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नयचंद्र और उनका प्रथ रंभामंजरी'
४१३ चिंतित हो जाता है,जो रभा के मवय में कुछ ममाचार लाने वाला था। इनने में विदूपक नारायणदाम को नया उसके माय वैवाहिकनेपथ्य में रभा को लेकर उपस्थित होता है।
राजा का 'जैत्रचद्र' नाम इम हेतु पड गया था कि उनके जन्मदिवम को ही उसके पितामह ने खर्पर मेना को परास्त किया था, जो दयार्ण देश में आई थी।'
___ नारायणदाम कुछ मधुर ममाचार मुनाने आया है। पर्दे के पीछे से राजा मुनता है कि रमा किम्मीरवगी देवराज की पौत्रीतया लाटनरेगा मदनवर्मा की पुत्री है औरम्प मे पार्वती के नमान सुन्दर है। उमकी मगाईम नामक व्यक्ति के साथ हुई थी, परन्तु वह अपने मातुल शिव के द्वारा वहां मे हटाई जाकर हाथ में वैवाहिक ककण पहने हुए यहाँ ले पाई गई है । यह सुन कर राजा रभा का, जो एक पालकी में उपस्थित होती है, स्वागत करता है। वह उसके मौंदर्य पर मुग्ध होकर उसके अगो का वखान करने लगता है। विदूपक तथा नारायणदाम राजा को और अधिक रभा के प्रति आकर्षित करते है, यहाँ तक कि वह बहुत प्रेमासक्त हो जाता है। राजा का चारण उम घडी को शुभमुहूर्त वताता है और पुरोहित लोग वैवाहिक मत्रोच्चार करने लगते है । गोघ्र ही विदूपक इम वात को घोपित करता है कि राजा जंत्र तया रभा का शास्त्रानुकूल परिणय-मवध सपन्न हो गया । उम समय आनन्दमगल होने लगते है। चारण प्रात काल होने की सूचना देता है । अन्य महिपियो के माय रभा अत पुर भेज दी जाती है, और राजा अपने प्रातकालीन नित्यकर्म में लग जाता है।
२ रभा से अलग हो जाने पर राजा उसके मौंदर्य का ध्यान करता हुआ उसके विरह मे व्याकुल हो जाता है। प्रतिहारी उद्यान के अनेक भाति के दृश्यो का वर्णन कर राजा के मन को बहलाने का प्रयत्न करता है, परन्तु राजा रमा के ही मवत्र में कुछ सुनने को उत्सुकता प्रकट करता है। कर्पूरिका राजा मे निवेदन करती है कि अत पुर में रभा वडे आनन्द मे है और वहाँ रानी राजीमती उमका विशेष ध्यान रखती है। कर्पूरिका इस वात का भी विश्वास दिलाती है कि राजा के प्रति रभा का गहरा प्रेम है । वह उसका प्रेमपत्र पढकर मुनाती है, जिसे रभाने गुप्तरूपेण राजा के पाम भेजा था। उमे मुनकर राजा अधिक काम-विह्वल हो उठता है। फिर विदूपक उसे अपना स्वप्न सुनाता है कि किस प्रकार विदूपक ने अपने को एक भ्रमर के रूप में देखा, और उसके बाद वह भ्रमर मे चदन वन गया, जिसका लेप रभा ने अपने कुचो के ऊपर लगाया और उन कुचो का राजा के द्वारा प्रालिंगन किये जाने पर वह किस प्रकार जाग पडा। विदूपक इस स्वप्न का मतलव यह निकालता है कि राजा शीघ्र ही रभा से भेंट कर सकेगा। राजा उससे उमी क्षण मिलने को आतुर हो उठना है। कर्पूरिका अगोक वृक्ष की एक डाल के महारे खडी हो जाती है और रभा को खिडकी में से होकर नीचे उतार लेती है। राजा और रभा मिलन का आनद उठाते है। कुछ समय के बाद पटरानी के आ जाने से दोनो पृथक् हो जाते है ।
३ प्रेमविहल पटरानी राजा का स्वागत करती है । यथेष्ट आमोद-प्रमोद के बाद राजा रानी से प्रार्थना करता है कि वह इमी प्रकार रभा मे भी मिलना चाहता है। रानी अपनी स्वीकृति देकर गयनागार में चली जाती है। तदुपरान्त रमा प्रवेश करती है। राजा प्रेमपूर्वक उसका सत्कार करता है । शृगारपूर्ण काव्य-पक्तियो को आपस में गाते हुए दोनो अनेक भाति की काम-कलापो का आनद प्राप्त करते है। रात शीघ्र ही व्यतीत हो जाती है और प्रात कालीन वदीगण का म्वर सुनाई देने लगता है। रभा अत पुर को भेज दी जाती है और राजा अपने प्रात कालीन कृत्यो के करने में लग जाता है।
नयचद्र नाटक में एक से अधिक बार इस बात की ओर सकेत करता है कि जैत्र, जय या जयतचद्र का प्रवव दिखाया जा रहा है, अत बहुत मभव है कि उसने इस कथानक को किसी प्रवध मे से लिया हो। किसी अज्ञात लेखक
'ज्ञातव्य पक्तियां इस प्रकार है पत्त तम्मि दसण्णगेसु पवलं ज खप्पराण वल, जित्त झत्ति पियामहेण पहुणा जेत्त ति नाभं तो। १, ४३।