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प्रेमी-अभिनंदन-प्रथ पर द्राविड जाति के शिवाज करोडो के देव देव महादेव वन कर लगभग हर मन्दिर के अन्दर मौजूद है। चतुर्भुज विष्णु इतने अपना लिए गए कि हिन्दुओ के सब अवतार विष्णु के अवतार गिने जाते है। यह उस महान समन्वय की सिर्फ एक छोटी-सी मिमाल है।
जिस तरह की टक्कर मार्यों और द्राविडो में रही, उसी तरह की थोडी-बहुत उसके बाद के ज़माने मे हिन्दुओ और जैनियो में और आठवी सदी ईस्वी तक शवो और शाक्तो में, यहां तक कि राम के भक्तो और कृष्ण के उपासको में वरावर होती रही। इन टक्करो में एक दूसरे का बहिष्कार भी हुआ और लाठियां और तलवारे भी चली। आजतक'हस्तिनापीड्यमानोऽपिन गच्छत जैनमन्दिरम्' जैसे फिकरे देश के साहित्य से मिटे नहीं है। ये सव टक्करेंएक कुदरती ढग से पैदा हुई और उतने ही कुदरती ढग से मिट गई। पुराने जमाने के ये सब सवाल आज इतिहास की एक कहानी रह गए है।
इस्लाम के आने के साथ देश में नई टक्करो का होना कुदरती था। टक्करें शुरू हुई। देश के अलग-अलग हिस्से में और जिन्दगी के अलग-अलग पहलुओ में उन्होने अलग-अलग रूप लिये। फिर भी सात सौ-पाठ सौ बरस तक देश के इस सिरे से उस सिरे तक सैकडो शहरोऔर हज़ारो गांवो में हिन्दू और मुसलमान प्रेम के साथ मिलजुल कर रहते रहे। इस सारे समय में वाहर से आकर देश में बस जाने वाले मुसलमानो की तादाद कुछ हजार से ज्यादा नहीं थी। वाकी सब लाखो और करोडो आदमी, जिन्होने इस्लाम धर्म को अपनाया, यही के रहने वाले और यही के हिन्दू माता-पिता की पोलाद थे। हर गांव और हर शहर में हिन्दू और मुसलमान एक ही जवान बोलते थे। एक-दूसरे के त्यौहारो और तकरीवो, व्याह-शादियो और रीति-रिवाजो में शरीक होते थे। एक-दूसरे को 'चाचा','ताया','मामा', 'भाई' वगैरह कहकर पुकारते थे। ज्यादातर मुसलमान घरानो में आजतक सैकडो हिन्दू-रस्में पालन की जाती है । जैसे दसूठन, सालगिरह, कनछेदन, नकछेदन, शादी में दरवाजे का चार, तेल चढाना, हल्दी चढ़ाना, कलेवा वाँधना, कंगना वाँधना, मंडवा। ऐसे ही हिन्दुओ ने काफी रस्में मुसलमानो से ली। जैसे, घोडी चढ़ना, जामा, सेहरा, शहवाला। दोनो ने मिलकर इस देश की कारीगरी, चित्रकारी, उद्योग-धन्धे, कला-कौशल, तिजारत, संगीत वगैरह को अपूर्व उन्नति दी। मुगलो की सल्तनत का ज़माना इन सब वातों में इस देश का सबसे ज्यादा तरक्की का ज़माना माना जाता है। सत्तरहवी सदी ईस्वी के आखीर और अठारहवी सदी के शुरू के सब विदेशी यात्री, जो समय-समय पर इस देश में पाये, इस बात में एक राय है कि उस जमाने मे दुनिया का कोई देश धन-धान्य, सुख-समृद्धि, तिजारत और उद्योगधन्धो में हिन्दुस्तान का मुकाविला नही कर सकता था। राजामओ राजानो में लडाइयाँ होती थी, पर जिस तरह कहीकही हिन्दू और मुसलमान लडे है, उसी तरह हिन्दू हिन्दू और मुसलमान मुसलमान भी आपस में लडे है । वाहर से हमला करने वाले मुसलमानो के खिलाफ देश के मुसलमान हुकमरानो का डटकर लडना और यहाँ के हिन्दू राजाओं का उनका साथ देना एक मामूली घटना थी। मुसलमान बादशाहो की फौज में हिन्दू सिपाही और हिन्दू सेनापति, और हिन्दू राजाओ की सेना में मुसलमान सिपाही और मुसलमान सेनापति, ऐसे ही हिन्दू राजाप्रो के मुसलमान प्रधान मन्त्री और मुसलमान बादशाहो के हिन्दू वजीरे-आज़म सात सौ वरस के भारतीय इतिहास में कदम-कदम पर देखने को मिलते है।
___ उम सारे जमाने में हमें मुल्क के जीवन में तीन साफ अलग-अलग लहरें बहती हुई दिखाई देती है । एक इस्लाम के आने से पहले को ब्राह्मणो के प्रभुत्व, जात-पात और छुवाछूत की तग हिन्दू लहर । दूसरी फिकह (कर्मकाड) का कट्टरता से पालन करने वाली तग इस्लामी लहर और तीसरी दोनों के मेल-जोल की वह प्रेम की लहर, जो दोनो की तग-प्यालियों से ऊपर उठकर दोनो के गुणो को अपने अन्दर लिये हुए थी। रहन-सहन, खान-पान, चित्रकारी, मकानो का बनाना, धर्म और सस्कृति, सव में ये तीनो लहरें साफ दिखाई दे रही थी। इनमें धीरे-धीरे तग-ख्याली की दोनो लहरे मूखती जानी थी और मेल-मिलाप की लहर बढती और फैलती जा रही थी। आशा होती थी कि देश में ममन्वय की पुरानी परम्परा को कायम रखते हुए एक दिन यह प्रेम की लहर सारे मैदान को ढक लेगी और देश के अन्दर