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अश्वो के कुछ विशिष्ट नाम गया है, जमालुद्दीन का भाई था। इस एजेन्ट का हेडक्वार्टर कायल मे था और 'फितान' और मालीफितान के अन्य वन्दरगाहो पर भी उसका नियन्त्रण था। इस वृत्तान्त से पता चलता है कि वह इस भू-प्रदेश में अरबवासियो के भारत मे आयात-व्यापार का एजेन्ट-जनरल था। इस आधार पर यह निश्चित है कि इस प्रदेश का व्यापार उस समय बहुत वढा-चढा था। वसफ के शब्दो मे मलावार लम्वाई में कुलम से नीलपर (नीलौर) तक लगभग तीन-सौ परसग समुद्र के किनारे-किनारे फैला हुआ है और उस देश की भाषा में राजा देवर' कहलाता है, जिसका अर्थ है राज्य का मालिक । 'चिन' और 'मचिन' की विशिष्ट चीजे तथा हिन्द और सिन्व की पैदावार से लदे हुए पर्वताकार जहाज़ (जिन्हें वे 'जक' कहते थे) वहाँ पानी की सतह पर इस प्रकार चले आते थे मानो उनके हवा के पख लगे हो। खास तौर पर फारस की खाडी के टापुमो की सम्पत्ति और ईराक और खुरासान तथा रुम और योरुप के बहुत-से भागो की सौन्दर्यपूर्ण तथा सजावट की चीजे 'मलावार' को ही पहुंचती है। मलावार की स्थिति ऐसी है कि उसे 'हिन्द की कुजी' कह सकते हैं।
___ उपर्युक्त १२६० ई० के भारत के विदेशी व्यापार और विशेषकर अश्व-व्यापार के विशद वर्णन से वर्णानुसार, जैसा हेमचन्द्र, सोमेश्वर और जयदत्त ने उल्लेख किया है, घोडो के नामो की उत्पत्ति स्पष्ट हो जायगी। यह वात ध्यानपूर्वक और दिलचस्पी के साथ देखने की है कि उन १०,००० घोडो में से, जो कायल मे वाहर से लाये गये थे, १४०० घोडे जमालुद्दीन के खुद के घोडो की नस्ल के थे। इस सम्बन्ध में मुझे यह कहना पडता है कि 'वोरुखान' घोडे का नाम, जिसका उल्लेख हेमचन्द्र ने किया है, 'वोरुखान' अश्वपालक के नाम पर ही रक्खा गया होगा। यदि वह अनुमान सत्य है तो हेमचन्द्र के "वैरिण खनति वोरुखान" नाम की व्याख्या उसकी अन्य घोडो के नाम की व्याख्या की तरह दिखावटी तथा काल्पनिक हो सकती है । हेमचन्द्र ने 'वोरुखान' घोडे का पाटल वर्ण बतलाया है । जयदत्त ने 'वेरुहान' या 'वीरहण' घोडे का पाटल रग वतलाया है। मेरे विचार से 'वोरुखान' और 'वेरूहान' दोनो शब्द एक ही है। वे इस नाम के किसी अरवी अश्वपालक की पोर ही सकेत करते है, जैसा कि ऊपर कह चुका हूँ।
प्रस्तुत लेख में तीन अलग-अलग सस्कृत के समकालीन आधारो पर अश्वनामावली तैयार करने में मुझे कुछ सफलता मिली है। इस विषय में दिलचस्पी रखने वाले विद्वानो से मेरा अनुरोध है कि वे इतर-सस्कृत ग्रन्थो के आधार पर इस बारे में प्रकाश डालने की कृपा करें। सम्भवत इतर-सस्कृत ग्रन्यो मे, झेनोफोन का ग्रीक निबन्ध तथा शालिहोत्र, जयदत्त एव नकुल के सस्कृत निवन्ध भी इस विषय पर प्रकाश डाल सकते है। पूना]
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'इलियट, ३, ३२, एस० के० ऐयगर, 'साउय इडिया एंड हर मुहैमेडन इनवैडर्स', प्राक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, १९२१, पृ० ७०-७१
'हेमचन्द्र की सूची में प्रयुक्त बीस नामो में से पन्द्रह जयदत्त की सूची में पाये जाते है। इस प्रकार के सयोग से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते है कि कालक्रम के अनुसार हेमचन्द्र और जयदत्त एक दूसरे से बहुत दूर नहीं है, विशेषकर जब हमें इस बात का स्मरण होता है कि हेमचन्द्र ने इन नामों का उल्लेख अपने समय के प्रचलित नामों के आधार पर ही किया है। दूसरे, जयदत्त ने स्पष्ट लिखा है कि उसने केवल अपने समय के पहले के प्रचलित नामो को ही लिया है, क्योंकि शालिहोत्र तथा अन्य व्यक्तियो द्वारा लिखी गई अश्वनामावलियों में पाये हुए नामों का प्रयोग उसके समय में बन्द हो गया था।