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शा
अमांगल्य
अमर अमांगल्य-वि० ( सं० ) अशुभकारक, | अमन--संज्ञा, पु० (अ.) शान्ति, चैन, माँगल्य-रहित, अनिष्ट ।
श्राराम, रक्षा, बचाव, यौ० अमनचैन । अमांगलीक-वि० (सं० ) मंगल न करने । वि० (हि. अ+ मन ) बिना मन के, वाला, अकल्याणकारक।
बिना ध्यान। श्रमंद-वि० (सं० ) जो धीमा या हलका | अमनस्क-वि० (सं० ) मन या इच्छान हो, तेज़, उतम, श्रेष्ठ, उद्योगी, जो मंद- रहित, उदासीन, अनमन। बुद्धि का न हो, चतुर।
अमनिया-वि० ( देश० ) शुद्ध, पवित्र, "चंद सो दुचंद है अमंद मुख चंद एक, । अछूता।
प्रेमिन के नभ मैं नछत्र हैं न तारे हैं " | संज्ञा, स्त्री० रसोई पकाने की क्रिया। -रसाल
( साधु० ) अमनिया करना--अनाज अमंजु-अमंजुल-वि० (सं० ) जो मंजुल बीनना, साकभाजी छीलना, बनाना । या सुन्दर न हो।
अमनैक--संज्ञा, पु० (दे० ) हकदार, अमकली-संज्ञा, स्त्री० (दे० हि० आम --- अधिकारी, सरदार, दावेदार, अवध प्रान्त कली ) कच्चे आम की सुखाई हुई फाँके, के वे काश्तकार जिन्हें पुश्तैनी लगान के थोड़े मसाले के साथ कच्चे श्राम की सूखी सम्बन्ध में कुछ ख़ास अधिकार हैं । फाँके।
वि० (दे० ) अरोक, जिसे मना न किया श्रमका-सं० पु० (सं० अमुक) ऐसा-ऐसा, जा सके, उच्छृखल. उदंड । अमुक, फलाँ।
अमनोयोग-संज्ञा, पु. ( सं० ) अनवअमचुर-अमचूर-संज्ञा, पु० दे० (हि. धानता, असावधानी। आम+ चूर-चूर्ण ) सुखाये हुए कच्चे
अमनोज्ञ-वि० (सं० ) कुरूप, घिनौना, श्रामों का चूर्ण, पिसी हुई कच्चे सूखे आम
असुन्दर। की फाँके, कच्चे आम की सूखी फाँके ।।
अमनारम, अमनोहर, अमनोभिराम । अमड़ा-संज्ञा, पु. (सं० अाम्रात ) आम
अमनोरम---वि० ( सं० ) अरुचिकर, अरोके से छोटे-छोटे खट्टे फलों वाला एक प्रकार
चक, असुन्दर। का वृक्ष, अमारी।
अमनोहर--वि० (सं० ) अप्रिय, अरुचिर, अमत---संज्ञा, पु० (सं० ) मत का अभाव,
कुरूप। असम्मति, रोग, मृत्यु, अनभिप्रेत, काल । अमत्त-वि. (सं० ) मद-रहित, बिना
अमनोभिराम----वि० (सं० ) मन को घमंड का, जो मतवाला न हो. शान्त,
सुन्दर न लगने वाला, अरोचक, अप्रिय । बिना मस्ती।
अमया- वि० (दे०) माया मोह-रहित, अमत्ता-संज्ञा, पु० (सं० ) बिना मात्रा का
निर्दय । छंद-जिसमें सिवा ह्रस्व प्रकार वाले वर्ण अमर--वि० ( सं० ) जो न मरे, चिरजीवी, के और कोई भी स्वर वाले वर्ण नहीं नित्य, चिरस्थायी, मृत्यु-रहित । रहते।
संज्ञा, पु. ( सं० ) देवता, पारा, हड़जोड़ अमत्सर-वि० (सं०) द्वेषाभाव, मत्सर- का पेड़, कुलिश वृक्ष, अमर कोश, लिंगानुरहित ।
शासन नामक प्रसिद्ध कोश के रचयिता अमद-वि० (सं० ) बिना मद या गर्व के, अमर सिंह, ये विक्रमादित्य की सभा के नव मद-रहित।
रत्नों में थे, उनचास पवनों में से एक।
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