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प्रेमी अभिनंदन-प्रथ
सूची मे मिलता है । यह सूची श्री एच० आर० कापडिया द्वारा लिखित हरिभद्र के अनेकान्तजयपताका ( प्रका० गायक ओरि० सी०, मुनिचन्द्र के भाष्य सहित ) की भूमिका पृ० ३० म मिलती है । अध्याय ६ के अन्त में हरिभद्र के उपदेशपद पर लिखी हुई मुनिचन्द्र की टीका का हवाला दिया गया है ।
भाग १, पृ० १६० -- यहाँ पर राहुल नामक लेखक का उल्लेख मिलता है, जिसने धर्मकीर्ति के प्रमाणवार्तिक पर टीका लिखी है ।
भाग २, पृ० ३४६, ४६७, भाग ३, पृ० ५२१ विद्यानन्द, प्रसिद्ध जैन लेखक जिसने तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक आदि ग्रन्थ लिखे है ।
भाग २, पृ० २८६-७ । विमलशिव | इस नैयायिक का पता एक लम्बे उद्धरण मे चलता है। उसके विषय मे अन्यत्र कुछ पता नही चलता ।
विमलशिव पुनरन्यथा प्राह-- वहभ्यादिकन स्वैकसमवेतातीन्द्रियकार्यकृत्, चाक्षुषत्ये सति हेतुत्वात्, यदित्य यथा गोत्व, तथा च विवादास्पद, तस्मात्तथा, प्रादि । यह उद्धरण योग अर्थात नैयायिको द्वारा शक्ति के मतखडन के सबध में आया है ।
भाग २, पृ० २८६ विष्णुभट्ट । शक्ति-मत के ऊपर इस न्यायिक का कथन किया गया है-विष्णुभट्टस्त्वाह-- स्वरूपसहारिव्यतिरिक्ता शक्तिरस्तीतिवाक्यमनर्थक, सर्वप्रमाणैरनुपलभ्यमानार्थत्वात्, यदित्य तत्तया यथा मुल्यये करिशत मास्ते इति वाक्य यथोक्तसाधन चैतत् तस्माद्यथोक्तसाध्यम् ।
पृ० २८८ पर पुन उसका मत उद्धृत है- तथा चाभिदधे विष्णुभट्टेन' प्रतिबन्धक प्रागभावप्रध्वसभा वयोश्च नीलपीताद्यनेक विधानामिव यथासंभव कारणत्व विशेषत' इति ।
भाग २, पृ० ३१८ व्योमणिव, वैशेपिक, प्रशस्तपादभाष्य पर व्योमवती टीका का लेखक । पृ० ४१६ तथा ४९८ पर उसके दो और उत्लेख मिलते है ।
भाग २, पृ० ४३९ । शकर नामक एक नैयायिक का मत यहाँ उद्धृत है तथा भाग ४, पृ० ८५२ में न्यायमणकार के साथ उसका मत दिया हुआ है, तथा दोनो को उमी वाक्य का कर्ता माना गया है ।
१ अस्त्येवास्य ( ईश्वरस्य) शरीरमिति शवर ।
२ यच्च शकरन्यायभूषण कारावचक्षते -- यो हि भावो यावत्या सामग्रधा गृह्यते, तदभावोऽपि तावत्यैवेति श्रालोकग्रहणसामग्रया गृह्यमाण तमस्तदभाव एव ।
दूसरा उद्धरण उसी रूप मे रत्नप्रभ की प्रमाणनयतत्त्वालोकालकार पर लिखी हुई टीका ( पृ०६८, यशोविजयगन्यमाला मस्करण) मे मिलता है ।
करस्वामिन् नामक नैयायिक का मत शान्तरक्षित तथा कमलशील के द्वारा तत्त्वमग्रह तथा पजिका (गायक० ओरि० से०, पृ० ८१, २५०, ३७८) में तीन बार उद्धृत किया गया है ।
भाग ४, पृ० ७८३
शकरनन्दन, वौद्ध लेखक, उसकी एक कारिका इस प्रकार दो है
कारणाद्भवतोऽर्थस्य
नश्वरस्यैव
स्वभाव कृतकरवस्य भावस्य
पृ० ७८७ पर उसकी एक कारिका स्वयं उसकी टीका सहित उद्धृत है एतेन शङ्कर नदनोक्तकारिका यावदुक्तमपास्तम् । यदपि शकरनदन एव व्याकरोति----
भावत ।
क्षणभगिता ॥
न हि स्वहेतुजो नाशो नाशिना नश्वरात्मता । नाशायैषा भवन्तस्ते भूत्वैव न भवन्ति तत् ॥
नाशिना नश्वरात्मतैव नाशार्थो न तु विनाशहेतुजो विनाशो नाशायं श्रादि ॥