर हमारे इतिहाम-लेग्वको का ध्यान आकर्षित करने के उद्देश्य मे प्रस्तुत निबन्ध लिया जा रहा है।
प्राचीन काल में ही गजकीय इतिहास को अधिक महत्त्व देने के कारण उसके सम्बन्ध में जितनी मामग्री पाई जाती है, उतनी ग्राम, नगर एव उसके निवामी जनमाधारण के इतिहास की नहीं पाई जाती। फिर भी भक्तिप्रवान भारत में कई स्थानों के माहात्म्य धार्मिक दृष्टि में लिखे गये है। उनके आधार पर एव भारत येतर यात्रियो के भ्रमण-वृत्तान्त आदि द्वाग कुछ प्रकाश डाला जा सकता है । जैनधर्म भारत में फला-फूला एव हजारो वर्षों से जैनमुनि इस देश के एक किनारे मे दूसरे किनारे तक धर्म-प्रचार करते रहे है । अत उनके साहित्य में भी भौगोलिक इतिहास की मामग्री अधिकाधिक पाई जाय, यह स्वाभाविक ही है। पर मेद है कि हमारे इतिहास-लेखको ने उस पोर प्राय ध्यान नहीं दिया। इमलिए इस लेग में जैन-साहित्य के भौगोलिक महत्त्व की चर्चा की जा रही है ।
जैन-माहित्य में सबसे प्राचीन माहित्य भागम-ग्रन्थ है। उनमें से ग्यारह अग प्रादि कई अन्य तो भगवान् महावीर द्वारा कथित होने के कारण ढाई हजार वर्ष पूर्व के इतिहास के लिए अत्यन्त उपयोगी है। इन आगमो में तत्कालीन धर्म, समाज-व्यवस्था, मस्कृति, कला-साहित्य, राजनैतिक हलचल और राजाओं के सम्बन्ध मे बहुमूल्य मामग्री सुरक्षित है। वैज्ञानिक दृष्टि मे इसका अनुमन्वान करना परमावश्यक है। इन पागमो मे जिन-जिन देश, नगर और ग्रामी का उल्लेख पाया है, मै यहां उन्ही का मक्षिप्त परिचय करा कर मध्यकालीन एतद्विपयक जैन साहित्य का परिचय दूगा । मेरा यह प्रयास केवल दिशासूचन के रूप में ही समझना चाहिए। विशेप अध्ययन करने पर पीर भी बहुत-भी जानकारी प्राप्त होने की सम्भावना है। प्राशा है, विचारशील विद्वद्गण इससे लाभ उठा कर हमारे इतिहास की एक महान् कमी को गीत्र ही पूर्ण करने मे प्रयत्नशील होगे।
प्राचीन जैनागमो में जैनवाड़मय के चार प्रकार माने गये हैं-१ द्रव्यानुयोग (आत्मा, परमाणु आदि द्रव्यो की चर्चा) २ गणितानुयोग (भूगोल-बगोल और गणित) ३ चरणकरणानुयोग (प्राचार, विधिवाद, क्रियाकाण्ड के निम्पक गास्न) और ४ वर्मकथानुयोग (धार्मिक पुरुपो के चरित्र) । इनमे भूगोल-वगोल का विपय दूसरे अनुयोग में पाता है। इस विपय के कई मौलिक ग्रन्य भी है और कई अन्यो में अन्य बातो के माय भूगोल-खगोल की भी चर्चा की गई है । दोनो प्रकार के कतिपय ग्रन्यो के नाम इस प्रकार है
भगवतीमूत्र, जीवाभिगम, प्रज्ञापना, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, चन्द्रप्राप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति, ज्योतिपकरटक, द्वीपसागरप्राप्ति, बृहत्मघयणी, लघुमघयणी, वृहत् क्षेत्रममाम, लघुक्षेत्रसमास, तिलोयपन्नति, मडलप्रकरण, देवेन्द्र नरेन्द्रप्रकरण, लोकनालिप्रकरण, जम्बूद्वीपमघयणि, लोकप्रकाण आदि।
इन ग्रन्यो में पौराणिक ढग मे जैनभूगोल-गोल की चर्चा है । मुनि दर्शनविजय जी ने अपने विश्वरचना