Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासाहिदे कायम
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१६. ७३. सव्वसंकमो गोसव्त्रसंकमो ट्रकस्त्रसंको भकासको संक अजहण्णसंकमो त्ति विहतिभंगो। सादि ० अपादि : ध्रुव : अद्भुवार, दुबिट्टो पिसो ओ मिच्छ, भङ्ककसाय सम्म १ सम्मामिक अणुक पटक जह
० सादी
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आदेसेण य । ओषेण अजहू० किं सादि ० ४ १ सादी अद्भुवो । अवक०, गवशोक अद्भुवो । अज० चचारि भंगा । आदेसेण सव्वं सव्वत्थ सादी
अद्भु
जहाँ वारुका बहुमानप्रमाण अन्तका सर्वधाति अनुभाग होता है उसकी उपचारसे द्विस्थानिक है | जहाँ पर यह और अस्थिके समान अनुभाग उपलब्ध होता है, इसकी त्रिस्थाि है। तथा जहाँ यह पूर्वका दोनों भेदरूप और शैलके समान होता है उसका उपचार'से चतुःस्थानिक संज्ञा है । यहाँ पर लता, दारु अस्थि और शैल य शब्द हैं। जो अपने उपमेयरूप अनुभागोंकी विशेषताको प्रकट करते हैं । स्थानसंज्ञाका निर्देश करते समय मनुष्यवियोंमें पुरुषवेदका भङ्ग छह नोकषायकि समान कहा है। सी इसका आशय इतना में है कि मनुष्यिनियम पुरुषवेदका लताके समान एकस्थानिक अनुभाग नहीं उपलब्ध होता । कारणका निर्देश हम धांति संज्ञाके प्रसङ्गसे विशेषार्थमें कर ही आये हैं। शेष कथन सुगम हैं। 3
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९ ७३. सर्वसंक्रम, नोसर्वसंक्रम, उत्कृष्टसंक्रम, अमुत्कृष्टसक्रम, जघन्यसक्रम संक्रमका भङ्ग अनुभागविभक्तिके समान है । सादि, अनादि, धव और अनुमापेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-बोध और आदेश । श्रोषसे मिध्यात्र, मार्क का और सामग्रमिध्यात्वका उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट, जघन्य और जघन्य अनुभागसंग जान है या अनादि है। न्या
क्या है ? सादि और अध्रुव है। आठ कषाय और नौ नोकषायोंका अनुत्कृष्ट और जघन्य अनुभागसंक्रम स्वादि और अध्रुव है। तथा अजघन्य अनुभाग संकस सादि आदि चारों भेदरूप है । आदेशसे सब अनुभागसंक्रम सर्वत्र सादि और अथवा विशेषार्थ — मिध्यात्व, श्रप्रत्याख्यायवाचकमित्यादियानामरचतुष्का संन्यवस्थ
और सम्यग्मिथ्यात्वका उत्कृष्ट और अनुत्त अनुभात संत्रा, अदानिक हैं, इसलि ये दोनों यहाँ पर सादि और अध्रुव कहे गये हैं तथा सिया और वादा कपाय नमन्या और अजघन्य अनुभागसंक्रम भी कादाचित्क हैं। साथ ही सम्यक्त्त यो साम्य दोनों प्रकृतियाँ भी कादाचित्क हैं, इसलिए यहाँ पर बनाके जवत्य और अनुभाग संक्रमासादि और कहे गये हैं । अब रहीं शेष प्रकृतियाँ सो इनके भी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभाग संक्रम कादाचित्क होनेसे सादि और अध्रुव जान लेने चाहिए। चार संवलन और नौ का जघन्य अनुभागसँक्रम अपनी अपनी क्षपणा होते समय जधन्य अनुभागक्रमण काल होता है और इसके पूर्व अजघन्य अनुभागसँक्रम होता है इसलिए तो जधन्य अनुभागसक्रम अनादि है तथा उपशममैमेिं उपशान्त दशामें यह संक्रम नहीं होता और उसके बाद गिरने पर होम लगता है, इसलिए इनका अजघन्य अनुभागसँक्रम सादि है। तथा मध्यकी अपेक्षा वह भार अभय अपना अधव । इस प्रकार इन तेरह प्रकृतियोंका अन्य अनुभाग कम स चाररूप बन जानेसे वह चार प्रकारका कहा है और इनका जघन्य अनुभागक्रम किलिमें ही होता है इसलिए ESE DISER वह सादि और अध्रुव कहा है। इसी प्रकार अनन्तानुबन्धचतुष्कका जघन्य अनुमासिक मापनः सयोजना होने पर एक आवलिके बाद द्वितीय श्रावली के प्रथम "समयम होता है, इसलिए यह भी सादि और ध्रुव कहा है तथा विसंयोजना होनेके पूर्व तक इन चारका "अजघन्य अनुभागसंक्रम नाद होता है और पुनः संयोजना होने पर जघन्यके बाद वह सादि होता है तथा भव्याक
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