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काफल पाक्कू मै तो विवश यहाँ पाया हूँ, पर यह कैसे पाया } क्या मुझको मेरी नननी का है संदेश कुछ लाया ? मुझमे कह्न को भान रात पाया जो यह पाशा-प्रभात अयवा क्या वे शल बह गये, जिनमें यह था रहता उखड़ गये वे पाटप प्यारे जिनमें यह था गाता? क्या उम वन में लग गई प्राग , जो यह पाया निन विपिन त्याग ? हिम पर्वत का क्या सव तुपार वन गया मलिल की तरल घार ? रह गये शेष नंगे पहाड़ हिम-हीन दीन मूखे चनाड नो यह पाया हिम-शेल त्याग ?
हे मेरे प्रदेश के वासी! एक बार फिर कठ मिलाकर गाने का हूँ अभिलापी। अव कदम्ब की घन याया में व्याकुल-कंठ प्रवासी। होने पर भी जीवन समान क्यों रहते हो तुम दूर प्राण ? कितनी बार तुम्हें जीवन में मने पास बुलाया किन्तु न नाने तुम को भी क्यों पाना कभी न भाया! तुम मदा जानने हो कुमारकितना करता मै तुम्हें प्यार ! कल ही नव भाई अांधी तुम तरु पर से डरकर बोलेतुम्हें मार्ग देने को मने निज गवाक्ष-पट खोले। भीगे पसों में रख पानन क्यों दुरा दिये तुमने लोचन ? मेराकुम्हलाया श्रानन लख, लखकर मेरे साश्रु नयनहंसकर ग्राह! कर गये तुम क्यों विषम विवशवन्दी जीवन ? जीवन में मैने प्रथम वार जीवन भर को था किया प्यार भूल गया मै जननी के धीरे-धीरे प्रिय-चुंबन ! इन लहरों के साथ वह गया वह मेरा मृदु-जीवन ! तुममे सुन्दर था वाल्य-कालयह भी होता हे विहग-बालएक विपिन में रहकर भी तुम दूर रहे हैं प्यारे । अब यह हृदय-कुसुम फूलेगा फिस स्पर्श सहारे?
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