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प्रेमी-प्रभिनदन-ग्रंथ
इस पुस्तक का साराश यहाँ प्रस्तुत करना अप्रासंगिक न होगा। इस पुस्तक में दम अध्याय है।
पहले अध्याय मे लेखक (अनुवादक) ने अपना नाम फकीरुल्ला दिया है और लिखा है कि सन् १०७३ हि० मे एक पुरानी किताव मेरे देखने मे आई, जिसका नाम 'मानकौतूहल' था। इस पुस्तक का कर्ता ग्वालियराधीश राजा मानसिंह को लिखा है। मानसिंह गान-विद्या में निपुण थे और प्रसिद्ध तो यह है कि ध्रुवपद का आविष्कार इसी राजा ने किया । एक वार सयोग से नायक बख्शू पाडवीय, जो तैलगाना देश मे कुरुक्षेत्र स्नान करने आया था, देव आग (दत्य के से स्वर वाला)नायक महमूद और नायक करण इस राजा की सभा में उपस्थित हुए। राजा ने इसे स्वर्ण-सयोग समझा। शिक्षार्थियो को सुलभ करने के लिए राजा ने इन गायनाचार्यों से वाद-विवाद करके रागरागनियो के लक्षणो पर पुस्तक लिखवाई। यह पुस्तक ऐसी वनी कि जिस पर भरोसा किया जा सकता है और इसलिए मैने इसका अनुवाद फारसी मे किया। यह पुस्तक 'भरत' मत को मानती है। अनुवाद के साथ-साथ कुछ आवश्यक वाते 'भरतसगोत', 'सगीत-दर्पण' और 'रत्नाकर' से चुनकर इसमे वढा दी गई है, ताकि सीखनेवालो को उन पुस्तको के देखने की आवश्यकता न पडे । इस पुस्तक का नाम मैने 'रागदर्पण' रक्खा है, क्योकि एक छोटे-मे दर्पण में पहाड और जगल सवका दृश्य दिखाई दे जाता है । कुछ राग इसमे 'नृत्यनृत्यो' और 'चन्द्रावली' के मत मे भी लिखे है।
महाराज मानसिंह द्वारा गुजरी रानी 'मृगनयना' के लिए वनवाया गया 'गूजरी महल'
दूसरे अध्याय में राग-रागनियो का विवरण है और कुछ पारिभापिक शब्दो की व्याख्या की गई है। इस अध्याय मे यह भी ज्ञात होता है कि मालवा का प्रसिद्ध नवाव वाजवहादुर, अमीर खुशरो, शेख वहीउद्दीन, जकरिया मुल्तानी, सुल्तान हुसैन शर्की जौनपुरी गान-विद्या मे 'उस्ताद' का पद रखते थे। अनुवादक भी अपने को इस विद्या का 'आमिल' (निपुण) लिखता है।
तीसरे अध्याय म वताया गया है कि किस ऋतु में कौनमा राग, रागिनी या उनके पुत्र गाये जाने है और उनके वोलो में कौनसे अक्षर प्रारम्भ मे नहीं रखना चाहिए। साथ ही ग्रामो का भी वर्णन है।
'इस पुस्तक के पदो की भाषा वह प्राचीन हिन्दी होगी, जिसे ग्वालियरी कहा जा सकता है। इसी 'ग्वालियरी' के अध्ययन के लिए इस पुस्तक की खोज हमने की थी, परन्तु वह अध्ययन तभी हो सकेगा, जब मूल 'मानकोतूहल' प्राप्त हो जायगा-लेखक ।