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प्रेमी-अभिनदन-प्रथ १८८ (लाहौर, प० मुकुन्दराम जो), 'हिन्दूबान्धव' (लाहौर, नवीनचन्द्र राय), १८७८ मे 'हिन्दीप्रदीप' (प्रयाग) अथवा उसके पहले 'शुभचिन्तक' (कानपुर), १८७८ 'भारतमित्र' (कलकत्ता), १८७६ 'सारसुधानिधि' (कलकत्ता), १८८० में 'उचितवक्ता (कलकत्ता), १८८६ मे 'राजस्थान-समाचार', (अजमेर), 'प्रयाग समाचार' (प्रयाग), १८८४ में 'भारत जीवन' (काशी), १८६० में 'हिन्दीवङ्गवासी' (कलकत्ता) श्रीर १८९४ मे 'वेंकटेश्वर समाचार' वम्बई से निकला । मिर्जापुर से उपाध्याय बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' साप्ताहिक 'नागरी नीरद' और मासिक 'श्रानन्दकादम्बिनी प्रकाशित करते थे। और भी कई पत्र १६०० तक निकले। कुछ चले और कुछ वन्द हो गये।
राज्यो से भी पत्र निकले जिनमे सर्वश्रेष्ठ पत्र उदयपुर का 'सज्जनकीतिसुधाकर' १८७४ मे निकला। पीछे चलकर चालीस वर्ष बाद इसमे प्रशसा योग्य कुछ नही रह गया था। उद्धृत लेख छपते थे और टाइप भी घिसा हुआ होता था। 'मारवाड गजट' जोधपुर से इससे आठ वर्ष पहले निकला था। १८८७ मे रीवा से 'भारतभ्राता' और १८६० में बूंदी से 'सर्वहित' निकला। राज्यो से ऐसे पत्र भी निकले, जो हिन्दी और उर्दू अथवा हिन्दी और अंगरेजो में निकलते थे। 'गवालियर गजट' और 'जयपुर गजट' दूसरी श्रेणी के थे । 'जयपुर गजट' तो १८७६ मे ही जारी हुआ था। जोधपुर का 'मारवाड गजट' और अजमेर का 'राजपूताना गजट' हिन्दी और उर्दू दोनो मे निकलते थे।
आश्चर्य है कि जिन राज्यो में आज से साठ-सत्तर वर्ष पहले इन पत्रो का प्रकाश था, आज ग्वालियर को छोडकर जहाँ से 'जयाजी प्रताप अंगरेजी और हिन्दी में निकलता है, उक्त सभी राज्यो मे अन्धकार है।
__ दैनिक पत्रो मे कालाकांकर का 'हिन्दोस्थान' सवसे पहला है । इग्लैंड में १८८३ से १८८५ तक राजा रामपाल सिंह ने प्रकाशित किया था। पहले यह अँगरेजी और हिन्दी मे और बाद को उर्दू में भी छपता था अर्थात् तीन भाषाओ में निकलता था। १ नवम्बर १८८५ से कालाकांकर से वह दैनिक हिन्दी मे निकलता था। इसके बाद बावूसीताराम ने कानपुर से एक दैनिक पत्र हिन्दी मे निकाला था, जो शायद छ महीने चलाया। 'राजस्थान-समाचार' जिसे मुशो समर्थराम ने अजमेर से निकाला था, शायद वोर युद्ध के समय पहले द्विदैनिक और वाद को दैनिक कर दिया था। इसका वार्षिक मूल्य दस रुपया था। यो तो 'भारतमित्र' एक वार १८६७ मे और दूसरी वार १८६८ में दैनिक हुआ, पर एक साल से अधिक वह दूसरी बार भी दैनिक न रहा । पर १९१२ से कोई वीस-पच्चीस वर्ष तक वह दैनिक रहा। आज तो हिन्दी में चार दैनिक कलकत्ते से, दो वम्बई से, चार दिल्ली से, दो लाहौर से, तीन कानपुर से, एक प्रयाग से, तीन काशी से और दो पटने से, इस प्रकार एक दर्जन से अधिक दैनिक, निकल रहे है।
१६१३ तक दैनिक पत्रो में ताज़ा खवरो की कोई व्यवस्था न थी। इस साल 'भारतमित्र' मे पहले-पहल तार लिये गये । इसके बाद 'कलकत्ता समाचार' निकला। इसमे भी ताजा तारो का प्रवन्ध था। आजकल कई दैनिक पत्रो में टेलिप्रिंटर भी लगे हुए है। ऊपर से देखने में हिन्दी-समाचार-पत्रो की वडी उन्नति हुई है। किसी को घाटे-टोटे की शिकायत नहीं है, परन्तु लिखा-पढी में शिथिलता आ गई है। दैनिकपत्रो की भाषा में कुछ त्रुटि तो रहती ही है, पर सच तो यह है कि भाषा को अोर सम्पादको का ध्यान भी नहीं है । और तो क्या, कभी-कभी अंगरेजी का उल्था भो वडावेढगा होता है। मालिको को अर्थकष्ट होता तो वे इन त्रुटियो को दूर करते, पर उन्हे अर्थ की चिन्ता नही है। सम्पादको को शिक्षा का मुख्य कार्य भाषा और अनुवाद से प्रारम्भ होना चाहिए। इसके विना सम्पादक को शिक्षा व्यर्थ हो जायगी। सम्पादको को यह न समझना चाहिए कि हम सर्वज्ञ है, पर उन्हे सर्वज्ञता प्राप्त करने के लिए निरन्तर परिश्रम करना चाहिए।
स्वाधीनता के अग्रदूत __ भारतीय समाचारपत्रस्वाधीनता के अग्रदूत है । आज जिस पूर्ण स्वराज्य वा स्वाधीनता के लिए आन्दोलन हो रहा है, उसको कल्पना पहले समाचारपत्र 'वन्देमातरम्' ने प्रकट की थी। मेरे आदरणीय मित्र स्वर्गीय वाबू विपिनचन्द्र पाल न अपने अगरेजो दैनिक 'वन्देमातरम्' द्वारा पूर्ण स्वाधीनता की पाकाक्षा व्यक्त की थी। इसे ही वावू अरविन्द