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हिंदुस्तान में छापेखाने का प्रारभ
१७१ यह मिशन मार्टिन लूथर के अनुयायी प्रोटेस्टैट लोगो का था। इसलिए डेन्मार्क की तरह जर्मनी व इग्लैंड के प्रोटेस्टेंट लोगो ने इस मिशन की सहायता की। वहाँ से 'जॉन फिन्के' (Jonas Fincke) नामक प्रेसमैन (Pressman) छापाखाना, टाइप और कुछ पोर्तुगीज भाषा में छपी हुई 'नये करार' की पुस्तको के साथ हिन्दुस्तान भेजा गया। मगर ब्रेज़िल के पास फ्रेंच लोगो ने उस जहाज़ पर हमला किया, जिसमें फिन्के आ रहा था। फिन्के युद्ध-वन्दी की तरह पकडा गया। कुछ समय के बाद वह छोड दिया गया। मगर दुर्भाग्य से वह रास्ते में ही ज्वर से पीडित होकर मर गया। छापाखाना हिन्दुस्तान में आया, परन्तु उसको चलाने वाला कोई न था।
कुछ दिन वाद मालूम हुआ कि ईस्ट इडिया कम्पनी की फौज में एक सिपाही है। वह मुद्रणकला की कुछ जानकारी रखता है। वह बुलाया गया और उसकी सहायता से छापाखाना खडा किया गया। इसमें कुछ धार्मिक पुस्तके, प्रश्नोत्तर के रूप में और प्रार्थना के रूप में छापी गई। उनमें से एक भी पुस्तक अव नहीं मिलती।
इसी मिशन में 'फ्रेडरिक स्क्वार्ट ज' (Frederick Schwartz) नामक एक पादरी था। उसने प्रयत्न करके नजावर के राजा सरफौजी से उसकी राजधानी में एक छापाखाना कायम कराया। इस छापेखाने मे मराठी और सस्कृत भाषा मे पुस्तकें छापी गईं। ब्रिटिश म्यूजियम में मराठी भाषा मे छपी हुई 'ईसप-नीति' नाम की सचित्र पुस्तक है। इसका अनुवाद सरफोजी महाराज के मुख्य मन्त्री सखण्णा पडित ने किया था। इसकी एक प्रति सरफौजी महाराज ने 'सर अलेक्जेंडर जॉनस्टोन' को, जब वे तजावर गये थे, भेंट में दी थी।'
इससे स्पष्ट है कि यह पुस्तक सन् १८१७ के पूर्व किसी समय तजावर के छापेखाने में छपी थी। __ तजावर के 'सरस्वती महल' पुस्तकालय में इस छापेखाने में छपे हुए माघकाव्य, कारिकावली, व मुक्तावली नाम के सस्कृत ग्रन्थ मौजूद है।
ये मूल ग्रन्थ न तो मैंने देखे है, न उनका कोई छाया-चित्र ही मेरे पास है। इसलिए उनके सम्बन्ध में विशेष रूप से कुछ नही कहा जा सकता, परन्तु इतना तो ज्ञात है ही कि छपाई ब्लॉक-प्रिंटिंग नहीं है, टाइप-प्रिंटिंग है। इस कथन का आधार यह है जिस 'ईसप नीति' का ऊपर जिक्र किया है, उस पर हाथ से लिखा है, "The present Raja of Tanjore procured a printing press from England, established it in his own palace and had a great many of the Brahmins, who held appointments near his person, instructed in printing with Marathi and Sanskrit types" (अर्थात्-तजावर के वर्तमान राजा ने इग्लैंड से एक प्रेम मंगवा कर अपने महल में खडा किया। उसके लिए कई आदमी (ब्राह्मण) रक्खे। उन्होने मराठी और सस्कृत टाइपो में छापना सिखाया।)
सम्भवत यह वह प्रति होगी जिसे सरफौजी महाराज ने 'सर एलेक्जेंडर जॉनस्टोन' को भेट किया था और इसमें मर एलेक्जेंडर ने स्वय या उसके अन्य किसी व्यक्ति ने उपर्युक्त वात लिख दी होगी। फिर उसे ब्रिटिश म्यूजियम को भेट कर दिया होगा।
सरफौजी महाराज की तरह ही पेशवाई के प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ 'नाना फडनवीस' ने मुद्रण-कला की तरफ लक्ष किया था। उस समय लहिए ग्रन्थ लिखकर वेचते थे। गरीव ब्राह्मण ग्रन्थ नहीं खरीद सकते थे। इसलिए पनिक लोग ग्रन्थ खरीदते थे और ब्राह्मणो को दान में देते थे। जव 'नाना फडनवीस' ने अंग्रेजी में छपे ग्रन्थ देखे तव उनके मन में भी नागरी अक्षर वनवा कर उनमें गीता छपवाने की इच्छा जाग्रत हुई। उन्होने नागरी ब्लॉक तैयार करने
History of Modern Marathi Literature by GC Bhate 1939, p 65 * The Journal of the Tanjore Saraswati Mahal Library, Vol I, No 2, 1939-40,
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History of Modern Marathi Literature, p 65