________________
४६६
प्रेमी-अभिनदन-ग्रंथ
अव हम यह देखेंगे कि कौन-मी अपभ्रश काव्य-धाराएँ हिन्दी मे आई है।
प्राय अपभ्रग के कवियो ने लोक प्रचलित कहानियो को लेकर उनमे मनोनुकूल परिवर्तन करके उन पर मुन्दर काव्य लिखे हैं। इन कहानियो को अपनाने का सवमे प्रवान कारण यह प्रतीत होता है कि इन परिचित कहानियो द्वारा उनके धार्मिक सिद्धान्तो का प्रचार भली भांति हो सकता था। इसके साथ-ही-साथ कवि भी लोकप्रिय बन मकते थे। इन अत्यन्त लोकप्रिय चिरपरिचित घरेलू कहानियो को लेकर उनके आसपास धार्मिक वातावरण भी अपने सिद्धान्तो के अनुकूल इन कवियों ने उपस्थित किया है। कहानी के नायको को जनवर्म का भक्त वना कर समस्त कथा को 'पचनमस्कारफल' या किमी व्रत से सम्बन्वित दृष्टान्त का रूप प्रदान किया है। बहुत सम्भव है कि पहले वे नायक धार्मिक वातावरण से पूर्ण स्वतन्त्र रहे हो, किन्तु जैन-कवियो ने उन्हें अपने रग मे रंग कर जैनगृहस्थो की पूजा-पाठ की सामग्री बना दिया। इसके साथ ही काव्य का रोचक पुट देकर उन्हें और भी मनोरजक बनाया और उन कथानो का एक नया सस्करण करके महत्त्वपूर्ण भी वनाया। हम भविष्यदत्तकथा को ही यहाँ उदाहरण के रूप म ले मकते हैं।
(१) भविष्यदत्त की कथा 'भविसयत्तकहा' नामक ग्रन्थ के निर्माण होने के पूर्व प्रचलित थी और लोकप्रिय मा रही होगी।
(२) धनपाल ने उसे कुछ धार्मिक' रग देकर व काव्यानुकूल कुछ परिवर्तन करके और सुन्दर बनाया। वह वार्मिक वातावरण के कारण जैनधरो मे ग्राह्य हुई और काव्य सौन्दर्य के कारण औरो के भी पढने योग्य हुई।
(३) प्रेम और शृगार के दृश्यो को रखने मे और भी मनोरजक हुई।। (४) भाषा में निर्मित होने के कारण जनसाधारण में अधिक प्रचार हुआ।
भविष्यदत्तकथा मे से पात्रो के नामो को यदि निकाल दे एव कुछ थोडे से अन्य परिवर्तन कर दें और वचे हुए मानचित्र से रत्नसेन पद्मावती की कहानी की तुलना करे तो दोनो में कोई अन्तर नही प्रतीत होगा। मेरा अनुमान है कि 'पद्मावती' मे रत्नसेन और अलाउद्दीन आदि नामो के अतिरिक्त ऐतिहासिकता बहुत कम है। वह केवल एक कहानी है। जिस प्रकार का प्रेम-चित्रण भविष्यदत्तकथा मे है, ठीक उसी प्रकार का रत्नसेन पद्मावती की कथा मे है। दोनो कृतियो की कथानो में समानता है। रत्नसेन की रानी पद्मिनी के हरण का अलाउद्दीन द्वारा प्रयत्न अत्यन्त अस्वाभाविक लगता है, भले ही वह ऐतिहासिक हो, किन्तु भविष्यदत्त की स्त्री का अपहरण उसके भाई बन्धुदन द्वारा अधिक स्वाभाविक है। सिंहल का भी उल्लेख दोनो कृतियो मे है। वह सिंहल कहाँ है, इसे जानने का प्रयास व्यर्य-सा है। उस समय की कहानियो मे सिंहल का आना आवश्यक है। पद्मावती मे 'जायसी' ने यत्र-तत्र आध्यात्मिक सकेत रक्खे हैं, किन्तु भविष्यदत्तकथा को एक धार्मिक कथा का रूप ही दे दिया है। अत उस प्रकार, के मकेतो को ढूढना निरर्थक है । ढूढने पर मिलना असम्भव नही है । 'जायसी' ने पद्मिनी की हार मान कर मृत्यु दिवाई है और इस प्रकार हरण करने से बचा दिया है, किन्तु भविष्यदत्तकथा मे वन्धुदत्त ने भविष्यदत्त की स्त्री का अपहरण किया है। पीछे घटनाचक्र के अनुकूल होने से उसे अपनी स्त्री वापिस मिल जाती है और वन्धुदत्त को दड मिलता है । इस प्रकार काव्य-न्याय का धनपाल ने निर्वाह किया है।
इसको हम यही छोड कर प्राकृत में लिखी एक अन्य जैन-कथा से हिन्दी प्रेमाख्यानक काव्य के आदर्शग्रन्थ 'पद्मावत' की कथा से समता करके देखेंगे, जिससे यह स्पष्ट हो सके कि ये कहानियाँ जनो द्वारा पहले ही काव्य-रचना के लिए अपनाई जा चुकी थी और प्रेममार्गी मूफी-धारा उसी का एक परिवर्तित द्वितीय सस्करण है।
विक्रम को पन्द्रहवी शती की प्राकृत में लिखी एक 'रयणसेहरी नरवइ कहा' कथा मिलती है। कहानी को पौपच मनमी अप्टमी व्रत के दृष्टान्त के रूप में रक्खा गया है। इस कथा मे हिन्दी काव्य 'पद्मावत' की सव बाते
भविष्यदत्तकया सूर्य पचमी व्रत के दृष्टान्त के रूप में कही गई है।