________________
१८४
प्रेमी-अभिनदन- प्रथ
मे भडाफोड क्या किया, बैठी वरें उठाई। ये निर्वासित किये गये और इनकी तीस हजार की सम्पत्ति सरकार हडप गई। तीसरे सम्पादक मद्रास के हम्फ्रीज थे, जिन्होने सरकार से लाइसेन्स वा अधिकार-पत्र लिये विना ही पत्र प्रकाशित करना प्रारम्भ किया था। इनके लेखो से सरकार इतनी चिढ गई कि जहाज पर इन्हे इंग्लैंड के लिए चढा दिया । पर ये रास्ते से ही निकल भागे । लार्ड हेस्टिंग्ज़ के पहले नियम था कि छपने के पहले लेखादि देख लिये जायँ । पर इन्होने यह प्रि-सेन्सरशिप उठा दी। इस सुभीते के साथ ही एक वडा असुभीता यह हो गया कि १६८८ में 'विल प्रॉव राइट्स' द्वारा व्यक्तिस्वातन्त्र्य और भाषणस्वातन्त्र्य के जो अधिकार ब्रिटिश प्रजा को मिले थे, वे १८१८ के तीसरे रेगुलेशन द्वारा भारतीय प्रजा से छीन लिये गये, क्योकि इसके अनुसार कोई मनुष्य विना विचार के ही वर्षो कैद किया जाने लगा । यह रेगुलेशन आज भी व्यवहार में आता है और नौकरशाही के शस्त्रागार की शोभा बढा रहा है ।
पत्रो की पार्टियाँ
जैसा ऊपर बताया गया है ईस्ट इंडिया कम्पनी के कर्मचारियो को निरकुशता से मोर्चा लेने के लिए अँगरेज सम्पादक ही सामने आते रहे और उन्होने वडे साहस, निष्ठा और त्याग से यह काम किया। इस ममय पत्रो की पार्टियों बन गई थी । एक पार्टी तो परम्परावादियो की थी और दूसरी मुवारको की। दूसरी के नेता राजा राममोहन राय थे । ये दोनो भारतवासियो की पार्टियां थी, परन्तु इनमें अँगरेज़ भी शामिल हो जाते थे । जो निरकुशता के समर्थक थे, वे परम्परावादियो की हाँ में हाँ मिलाते थे और जो उन्नतिशील विचारो के पक्षपाती थे, वे सुधारको के महायक थे । ये ही समाचार-पत्रो की स्वतन्त्रता के लिए लडते थे। पहले महासमर मे हम लोगो ने देखा था कि सरकार ने मि० बी० जी० (वेनजामिन गाइ) हार्निमैन को भारत से निर्वासित कर दिया था । पर उन दिनों यूरोपियन सम्पादको का निर्वासन साधारण घटना थी। हम्फ्रीज़ और नानी के बाद वगाल सरकार ने सिल्क वकिंघम को भी जहाज पर वैठाकर इंग्लैंड रवाना कर दिया था। ये राजा राममोहन राय के मित्र और आदर्श पत्रकार थे ।
सिल्क बकिंघम के 'कैलकटा जर्नल' का प्रभाव घटाने के लिए विपक्ष ने १०२१ में 'जान बुल' निकाला । पर सव उदारपत्र इसके विरोधी हो गये और यह नीम सरकारी पत्र समझा जाने लगा । लार्ड हेस्टिग्ज़ के जाते और जान ऐडम के अस्थायी गवर्नर जनरल बनते ही सिल्क बकिंघम पर ग्राफत आ गई । इन्होंने डा० ब्राइम की नियुक्ति का विरोध किया था । डा० ब्राइस स्काचचचं के चैपलेन थे और स्टेशनरी क्लर्क नियुक्त हुए थे। बस, बुकिंघम जहाज़ पर चढाकर इंग्लैंड भेज दिये गये । पर ब्राइस की नियुक्ति कोर्ट श्रॉप डाइरेक्टर्स को भी पसन्द न श्राई । इसलिए बकिंघम ने सरकार और कम्पनी दोनो को पेनशन देने के लिए लाचार किया और फिर वही से 'प्रोरियंटल हेरल्ड' निकाल दिया । फिर भी ऐडम अपनी हरकतो से बाज नही आये और उन्होने पत्रो और प्रेसो पर नये प्रतिबन्ध लगाये, जिनके फलस्वरूप राजा राममोहन राय को अपना फारसी पत्र 'मोरात-उल-अखबार' बन्द करना पडा ।
बेनटिक की उदारता
·
लार्ड ऐम्हटं ने रेगुलेशनो का कडाई से पालन किया, पर १८२८ में लार्ड विलियम वेनटिक के आते ही हवा बदल गई। इन्होने खुल्लम खुल्ला कहा, 'मैं समाचार पत्रों को मित्र मानता हूँ और सुशासन में सहायक समझता हूँ ।" जब राजा राममोहन को गवर्नर जनरल का यह रुख मालूम हुआ तव वे फिर पत्र प्रकाशन में प्रवृत्त हुए । १८२६ में उन्होंने 'बंगाल हेरल्ड' निकाला और अपने मित्र रावर्ट माटगोमरी मार्टिन को उसका सम्पादक नियुक्त किया । ये वही माटगोमरी मार्टिन थे, जिन्होने हिसाव लगाकर बताया था कि भारत से कितना धन इग्लैंड गया है और अवतक खिंचा चला जाता है । माटगोमरी मार्टिन के इस सिद्धान्त को ही दादाभाई नवरोजी ने अपनी 'Poverty and un-British Rule in India' में प्रमुख स्थान दिया था। राजा राममोहन और द्वारकानाथ ठाकुर ( कवीन्द्र रवीन्द्रनाथ के पितामह) सतीप्रथा के भी विरुद्ध थे और जब लार्ड विलियम वेर्नाटक ने ब्रिटिश भारत से ( क्योकि वे