Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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आचार्य रत्नप्रभसूरि का जीवन ]
[ ओसवाल संवत् ८०० – ८२४
इस प्रकार आचार्य रत्नप्रभसूरि ने अनेक अन्यमतियों को जैनधर्म की दीक्षा देकर उनका उद्धार किया इतना ही क्यों पर उन अन्यमति साधुओं ने जैनधर्म में दीक्षित हो एवं जैन सिद्धान्त का अभ्यास करके क्षणक वादी बोधों का और वाममार्गी एवं यज्ञवादियों के अखाड़े उखेड़ दिये थे । आचार्य रत्नप्रभसुरि षट्दर्शन के मर्मज्ञ एवं अनेक विद्या एवं लब्धियों के ज्ञाता थे और उस समय बौद्ध बेदान्तियों और वामवार्गियों के आक्रमण के सामने जैन धर्म जीवित रह सका यह उन विश्वोपकारी आचार्य रत्नप्रभसूरि जैसे प्रभावशाली आचार्यों का ही उपकार समझना चाहिये ।
में
सूरिजी ने सारी नगरी से विहार कर क्रमशः तक्षशिला पधारे तक्षशिला का तुकों के द्वारा भंग होने से पहले वाली तक्षशिला नहीं पर सर्वथा जैनों से निर्वासित भी नहीं थी वहाँ उस समय बहुत से जैन बसते भी थे कई मन्दिरों पर बोद्धों ने अपना कब्जा कर लिया था पर श्राचार्य रत्नप्रभसूरि के पधारने से जैनों पुनः जागृति हो आई थी श्राचार्यश्री ने तक्षशिला का हाल देख वहाँ पर एक चतुर्विध संघ की सभा करने का विचार किया वहाँ के श्रीसंघ को कहाँ तो उन्होंने सूरिजी का कहना स्वीकार तो कर लिया पर उनके दिल में यह भय था कि यहाँ बोद्धों का जोर अधिक है फिर भी उनका गुरुदेव पर विश्वास था पंजाब सिंध शुरसेनादि कइ प्रान्तों में आमन्त्रण भेज दिये ठीक समय पर चतुर्विध संघ खूब गेहरी तादाद में एकत्र हुआ और श्राचार्य श्री के नायकत्व में सभा हुई सबसे पहला यह वस्ताव रखा गया कि बोद्धों ने अपने मन्दिर दबा लिया है उनको पुनः प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिये दूसरा जैनधर्म का प्रचार करने के लिये मुनियों का विहार और श्रावकों को भी प्रयत्न करना जरूरी है इत्यादि इस सभा का जनता पर काफी प्रभाव पड़ा बहुत से मन्दिर बं द्धों से वापिस लेकर उनकी पुनः प्रतिष्ठा करवाई। वहाँ के श्री संघ की त्याग्रह होने से वह चतुर्मास सूरिजी ने तक्षशिला में ही किया भाद्र गोत्रीय शाह चंचग के महा महोत्सव पूर्व व्याख्यान में महाप्रभाविक श्री भगवतीजी सूत्र फरमाया जिनका जैन जैनेतर जनता पर बहु असर हुआ विशेषता यह थी कि श्रेष्ठत्री शह हाप्पा ने सम्मेतशिखर तीर्थ की यात्रार्थ संघ निकलने का निश्चय किया उसने बहुत दूर-दूर तक आमन्त्रण पत्रिका भेज कर श्री संघ को बुलाया तथा आत्मकल्याण की भावना वाले बहुत लोग ठीक समय पर आ भी गये और चतुर्मास समाप्त होते ही सुरिजी की अध्यक्षत्व में संघ यात्रार्थ प्रस्थान कर दिया संघपति की माला शाह हाप्पा का कण्ठ में सुशोभित थी रास्ता के तीर्थों की यात्रा करते हुए संघ सम्मेत शेखरजी पहुँचा तीर्थ का दर्शन स्पर्शन कर सबने श्रानन्द मनाया सूरिजी ने शाह हाप्पा को उपदेश दिया कि यह बीस तीर्थङ्करों एवं आचार्य कक्कसूरि की निर्वाणभूमि है मन्त्री पृथुसेन के पुत्र ने यहाँ पर दीक्षा ली हैं ऐसा सुअवसर बार बार मिलना मुश्किल है प्रवृति में सबसे बड़ा कार्य संघ निकालने का है तब निवृति में दीक्षा लेना है । सूरिजी के उपदेश का भाव हाप्पा समझ गया और अपने जेष्ठ पुत्र कुम्भा कों संघपति की माला पहना कर शाह हाप्पा सूरिजी के पास दीक्षा लेने का निश्चय कर लिया आपके अनुकरणरूप में कई ११ नर-नारी दीक्षा लेने को तैयार हो गये । सूरिजी ने उन सबकों दीक्षा दे दी । कइ मुनियों के साथ संघ वापिस लौट गया और सूरिजी अपने ५०० मुनियों के साथ पूर्व में बिहार किया और बोद्धों के बढ़ता हुआ जोर को हटा कर जैनधर्म का प्रचार बढ़ाया-पाटलीपुत्र, चम्पा, अयोध्या, राजग्रह, तुर्गिया वाणियाग्राम, कांकादी, वैशाला और हेमाला एवं कपिलवस्तु तक विहार कर जनता को जैनधर्म का उपदेश दिया बाद कलिंग की ओर बिहार कर उदयगिरि खण्डगिरि जो शत्रुंजय गिरनार अवतार के नाम से तीर्थ कहलाते थे
तक्षशिला में चतुर्विध संघ की सभा ]
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