________________
प्रेमी-अभिनंदन-ग्रंथ १७०
Nacional) नाम के सरकारी संग्रहालय में है। इस ग्रन्थ के प्रारम्भ के पच्चीस पृष्ठ नष्ट हो गये है। इसलिए यह निश्चय करना बडा कठिन है कि इसका बनाने वाला कौन था। मगर इस ग्रन्थ की छपी हुई एक प्रति पुर्तगाल में मिली है। इसीसे यह निश्चित हुआ है कि इसका निर्माणकर्ता 'फादर एतिएन द ला क्रुवा' (Fr. Etienne de la Crorx) था और यह सन् १६३४ में रायतूर के छापेखाने में छपी थी।
इसी छापेखाने में छपी हुई एक दूसरी किताव लिस्वन के ग्रन्थ-सग्रहालय में मिली है। यह गोवे की मराठी वोली का व्याकरण है। इसका नाम 'प्राति द लिंग्व कानारी' (Arte de Lingua Canarim) है। इसको फादर स्टिफस ने बनाया है। इसका मुद्रण काल सन् १६४० है।'
लिस्वन के सग्रहालय में तीसरी किताव रायतूर के छापेखाने में छपी हुई और है । वह मराठी भाषा में है। उसका नाम 'ख्रिस्ती धर्म सिद्धान्त' (Doutrina Christa) और बनाने वाला स्टिफस है। इसका मुद्रण काल सन् १६२२ ईस्वी है।
इसी सग्रहालय में उक्त छापेखाने की छपी हुई चौथी किताव 'सेंट अटनी का पुराण' है। उसका लेखक 'फादर आन्तोनिय द सालदाज्य' (Fr Antonio de Saldanha) है । यह सन् १६५५ ईस्वी में छपी थी।
गोवे के सरकारी ग्रन्थ-सग्रहालय में सन् १६५८ ईस्वी की छपी हुई एक और पुस्तक है । उसको 'फादर मिंगेल द आलमैद' (Fr Minguel de Almeida) ने बनाया है। इसका नाम है 'किसान का वाग' (Jardim dos Pastores)। इसकी भाषा कोकणी मराठी और लिपि रोमन है।
गोवे के सग्रहालय में सन् १६६० में रायतूर के छापेखाने में छपी 'दैविक आत्मगत भाषण' (Sohloqulos Divinos) नामक पुस्तक और है, जिसके कर्ता जुझाव द पेंद्रोज (Joao de Pedroza) है । इसकी भाषा कोकणी मराठी और लिपि रोमन है।
पोर्तुगीज़ के धर्म-प्रचारक ईसाई लोगो का मलावार में भी धर्म-प्रचार का प्रयत्न जोरो से चल रहा था। फादर फासिस्क द सीज अपने उपरिनिर्दिष्ट ग्रन्थ में लिखता है कि जुवाव गोसालविस् (Joao Gonsalves) ने मलावारी लिपि के टाइप बनाये थे। उसने कन्नडी लिपि के टाइप बनाने का भी इरादा किया था, परन्तु अक्षरो की विचित्र आकृति, उच्चारण निश्चित करने की कठिनाई और बोलने वाले लोगो की सख्या की कमी के कारण उसने यह इरादा छोड दिया। गोवे के अन्दर बोली जाने वाली मराठी को पोर्तुगीज 'कानारी' वोली कहते है। प्राचीन काल में मराठी भाषा कन्नडी लिपि में भी लिखी हुई मिलती है।
___ पहले छापेखाने को 'लिहित मडप' कहते थे। सन् १६५८ में छपी हुई 'किसान का वाग' नामक पुस्तक में लिखा है-"लिहित मडपी गसिला।" यह नाम सबसे पहले पोर्तुगीज़ लोगो ने छापेखाने को दिया था। इससे पहले छापने की मशीन का कोई देशी नाम नहीं था। x
X हिन्दुस्तान में छापाखाना प्रारम्भ करने का दूसरा प्रयत्ल डेनिश मिशनरियो ने किया। ९ जुलाई सन् १७०६ को 'वारथोलोमेव जिजेनवल्ग' (Bartholomew Ziegenbalg) नामक मिशनरी अपने साथी 'हेनरी फुश्चान' (Henry Plutschan) के साथ हिन्दुस्तान में आया। उस समय फ्रेडरिक चतुर्थ राज्य करता था। उसने तजावर के पास आकर ट्राक्वेवार (Tranquebar) में ईसाई धर्म प्रचार करने का काम प्रारम्भ किया। शुरू-शुरू में उसे वडी कठिनाइयाँ झेलनी पडी, परन्तु पीछे उसको सफलता प्राप्त होने लगी। उसने 'तानावडी' नामक प्रसिद्ध तामिल कवि को ईसाई बनाया। इस कवि ने तामिल भाषा में महात्मा ईसा का पद्य में जीवनचरित लिखा।
X
'इस सम्बन्ध में विशेष जानकारी के लिए लेखक को 'मराठी व्याकरणाची कुलकथा' नामक पुस्तक देखिए ।