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उत्तर भारत के नाथ सम्प्रदाय की परम्परा में बगाली प्रभाव
२०३ (२) गगन शिखर पाछ अम्बर पानी (पृष्ठ ६१), मिलानो पुरानी वगला-मइ अहारिल गणत पनिमा (मेरे द्वारा गगन का पानी पिया गया है, चर्यापद ३५) ।
(३) ऊंचे ऊंचे परबत विषम के घाट। तिहां गोरखनाथ के लिया से वाट ॥ (पृष्ठ १३४), मिलामो पुगनी बगला-ऊँचाऊंचा पावत तहि बसइ शबरी बाली (ऊँचे-ऊँचे पर्वतो पर शवरी वालिका वसती है, चर्यापद २८)।
(४) गिनान ची डालिला पालखु (पृष्ठ १४०); मिलामो पुरानी वगला-तिम धाउ खाट पडिला (त्रिधातु की खाट पडी है, चर्यापद २८)।
(५) माया (-माअ, माता) मारिली, मावसी (मौसी), तजिली, तजिला कुटम्ब वन्धु । सहस्रदल कवल तहां गोरख मन सन्धू ॥' (पृष्ठ १४१), मिलानो पुरानी बगला मारिअ शासु ननन्द घरे शाली। मान मारिआ कान्ह भइम कवाली ॥ (साम, ननद और साली को तथा माता को मार कर कान्ह कापालिक हो गया, चर्यापद ११)।
(६) ग्यान गुरु नाउ' तूबा अम्हार मनसा चेतनि डाडी (पृष्ठ १०६) मिलानो पुरानी बगलासूज लाउ शशी लागेलो ताती, अणहा दाडी (सूर्य वीणा की लौकी बन गया, चद्रमा तात वना, और अनहद की डण्डी हो गई, चर्यापद १७)।
(७) गावडी के मुख में बाघला विनाइला' (पृष्ठ १२७), मिलानो पुरानी बगला-वलद विनाइल गविना वाझे (वैल के तो बछडा उत्पन्न हुआ और बाझ गाय से, चर्यापद ३३), मध्यकालीन बगला-व्याघ्रर समुखे जेन समर्पिला गोरू (मानो व्याघ्र के सम्मुख एक गाय सौंपी गई, गोरक्ष-विजय पृष्ठ १२१)।
(८) नाचत गोरखनाथ धुघरी चै घात (पृष्ठ ८७), बगला से मिलायो नाचति ने गोर्खनाय घुघरेर रोले (गोरखनाथ घुघुरुयो के गले या गब्द पर नृत्य करते है, गोरक्ष-विजय पृष्ठ १८७) । (९) दिवसइ बाधणी मन मोहइ, राति सरोवर सोपइ ।
जाणि बुझि रे मुरिख लोया घरि घरि बाधणी पोषइ ॥ (पृ० १३७) । मिलामो मध्यकालीन बंगला
प्रभागिया नरलोके किछुइ नाहि बुझे रे, घरे घरे पालन बाधिनी ।
दिवा हैले वाघिनी जगतमोहिनी रे, रात्रि हले सवाग शोषे। (गोरक्ष-विजय पृ० १८७) (१०) पुरिल वकनालि (पृ० १५५), मिलानो मध्यकालीन बँगला-बांका नाले साघो गुरु (हे गुरुदेव, चक्रनाल अर्थात् सुषम्ना योग को साधना करिए, गोरक्ष-विजय पृ० १५)।
'गोरख-बानी' के कुछ छदो का वृत्त प्राय स्पष्टरूप मे बगला का छद पयार है। इन छदो की भाषा में भी वगला प्रभाव दृष्टिगोचर है। ऊपर के उद्धरणो मे कुछ उदाहरण द्रष्टव्य है। अन्य उदाहरण नीचे दिए जाते है - (क) एते कछु कहिला गरु सबै भेला भोले ।
सर्वरस खोइला गुरु वाघनी के कोल ॥ (पृ० ८८), मिलानो-सर्वधन हाराइला कामिनीरे कोले (तुमने कामिनी की गोद में सव धन नष्ट कर दिया, गोरक्ष-विजय पृ० ६६)।
'इस पक्ति का पाठ अशुद्ध है । शुद्ध पाठ 'महसर कवल तहाँ गोरख वाला जहाँ मन मनसा सुर सन्धू' होगा।
पाठातर-दो'। 'पाठभेद-बिवाइला'। 'पाठातर-कप्यिला। "पाठातर-पोईला, निस्सदेह बगला का 'खोयाइला'। 'पाठातर-बोले।