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प्रेमी-अभिनंदन-प्रय मां उस समय वहीं बैठी हुई थी। उसने एक सलाई लेकर अपने थूक द्वारा 'अ' के ऊपर अनुस्वार लगा दिया और अव 'अघीयता' के स्थान पर अघीयता' हो गया। पत्र कुणाल के पास पहुंचा। जब उसने खोलकर पढा तो उसमें लिखा था कि कुमार शीघ्र अन्धे हो जाये (अधीयतां कुमार) मौर्यवश की आज्ञा का उल्लंघन करना अशक्य था। अतएव कुणाल ने तपती हुई एक लोहे की सलाई द्वारा अपनी आँखें आंज लीं और सदा के लिए नेत्रहीन हो गया। कुछ समय पश्चात् कुणाल अज्ञातवेष में पाटलिपुत्र पहुंचा और राजसमा में जाकर यवनिका के भीतर गन्धर्व किया। राजा अशोक कुणाल का गन्धर्व देखकर अत्यन्त प्रसन्न हुआ और उसने उसे वर मांगने को कहा। कुणाल ने 'काकिणी" के वहाने राज्यश्री की याचना की और अपने पुत्र सम्प्रति को राजगद्दी पर बैठाया। सम्प्रति उज्जयिनी का बड़ा प्रभावशालीराजा हुआ। जन-ग्रन्यो में सम्प्रति की बहुत महिमा गाई गई है। सम्प्रति आर्य-सुहस्तिन् तथा आर्य-महागिरि का समकालीन था। सम्प्रति के विषय में कहा है कि उसने नगर के चारो दरवाजो पर दानशालाएं खुलवाई और श्रमणो को वस्त्र आदि देने की व्यवस्था की। उसने अपने रसोइयो को जन-श्रमणों का भक्त और पान से सत्कार करने का आदेश दिया और प्रात्यन्तिक राजाओ को बुलाकर श्रमणसघ की भक्ति करने को कहा। अवन्तिपति सम्प्रति दड, भट और भोजिक आदि को साथ लेकर रथयात्रा में सम्मिलित होता था और रथ के आगे विविध पुष्प, फल, खाद्य, कौडियां और वस्त्र आदि चढाकर अपने को धन्य मानता था। सम्प्रति ने अपने योद्धाओ को शिक्षा देकर साधु के वेष में सीमान्त देशों में भेजा, जिससे इन देशों में जैन-श्रमणो को शुद्ध भक्तपान की प्राप्ति हो सके। इस प्रकार राजा सम्प्रति ने आन्ध्र, द्रविड, महाराष्ट्र और कुडुक्क (कुर्ग) आदि जैसे अनार्य देशो को जैन-श्रमणो के सुखपूर्वक विहार करने योग्य बनाया। इसके अतिरिक्त सम्प्रति के समय से निम्नलिखित साढ़े पचीस देश आर्यदेश-माने गये, अर्थात् इन देशो में जैनधर्म का प्रचार हुमा
देश
राजधानी
१ मगष २ अम ३ वग ४ कलिंग ५ काशी ६ कोशल
८ कुशार्त ६ पाचाल १० जागल ११ सौराष्ट्र १२ विदेह १३ वत्स १४ शाडिल्य १५ मलय १६ मत्स्य
राजगृह चम्पा ताम्रलिप्ति कांचनपुर वाराणसी साकेत गजपुर सोरिय (शौरिपुर) कापिल्यपुर अहिच्छत्रा - द्वारवती मिथिला कौशाम्बी नन्दिपुर भद्रिलपुर वैराट
'एक रुपये के प्रस्सी भाग को 'काकिणी कहते है। यह एक प्रकार का सिक्का था । 'बृहत्कल्पसूत्रमाष्य १.३२७५-३२८९