________________ नैषधमहाकाव्यम् / युक्त कामदेव ने उसी अवसरको पाकर शरीरिणी अपनी समोष शक्तिके समान उस (दमयन्ती ) से नको जीतना चाहा। [ लोकमें भी कोई व्यक्ति किसी प्रबळ भ्यक्तिसे पराजित होकर उसके साथ देष करता हुआ अवसर पाकर अपनी बमोष शक्ति से उसे पराजित करने की इच्छा करता है ] // 43 / / अकारि तेन श्रवणातिथिर्गुणः क्षमाभुजा भीमनृपात्मजाभितः / तदुच्चधैर्यव्ययमंहितेषुणा स्मरेण च स्वात्मशरासनाश्रयः ||4|| अकारीति / तेन क्षमाभुजा नलेन भीमनृपात्मजायाः दमपस्याः भितः गुणः तदीयः सौन्दर्यादिः श्रवणातिथिः श्रोत्रविषयः अकारि कृतः श्रुतः इत्यर्थः। करोते: कर्मणि लुङ / तम्य नहस्य उपचधैर्यव्ययाय उच्चधैर्यनाशाय संहितेषुणा स्मरेण च स्वात्मनः शरासनाश्रयः चापनिष्ठो गुणो मौर्वी श्रवणातिथिरकारि आकर्ण कृष्ट इत्यर्थः / दमयन्तीगुणश्रवणामलमनसि महान् मदनविकारः प्रादुर्भूत इस्पर्थः / अत्रोक्तवाक्यार्थस्य पूर्ववाक्यार्थहेतुकं कायलिशमलकारः // 14 // ___ उस राजा (नल) ने मोमनन्दिनी / दमयन्तो ) के मामित गुणोंको कान तक पहुँचाया अर्थात दमयन्तीके गुणों को सुना तथा उस (न) के अत्यधिक धैर्यको नए करनेके लिए बाण चढ़ाये हुए कामदेवने प्रत्यत्राको अपने कानतक खींचा। [दमयन्तीके गुणों को सुनकर हो कामपीड़ित नकका धैर्य नष्ट हो गया ] // 44 // अमुष्य धीरस्य जयाय साहसी तदा खलु ज्यां विशिखेस्सनाथयन् / निमज्जयामास यशांसि संशये स्मरखिलोकीविजयार्जितान्यपि' | 45|| ___ अमुष्येति / स स्मरः साहसी साहसकारः 'न साहसमनामा मरो महाणि पश्य तीति न्यायादविलम्बी समित्यर्थः / अमुण्य धीरस्य अविचलितस्य नलस्य जयाय शारासनग्यां निजधौवीं विशिखैः शरैः सनाथयन् सनाथं कुर्वन् संयोजयविस्यर्थः, प्रयाणां लोकानां समाहारखिलोकी 'ततिायेत्यादिना समासः, 'अकारान्तोसरः पदो विगुः खियामिष्यत' इति नालिगवात 'दिगोरिति डीप / सस्य विजयेनार्जि. तानि सम्पादितान्यपि पशांसि संशये निमज्जयामास किं पुनः सम्प्रति सम्पाय. मित्यपिशब्दार्थः / पुरवपेषया अनुचितकारम्भे मूलमपि नरयेदिति संशयितवा. नित्यर्थः / अत्र स्मरस्योक्तसंशयाऽसम्बन्धेऽपि तत्सम्बन्धोकेरतिशयोकिः // 15 // ___ उस समय पीर इस ( नल ) को जीतनेके लिए प्रत्यञ्चाको बाणोंसे मुक्त करता हुआ अर्थात प्रत्य वापर बाणोंको रखता हुआ साहसी ( अपनी शक्तिको बास्तविक बलको बिना जाने महान् धीर नलको जीतने के लिए उद्यत होनेसे विवेकहीन ) कामदेवने तीनों कोकों को बीतनेसे प्राप्त हुए अपने समस्त यशको सन्देह में डाल दिया / (कामदेव तीनों कोकों को जीतकर बो यशः-समूह पाया है, वह नरूको नहीं जीतने पर नष्ट होने 1. विषयोचिंतानि' इति पाठः साधीयान् , इति 'प्रकाश'कारः।