________________
पृथ्वीराजरासो की विविध वाचनाएं
श्री मूलराज जैन एम० ए०, एल-एल० वी०
श्रव तक पृथ्वीराजरासो की निम्नलिखित प्रतियो' के अस्तित्व का पता लग सका है( १ ) बीकानेर फोर्ट लाइब्रेरी में आठ प्रतियाँ । (२) बीकानेर वृहद्ज्ञान भंडार में एक प्रति ।
(३) वीकानेर के श्री श्रगरचन्द नाहटा की एक प्रति । (४) पंजाब यूनिवर्सिटी लाइब्रेरी, लाहौर में चार प्रतियाँ । (५) भडारकर श्रोरियटल रिसर्च इन्स्टिट्यूट, पूना मे दो प्रतियाँ । (६) रॉयल एशियाटिक सोसायटी, बम्बई शाखा मे तीन प्रतियाँ । (७) जोधपुर सुमेर लाइब्रेरी मे दो प्रतियां ।
(८) उदयपुर विक्टोरिया हाल लाइब्रेरी मे एक प्रति । (e) आगरा कालिज, श्रागरा मे चार भागो मे एक प्रति । (१०) कलकत्ता निवासी स्वर्गीय पूर्णचन्द नाहर की एक प्रति । (११) रॉयल एशियाटिक सोसायटी, वगाल में कुछ प्रतियाँ । ( १२ ) नागरी प्रचारिणी सभा, काशी की कुछ प्रतियाँ । (१३) किशनगढ़ स्टेट लाइब्रेरी की कुछ प्रतियाँ ।
(१४) अलवर लाइब्रेरी की प्रतियाँ ।
(१५) चन्द के वाघर नेनूराम की दो प्रतियाँ ।
(१६) यूरोप के भिन्न-भिन्न पुस्तकालयों में कतिपय प्रतियाँ ।
इन प्रतियो के निरीक्षण से ज्ञात होता है कि पृथ्वीराजरासो का पाठ हम तक मुख्यतया तीन वाचनाओ में पहुँचा है - (१) बृहद वाचना, (२) मध्यम वाचना और ( ३ ) लघु वाचना । बृहद्बाचना' मे ६४ से ६६ तक समय' श्री सोलह-सत्रह सहस्र पद्य है । इसका परिमाण एक लाख श्लोक माना गया है, किन्तु वास्तव में है पैंतीस हज़ार श्लोक के लगभग । यही वह वाचना है, जिसे नागरी प्रचारिणीसभा, काशी ने सम्पूर्णतया और कलकत्ते की एशियाटिक सोसायटी व बगाल ने आशिक रूप में मुद्रित किया था । विद्वानो ने रासो सम्वन्धी अपना ऊहापोह प्राय इसी वाचना के आधार पर किया है ।
'इनमें से कुछ का विवरणात्मक परिचय छप चुका है। देखिए हस्तलिखित हिन्दी पुस्तकों की खोज की वार्षिक रिपोर्ट, टेसिटरी डिस्क्रिप्टिव कैटलॉग प्रॉव बार्डिक एड हिस्टोरिकल मैनस्क्रिप्ट्स, भाग २ (१), 'राजस्थानी' १९३६ में श्री अगरचन्व नाहटा का लेख; नागरी प्रचारिणी पत्रिका स० १६६६ में श्री दशरथ शर्मा का लेख श्रादि ।
१ बृहद्धाचना की प्रतियां यूरोप में तथा बम्बई, कलकत्ता, काशी, श्रागरा, बीकानेर आदि स्थानो में पर्याप्त सत्या में विद्यमान है ।
"
" रासो में 'समय' शब्द का प्रयोग सर्ग, श्रध्याय या खड के अर्थ में हुआ है ।