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महाराज मानसह और 'मान - कौतूहल'
Tripur
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हुआ कि इसकी एक प्रति रामपुर के राजपुस्तकालय में है ।
कर्नल राजराजेन्द्र श्रीमन्त मालोजी राव नृसिंहराव गितोले के श्राग्रह से रामपुर राज्य के दीवान जनाव सैयद वी० एल० जैदी सी० प्राई० ई०, वार-एट-लॉ ने कृपा कर उसकी प्रतिलिपि भेजने का वचन दिया । वडी उत्सुकता मे उसकी वाट देख रहे थे कि एक दिन हमें फारसी भाषा की पाडुलिपि रामपुर राज्य से प्राप्त हो गई । यद्यपि मूल- 'मानकौनूहल' न प्राप्त कर सकने के कारण हमे कुछ खेद हुग्रा, परन्तु हमे जो कुछ प्राप्त हुआ वह मास्कृतिक इतिहास की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण था । सम्राट् आलमगीर के काश्मीर के सूबेदार फकीरुल्ला का सन् १०७३ हिजरी (ई० सन् १६९९) में किया गया 'मानकौतूहन' का फारसी - रूपान्तर हमे भेजा गया था ।
मानमदिर की विशाल हथिया पौर
उस ममय हिन्दू और मुसलमानो का सास्कृतिक मेल कितना अधिक हो गया था, यह इस पुस्तक से स्पष्ट है । संगीत की अनेक पारिभाषिक वातो के साथ-साथ उस समय के सामाजिक एव राजनैतिक इतिहास पर भी इस पुस्तक से काफी प्रकाश पडता है । महाराज मानसिंह द्वारा ग्वालियर के गौरव में जो वृद्धि हुई, वह न केवल वास्तुकला तक ही सीमित समझी जायगी, अपितु उसे ध्रुव सप्रमाण सगीत के क्षेत्र मे भी स्वीकार करना पडेगा ।