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हिंदुस्तान में छापेखाने का प्रारंभ फादर थोमस स्टिफम (Father Thomas Stephens) नाम का अंग्रेज सबसे पहले हिन्दुस्तान में आया था। इसने 'ओवी" (छन्द विशेष) में 'क्राइस्ट पुराण' नामक अन्य मराठी भाषा में लिखा। उसमें करीव ग्यारह हजार प्रोवियाँ है। वह ग्रन्थ सेट इग्नेशस कॉलेज के छापेखाने में सन् १६१६ ईस्वी में छपा। उसकी भाषा मराठी है, परन्तु अक्षर रोमन लिपि के है। उसकी सन् १६४६ में दूसरी और सन् १६५४ में तीसरी आवृत्ति प्रकाशित हुई, परन्तु आश्चर्य तो इस बात का है कि इन तीन पावृत्तियो में से एक की भी प्रति कही नही मिलती। मैने पोर्तुगाल फ्रास, जर्मनी, रोम और इंग्लैंड में इसकी तलाश की, परन्तु कही नहीं मिली। हाँ, इस ग्रन्थ की रोमन, देवनागरी और कन्नडी लिपि में बहुत सी हस्त-लिखित प्रतियां मिलती है।
विएन (Wien) के 'नेशनल वाइग्लियोथिक' (National Bibliothek) नामक सरकारी संग्रहालय में इम ग्रन्थ की देवनागरी में हस्तलिखित प्रति है। इसी तरह लन्दन के 'दी स्कूल ऑव अोरिअटल स्टडीज' (The school of Oriental Studies) के सग्रहालय में भी इसकी एक प्रति है। इस ग्रन्थ की चौथी श्रावृत्ति मन् १९०७ में मि० मालडाना ने प्रकाशित की थी।
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1640.
101.
कानारी व्याकरणका टायटिल पृष्ठ (१६४०) रायतूर के छापाखाने मे सन् १६३४ में एक और अन्य मराठी भाषा में छपा था। इसका नाम है 'सेट पिटर पुराण' । इसमें वारह हजार के करीब प्रोवियाँ है। इसकी एक प्रति गोवे के विब्लिसोतेक नासियोनाल' (Biblioteca
'महाराष्ट्र के प्रसिद्ध महात्मा ज्ञानेश्वर का धार्मिक ग्रन्थ इसी 'ओवी'छन्द में लिखा गया है। महाराष्ट्र में इनकी प्रोवियां इसी तरह प्रसिद्ध है, जिस तरह उत्तर भारत में सन्त कबीरदास की साखियाँ और महात्मा तुलसीदाम की चौपाइयां।
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