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उपेक्षित वाल-नाहित्य
१६५ खोज-सम्बन्धी कहानियो नया महापुरुषो के जीवन की घटनाओं के पढने में अभिरुचि दिखाई। उम सब को ध्यान में रखकर पुस्तको की रचना की गई।
हम लोग भी गत दस वर्षों में इस दिशा में लगे हुए है। अपने सूक्ष्म अध्ययन मे हम जिस परिणाम पर आये है, वह मक्षेप में इस प्रकार है
१ हमें अवैज्ञानिक माहित्य वच्चो को नहीं देना चाहिए। न ऐमा साहित्य जिममें विवादास्पद चीजें हो। जमे पुनर्जन्म, ईश्वर, स्वर्ग, नर्क और भूत-प्रेत की कहानियाँ । ऐमा माहित्य, जो वच्चों के मन में भय उत्पन्न करता है, वच्ची के स्वास्थ्य और पाचन-क्रिया पर घातक प्रभाव डालता है। इमी के कारण बच्चे रात को विस्तरे पर पेशाव कर देते है।
२ ऐनी अवास्तविक कहानियो ने बच्चो को दूर रखना चाहिए, जिन्हें पढकर मात वर्ष की उम्र के बाद भी वे काल्पनिक जगत् में विचरण करते रहे।
३ बच्चो को ऐसी कहानियां तथा नाहित्य दिया जाय, जो मत्य के आधार पर लिखा गया हो, भले ही उमम वर्णित घटनाएँ कल्पित हो । अर्थात् तर्क के द्वारा उन बच्चो को समझाया जा सके। जमे जादू के घोडे के स्थान पर हम एक ऐमे घोडे की कल्पना कर सकते है, जिसमें एक मगीन लगी हो। वटन दवाते ही घोडा श्राकाग में उड सके । यहां जादू के घोडे पीर कल के घोटे में यह अन्तर है कि जादू का घोडा वच्चे को गेखचिल्ली वनावेगा, जव कि मशीन का घोडा उमे इस प्रकार का घोडा बनाने की प्रेरणा देगा।
४ ऐमी कविताएँ और कहानियां नैयार की जायें, जो बच्चे के मन में रहने वाले भय, चिन्ता एव कुमम्कारजनित मिथ्या धाग्णाग्री को दूर कर सकें।
५ ऐमी कहानियां लिखी जाये, जिनमें दिखाया गया हो कि लोग जिन्हें भूत-प्रेत समझते थे, वह वास्तव में घोग्बा था। असत्य था।
६ ऐमी कहानियाँ बटी लाभदायक होती है, जो वच्ची को विकट परिस्थितियो मे वचने की शिक्षा दे मकं । ७ जिन कहानियो मे वच्चो को बडे-बट कार्य करने की प्रेरणा मिले, उनकी रचना उपयोगी होती है।
८ एमी कहानियाँ लिम्बी जायें, जिनमें उपेक्षित बच्चो का चरित्र-चित्रण किया गया हो। उन्हें मेवा-मिठाई, अच्छे कपडे तथा अन्य आवश्यक वस्तुएं, जो उन्हें वास्तविक जीवन में नहीं मिलती, किमी पाय द्वारा दिलवाई गई हो। ऐमी कहानियो को पढकर उपेक्षित वालक वडे यानन्द का अनुभव करते है।
९ वच्चो को ऐमी कहानियाँ दी जाये, जो उनमें मे हीनता की भावना को दूर करके उनमें श्रात्म-विश्वास पैदा करें। उनके चरित्र का निर्माण करें।
हमारी अभिलापा है कि देश के प्रकाशक, लेखक, वच्चो के माता-पिता तथा शिक्षक मामूहिक रूप से विचार करें कि हमारे देश के बच्चों के लिए किस प्रकार का माहित्य उपयोगी होगा।
एक ऐसे प्रगतिशील वाल-माहित्य-समालोचक मघ की स्थापना की जाय, जिसका उद्देश्य वाल-साहित्य के लेखको का पथ-प्रदर्शन और वे जो साहित्य तैयार करें, उसकी खरी आलोचना करना हो। यह मघ वच्चों के हाथ में देने योग्य वनानिक माहित्य की सूची तैयार करे और अवैज्ञानिक माहित्य के विरुद्ध सगठित रूप मे आवाज उठाने की प्रेरणा दे।
इम पुनीत अवमर पर हम माधन-सम्पन्न प्रकागको, सुयोग्य लेखको, समझदार माता-पिता और शिक्षको को इम दिशा में व्यवस्थित रूप से कदम उठाने के लिए आमन्त्रित करते है। बच्चो पर देश की प्राशा केन्द्रित होती है और यदि हम अपने देश के बच्चो को योग्य बना सके तो हमारी दगा बदलते देर न लगेगी। नई दिल्ली ]