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प्रेमी - श्रभिनदन- प्रथ
केवल लिपि नागरी है । किन्तु इससे हमारे कथन में कोई अन्तर नही पडता । इसके पश्चात्, जनवरी, १८१० में लल्लूलाल ने अपनी 'नक्लियात इ-हिन्दी' नामक रचना के सम्वन्ध में कॉलेज कौंसिल के पास एक प्रार्थनापत्र भेजा था, जो फारसी भाषा और लिपि में है
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"खुदावन्दान नैमतदाम इक़बाल अहम
न लियात - इ - हिन्दी तसनीफ फिदवी वजवान रेखता मतजमन अकसर जरूब अल मिसाल व दोहा व लतायफ ओ नत्रात नक्लियात मरकूमत उल सदर वर प्रवुर्दा व तर्जुमा करदा जॉन विलियम टेलर व कप्तान इब्राहम लोकेट साहेव बजबान अँगरेजी अस्वल हुकुम साहिब मुदरंस जह ता साहवान-इमुसल्लमीन मुब्तदी मुन्तवह मेकर्दद व नक्लियात मजकूरा तबकती हुर्द
ज्यादा अफताव दौलत तावाँ व
दरख्शवाद श्ररजी
फिदवी श्रीलाल कवि
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सम्भव है विलियम प्राइस से पूर्व लिखे गये हिन्दी के उदाहरण मिलें, किन्तु उनका वही महत्त्व और मूल्य होगा जो हिन्दुस्तानी की प्रायोजना तथा हिन्दुस्तानी के अनेकानेक प्रकाशित ग्रन्थो के वीच 'प्रेमसागर', 'राजनीति' श्रीर 'नासिकेतोपाख्यान' का था—श्रर्थात् हिन्दुस्तानी (उर्दू) की श्राधारभूत भाषा का ज्ञान कराने की दृष्टि से । हमारे पथ-प्रदर्शक तो प्रधानत गिलक्राइस्ट के भाषा सम्वन्धी विचार होने चाहिए। अपने विचारो को ही उन्होने कार्यान्वित किया था ।
अव विलियम प्राइस की अध्यक्षता में भाषा के जिस रूप का प्रयोग हुआ वह ध्यान देने योग्य है । १५ जनवरी, १८२५ ई० की बैठक में कॉलेज कौंसिल ने ग्रन्थ- प्रकाशन के सम्बन्ध में भेजे जाने वाले प्रार्थना-पत्रो के लिए कुछ नियम बनाये थे । कॉलेज कौंसिल की आज्ञा से ये नियम फारसी, हिन्दी, बँगला और अँगरेज़ी में सव के सूचनार्थं प्रकाशित हुए थे । हिन्दी मे नागरी लिपि का प्रयोग हुआ है । सूचना इस प्रकार है
" इस्तहार यह दिया जाता है कि जो कोई पोथी छपाने के लिए कालिज कौनसल से सहाय चाहता हो वह अपनी दरखास में यह लिखे १ कि पोयी में केत्ता पत्रा और पत्रे में कित्ती श्री पाति कित्ती लबी २ कितनी पोथिया छापेगा श्रौ कागद कैसा तिस लिए श्रक्षर और कागद का नमूना लावेगा ३ प्रो किस छापखाना में छापेगा श्रौ सव छप जाने में कित्ता खरच लगेगा ४ तयार हुए पर पोयी कित्ते दाम को वैगा ।""
अव्यवस्थित वाक्य-सगठन होते हुए भी यह हिन्दी है । उन्नीसवी शताब्दी पूर्वार्द्ध के गद्य से यह गद्य अधिक भिन्न नही है । गिलक्राइस्टी भाषा में शब्दावली ही नही वरन् वाक्य विन्यास भी विदेशी है । १८२५ ई० के उदाहरण में हम यह वात नही पाते। इसी प्रकार एक और उदाहरण प्राप्त है जो कॉलेज की परिवर्तित भाषा-नीति की थोर सकेत करता है । लल्लूलाल ने अपने ग्रन्थ 'नक्लियात - इ - हिन्दी' के लिए फारसी मे प्रार्थना पत्र लिखा था । जुलाई १८४१ ई० में गवर्नमेंट संस्कृत कॉलेज के पडित योगध्यान मिश्र 'प्रेमसागर' का एक नया सस्करण प्रकाशित करने के लिए सरकारी सहायता चाहते थे । उनका प्रार्थना-पत्र इस प्रकार है
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'प्रोसोडिग्ज नॉव दि कॉलेज ऑॉव फोर्ट विलियम, १ फरवरी, १८१०, होम डिपार्टमेंट, मिसलेनियस, जिल्द २, पृ० १८२, इम्पीरियल रेकॉर्ड्स डिपार्टमेंट, नई दिल्ली ।
'प्रोसीडिंग्ज ऑॉय दि कॉलेज प्रॉव फोर्ट विलियम, १५ जनवरी, १८२५, होम डिपार्टमेंट, मिसलेनियस, जिल्द १०, पृ० ३१, इम्पीरियल रेकॉर्ड्स डिपार्टमेंट, नई दिल्ली ।