Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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आचार्य सिद्धमुरि का जीवन ]
[ ओसवाल सं० १२०-१५८
दिया जब पद्मावती ने गर्भ के दिन पूरा होने से पुत्र को जन्म दिया तथा उसका कुछ पालन कर उसके साथ कुछ चिन्ह रख उसको श्मशान में रख दिया और पद्मावती ने पुनः दीक्षा ले ली और अन्यत्र विहार कर दिया।
इधर जब स्मशानरक्षक स्मशान में आकर देखा तो महान क्रान्ति वाला देव कुंवर सदृश बच्चा उसकी नजर आया वह भी बड़ी खुशी से उसे उठा कर अपनी ओरत को सौंप दिया चण्डाल अपुत्रियां होने से उस नवजात पुत्र को अपना पुत्र समझ कर पालनपोषण किया और उसका नाम करकंडु रख दिया जब वह बड़ा हुआ तो एक समय जंगल में अन्य बालकों के साथ खेल रहा था उस समय दो विद्वान भविष्यवेत्ता उस रास्ते से निकल आये उन्होंने लड़कों को कहा कि इस वंश जाल को छेदने वाला भविष्य में राजा होगा ? बस राज की आकांक्षा से वे लड़के वंश जाल छेदने की कोशिश की जिसमें करकंडु ने वंश जाल छेदन करदी पर दूसरे भी सब लड़के बोल उठे कि वंश जाल मैंने छेदी २ इससे आपस में लड़ाइयां होने लगी यहां तक कि उन लड़कों के वारस भी लड़ने लग गये मामला राजा के पास गया तो राजा ने फैसला दिया कि यदि करकंडु राजा हो तो एक प्राम ब्राह्मणों के लड़के को दें। ब्राह्मणों के लड़के करकंडु चंडाल के लड़के से ग्राम मांगने लगे करकंडु ने कहा कि मुझे राज मिलेगा तब मैं तुमको ग्राम दूंगा १ पर अन्य लड़के तो प्राम का तकाजा करते ही रहे इस कारण चण्डाल सकुटुम्ब दन्तिपुर का त्याग कर अन्यत्र वास करने को रवाना हो गये चलते २ कांचनपुर के पास आये वहाँ कांचनपुर में अपुत्रिया राजा मर गया जिसके पीछे राजा बनाने के लिये एक हस्तिनी की सूड में वर माला डाल घम रहे थे भाग्यवसात हस्तिनी ने आता हुआ करकंडु के गले में वर माला डाल उसको सूंड में उठा कर अपनी पीठ पर बैठा लिया बस फिर तो था ही क्या राज कर्मचारी और नागरिक मिल कर करकंडु का रााभिषेक कर दिया अब तो कर. कंडु कांचनपुर का राजा होकर राज करने लगा। इस बात की खबर जब दान्तिपुर के ब्राह्मणों को मिली तब पहिले तो उन्होंने कांचनपुर के लोगों को कहलाया कि करकंडु जाति का चाण्डाल है जिससे नगर में काफी चर्चा फैल गई पर देवता ने आकाश में रह कर कहा अरे नगर के लोगों तुम व्यर्थ ही क्यों चर्चा करते हो करकंडु राज के सर्व गुण सम्पन्न है इत्यादि जिससे लोगों को संतोष हो गया। फिर दान्तिपुर के ब्राह्मण गजा कर कंडु के पास पाकर ग्राम की याचना की उस समय राजा करकंडू ने ब्राह्मणों को कहा कि तुम चम्पा नगरी में जाकर राजा दधिबाहन को मेरा नाम लेकर कहो जिससे तुमको एक प्राम देदेगा। ब्राह्मण चम्पा नगरी में जाकर राजा से प्राम मांगा इस पर राजा दधिवाहन को बहुत गुस्सा आया और कहने लगा कि एक चाण्डाल का लड़का चलता फिरता राज बन कर मेरे पर हुक्म चलाता है जाश्रो ब्राह्मणों तुम उस चाण्डाल को कह देना कि प्राम लेना हो तो संग्राम करने को तैयार हो जाना ? ब्राह्मण कांचनपुर पाकर सब हाल राजा करकंडु को कह दिया जिससे करकंडु क्रोधित हो अपनी सेना लेकर चम्पा नगरी पर धावा बोल दिया। उधर से दधिबाहन राजा भी सेना लेक सामने आ गया
साध्वी पद्मावती ने दोनों राजाओं की बातें सुन कर सोचा कि बिना ही कारण पिता पुत्र युद्ध कर लाखों के प्राण गवा देगा अतः साध्वी गुरुणीजी से आज्ञा लेकर पहले करकंडु के पास गई और उनको अपना सब हाल कह सुनाया और कहा कि तुम कि पके साथ युद्ध करने को तैयार हुए हो ? करकंडु साध्वी एवं अपनी माता के वचन सुन कर पश्चाताप करने लगा और कहा कि मैं पिता से मिले पर साध्वी ने कहा
करकंडुकों कलिंग का राज
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