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प्रभू
अभ्यंतरिक अभू-क्रि० वि० (दे०) "अभी, अब ही, अभेरना-स० क्रि० दे० (सं० अभि+ रण) श्राज ही।
रगड़ना, भिड़ना-भिड़ाना, मिलाकर रखना, वि० (सं०-
अभू-होना), जो उत्पन्न सटाना, मिलाना, मिश्रित करना, टकराना, न हो, अकारण, अजन्मा ।
धक्का देना। संज्ञा, पु० (सं० ) ब्रह्म, विष्णु, ईश्वर। | अभेरा--संज्ञा, पु. दे. (सं० अभि-|-रण ) अभूखन* - संज्ञा, पु० दे० ( सं० रगड़, टक्कर, मुठभेड़, धक्का। आभूषण ) गहना, ज़ेवर, भूषन (भूषण
" उठ श्रागि दोउ डारि अभेरा"..-प० । सं०) आभूषन, आभूषण।
अभोग--वि० (सं० ) जिसका भोग न अभूत--वि० (सं०) जो न हुया हो, किया गया हो, अनुपभोग। वर्तमान, अपूर्व, विलक्षण, अनोखा।
संज्ञा, पु. भोग-विलास-रहित । अभूतपूर्व-वि० (सं० यौ० ) जो प्रथम अभोगी--वि० (सं० ) अविषयी, विरक्त, न हुआ हो, अपूर्व, अनोखा, विलक्षण । विरागी, भोग न करने वाला, अभेद-संज्ञा, पु० (सं० ) भेद का अभाव,
अविषयासक्त। अभिन्नता, एकत्व, एकरूपता, सदृशता,
अभोज--वि० ( सं० ) अभक्षणीय, जिसका विभाग न हो सके, रूपक अलंकार
अखाद्य, न खाने योग्य । के दो भेदों में से एक।
अभोजन--संज्ञा, पु० (सं० ) भोजनाभाव, वि० --अभेद्य, जो भेदा न जा सके।
अनाहार, उपवास, व्रत, अनशन । वि० (दे०) भेद-रहित, एक रूप, समान ।
वि० बिना भोजन का। अभेदनीय-वि० (सं० ) जिसका भेदन
अभोजो-संज्ञा, पु० (सं० ) न खाने वाला, या छेदन न हो सके, न छेदने योग्य
अखादक, अभोगी, उपभोग न करने जिसका विभाग न हो सके ।
वाला।
अभौतिक-वि० (सं० ) जो भौतिक या संज्ञा, पु. हीरा, मणि ।
सांसारिक न हो, जो पंचतत्वों से न बना अभेदवादी-संज्ञा, पु० (सं०) जीव और
हो, जो भूमि से सम्बन्ध न रखे अगोचर, ब्रह्म में भेद न मानने वाला, संप्रदाय,
अलौकिक । अद्वैतवादी।
संज्ञा, भा० स्त्री० अभौतिकता। "ईश्वर-जीवहिं नहिं कछु भेदा"-रामा।
अभ्यंग--संज्ञा, पु० (सं०) लेपन, चारो अभेदवाद-संज्ञा, पु. (सं०) अद्वैतवाद,
ओर पोतना, शरीर में तेल लगाना, जीव-ब्रह्म को एक मानने वाला सिद्धान्त ।
तैल-मर्दन । अभेद्य–वि० (सं० ) जिसका विभाग न हो
अभ्यंजन- संज्ञा, पु० (सं० ) तेल-लेपन, सके, जो भेदा या छेदा न जा सके, जो टूट तैल, उबटन, बटना। न सके, अखंडनीय ।
अभ्यंतर-संज्ञा, पु० (सं०) मध्य, बीच, अभेय:-वि० दे० (सं० अभेद्य ) अभेद्य, हृदय, अन्तर । अभेदनीय, अभिन्न ।
क्रि० वि० भीतर, अन्दर, बीच । संज्ञा, पु० - अभेद, एकता।
अभ्यंतरवर्ती--संज्ञा, पु. (सं० ) अन्तरअभेव--संज्ञा, पु. (सं० अभेद ) अभेद, वासी, मध्यवासी। समानता, एकता।
अभ्यंतरिक-वि० (सं० ) अन्दर का, हृदय वि० (सं० अभेद्य ) अभिन्न, एक। का, भीतरी।
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