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भारत में समाचार-पत्र और स्वाधीनता घोष ने अपने लेखो से पुष्ट किया था। उन्होने कहा कि हमे ऐसी स्वाधीनता चाहिए, जिसमें ब्रिटिश नियन्त्रण न हो। यह १९०५-६ की वात है, जब काग्रेस में स्वतन्त्रता, स्वाधीनता वा स्वराज्य जैसे किसी शब्द का प्रयोग नही हुआ था। १९०६ में दादाभाई नवरोजी ने काग्रेस के सभापति की हैसियत से पहले-पहल स्वराज की मांग पेश की। इसी समय से स्वराज काग्रेस का ध्येय हुआ। १९०७ मे स्वराज शब्द के प्रयोग पर वगाल सरकार को आपत्ति हुई तब कलकत्ता हाईकोर्ट के जस्टिस सारदाचरण मित्र और जस्टिस फ्लेचर ने निर्णय किया कि औपनिवेशिक शासन ही स्वराज है । इसलिए स्वराज का आन्दोलन करना राजद्रोह नही है । 'वन्देमातरम्' इस प्रकार के स्वराज्य का विरोवी था, क्योकि इसका कहना था कि औपनिवेशिक लोग तो अंगरेजो के भाईवन्द है, पर हमारा उनसे कोई नाता नही है । इसलिए हमें उनका स्वराज्य नही, पूर्ण स्वतन्त्रता चाहिए।
१९०६ में 'वन्देमातरम्' बन्द हो गया और पूर्ण स्वतन्त्रता का आन्दोलन भी रुक गया । काग्रेस पर १९१६ तक माडरेटो का प्राधान्य रहा और ये पूर्ण स्वतन्त्रता का नाम लेना भी पाप समझते थे। इसके बाद ही लोकमान्य तिलक पर राजद्रोह का मामला न चलाकर सरकार ने राजद्रोह प्रचार न करने के लिए उनसे जमानतें लेने का मामला चलाया। पर लोकमान्य ने यह सिद्ध किया कि शासन में परिवर्तन कराने के लिए हमें वर्तमान शासन की त्रुटियाँ दिखाना आवश्यक है और ऐसा करना राजद्रोह प्रचार करना नही है । वम्बई हाईकोर्ट ने यह सिद्धान्त स्वीकार किया और इस समय से गामन को श्रुटियां दिखाने का हमारा अधिकार स्वीकार किया गया।
१९२० से काग्रेस में पूर्ण स्वाधीनतावादी एक दल उत्पन्न हो रहा था। धीरे-धीरे यह बढने लगा और १९३० में काग्रेस ने पूर्ण स्वाधीनता वा स्वराज अपना ध्येय घोषित किया। महात्मा गान्धी भी इससे सहमत हुए। श्राज ब्रिटिश सरकार भी भारत का पूर्ण स्वाधीनता का अधिकार स्वीकार करती है, पर देती नही है । राजनैतिक आन्दोलन इधर कई वर्षों से काग्रेस चला रही है सही, परन्तु भारतीय सामाचार-पत्र ही उसके अग्रदूत रहे है और है । जहाँ समाचारपत्रो का प्रावल्य नहीं है, वही अनाचार, अत्याचार और अन्धकार है। इसलिए समाचार-पत्रो का वल वढाना प्रत्येक स्वाधीनताप्रेमी देशभक्त का कर्तव्य है। हमारे देश में एक भी ऐसा पत्र नही है, जिसकी एक लाख प्रतियाँ निकलती हो । यूरोप और अमेरिका मे ऐसे अनेको पत्र है जिनकी लाखो प्रतियां छपती है । हमारे देश में भी शहर-शहर और जिले-जिले में पत्र होने चाहिए। इससे हमारी स्वतन्त्रता बहुत निकट आ जायगी। काशी]