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जननायों में भौगोलिक सामग्री और भारतवर्ष में जैन धर्म का प्रसार
राजधानी
श्रच्छा
मृत्तिकावती
शुक्तिमती
वीनिमय
देग
१७ वरणा
१८
१६ चंदि
२० विधुन्नीर
२१ मन
२२ भगि
२३ नट्टा (१)
२८ गान
२५ नाव
२
मयुग
पापा
भानपुरी
श्रावन्नि
कोटिवर्ष
दवेतिका'
२५३
१ मगव ( राजगृह)
मग एक प्राचीन देश गिना जाता है। उनकी गणना सोलह जनपद में की गई है। शेष जनपद है-ग, वर्ग, माप, मानव, ग्रन्छ, बन्छ, बन्छ, पाट, नार, बज्जि, मोलि, कामी, कोमल, श्रवाह (१), श्रीर मम्नुत्तर (१) । मग महावीर और वृद्ध की धर्म-प्रवृत्तियों का एर सामरेन्द्र था। मगर, प्रभान और वरदाम इनकी गणना भारत के माननीयों में की गई है जो श्रम से पूर्व पश्चिम और दक्षिण में अवस्थित थे, यद्यपि ब्राह्मण प्रन्या में मगध को पारभूमि बनाया है । श्राधूनिक पटना और गया जिलों को प्राचीन मगर कहा जाता है।
मगन की राजधानी राजगृह (ग्रामुनिग राजगिर) थी, जिनकी गणना चम्पा, मथुरा, वागणमी, श्रावस्ति, नान कापल्यपुर, शाम्बी, मिथिना और हस्तिनापुर इन प्राचीन राजधानियों के साथ की गई है। राजगृह न महानगीपनीरप्रनय नामय गरम पानी के कूट के होने या उल्लेख मिलता है । यह कुड लम्बाई में पाँच मी धनुप था श्री भार पर्वत के पास बहना था । राजगृह व्यापार का बड़ा भारी केन्द्र था और यहां दूर-दूर से लोग माल बेचने श्रौर उरीदने के लिए श्राते थे । राजगृह में महावीर भगवान् के चौदह वर्षावास व्यनीत करने का उल्लेख आता है ।` प्रसिद्ध नान्या विश्वविद्यालय राजगृह के समीप था। बौद्ध ग्रन्थी के अनुसार पाण्डव, गिज्नकूट, वेभार, इनिगिलि तया वैपुन्न इन पांच पहाडियों से घिरे रहने के कारण राजगृह का दूसरा नाम गिरित्रज था। इन पांच पहाडियां में वैभार श्री विनाच पहाडियां का जैन ग्रन्थों में विशेष महत्त्व बनाया गया है और यहाँ मे अनेक निर्तन्य और निर्ग्रन्थिनियो ने तपश्चर्या कर मोदा-साघन किया है । मगव की राजधानी होने के कारण गजगृह का दूसरा नाम मगवपुर भी था। गाविपति राजा श्रेणिक ( भभमार) राजगृह में राज्य करता था ।
'बृहत्कल्पसूत्रभाष्य १३२६३ वृत्ति ।
भगवती १५
'ठाणाग ३ १४२; श्रावश्यक चूणि, पृष्ठ १८६
'ठाणांग १०७१७; निशीय सूत्र ६ १६
* भगवती २५ पालि ग्रन्थों में इसका तपोदा के नाम से उल्लेख है (डिक्शनरी श्रॉव पालि प्रॉपर नेम्स, मलालमेकर, देखिए 'तपोदा') ।
'कल्पसूत्र ५ १२३