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इस काल का कवि भी अपने समय को नही भूले हुए था । अनेको कविताएँ तत्कालीन स्थिति की आलोचना करते हुए लिखी गई थी । एक होली यो है—
प्रह
सूर्य
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चन्द्रमा
हिन्दी गद्य-निर्माण की द्वितीय श्रवस्था
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वरस यहाँ बीत चल्यो री कहो सबै काह लख्यो री ॥ श्रावत प्रथम लख्यो रह्यो जैसो तैसोइ जातहु छोरी । बरस किकन बीतत ऐसे काबुल युध न मिटो री । भलो सुख लिटन दयो री ॥१॥ श्रर्वाह सुनं श्रफगान शान्त सब सब कछु ठीक भयो री । काहि उठि सुनियत लरिवे को फिर सबै दल जोरी । कियो इमि हानि न थोरी ॥२॥ दल को नव आह्वान उठ्यो री । कनसर्वेटिव भये पद हीना लिबरल स्वत्व लह्यो री ।
फेरि पालियामेण्ट के
नन्द सुनि सबन कियो री ॥३॥ पलटन दल मान्यो हम सबहू भारत ग्रह पलटो री । श्राशालता डहडह होवै लगों हिय प्रति हरख बढ्यो री । मनहुँ धन खोयो मिल्यो री ॥४॥ जिन ठान्यो काबुल युध, प्रेस श्ररु श्रर्मसंक्ट गढ्यो री । तीनहि वरस माँहि भारत को जिन दियो क्लेश करोरी । ताप वढ़ावन लिटन लिटन सोई इतसो दूर बह्यो -री । ता सम नर फिर नहीं जगदीश्वर श्रावै भारत श्रोरी । यह सबै मिल विनयो री ॥५॥
इन सब उद्धरणो से यह स्पष्ट हो जाता है कि लेखक की समस्त स्फूर्ति समय के प्रवाह से प्राप्त होती थी । साधारणत वह प्रगति का ही पक्षपाती था । उसकी शैली में ताज़गी थी और एक प्रवाह था। साथ ही वह अनगढपन था, जो जीवन की स्वाभाविकता का पर्याय माना जाना चाहिए। चुहल और मनोरंजकता भी इस साहित्य का अश थी । उसमें एक तो मौलिक कल्पना का प्रभूत प्रदर्शन मिलता है, विनोद के ऐसे-ऐसे विविध और नवीन रूप प्रस्तुत किये गये है कि वे पद-पद पर जीवन में अनुभूत यथार्थ परिहास की प्रतिकृतियाँ प्रतीत होती है। युग की सजीवता का इतना प्रभाव था कि प० वालकृष्ण भट्ट के पाडित्य पर भी उसने अपनी पूरी छाप जमा ली है ।
उपरोक्त शैलियों के अतिरिक्त दो शैलियाँ और प्रमुख प्रतीत होती है । एक तो किसी विशेष वर्णन के लिए अलकार या रूपको का सहारा । उदाहरण के लिए "एक अनोखे पुत्र का भावी जन्म" में म्युनिसिपालिटी के गर्भिणी होने और 'हाउस टैक्स' नामक पुत्र को जन्म देने की भविष्यवाणी की गई है। साथ ही उसकी श्रालोचना भी है । इमी प्रकार एक चक्र बनाकर भारत के विविध अधिकारी का रूप ज्ञान कराया गया है
"भारतीय महा नवग्रह दशा चक्रम"
नाम ग्रह
श्रीमान महामहिम लार्ड रिपन
मिस्टर ह्यूम
M
श्रायुध
न्याय सत्य दया प्रजाहित पर इल्वर्ट विल के आन्दोलन में एंग्लो इंडियन ग्रहण के समय सब गोठिल हो गए ।
न्याय सत्य अपक्षपात