Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
View full book text
________________
आचार्य देवगुप्तसूरी का जीवन ]
[ ओसवाल सं० २०८०-११२४
ऐसा प्रभावोत्पादक उपदेश दिया कि उनकी आत्मा में भी नवीन चेतन्य स्फुरित होने लगा । धर्म प्रचार की बिजयी भभक उठी । वे सब आचार्यदेव का आभार मानते हुए कहने लगे - भगवान् ! आपका कहना अक्षरश: सत्य है | जिधर दृष्टि डाले उधर ही जैनधर्म पर भयंकर आक्रमण हो रहे हैं। इधर श्रमण संघ भी अपने कर्तव्य मार्ग से कुछ स्खलित होता जा रहा है । शिथिलता हमारे में चोरों की भांति प्रविष्ट हो रही है । आपसी फूट एवं कुसम्प ने वाड़ामंदी की ओर अपना पग पसारा है । गच्छ की मर्यादा एवं अपने कर्तव्य को हम विस्मृत कर चुके हैं पर धन्य है आप जेमे शासक शुभ चिन्तकों को जिनकी कार्य कुशलता, विहार पद्धति की विशालता और नये जैन बनाने की प्रवृत्ति ने जैन संस्था को ऐसे भयंकर मृत्युकाल में भी घाटे में नहीं आने दी। इसके लिये हम आपके इस असीम उपकार को भूल नहीं सकते और आपको धन्यवाद दिये बिना रह नहीं सकते । पूज्यवर ! आपके हिकारी उपदेश से हमने निश्चय कर लिया है कि जैन शासन के उन्नति के कार्य में यथा साधन प्रयत्न करते रहेंगे । इस प्रकार उनकी आचार्यश्री साथ वर्तालाप करके वीर सन्तानियों को अपरिमित आनन्द का अनुभव होने लगा । दूसरे दिन सब श्रमणों ने सूरिजी के में शत्रुजय पहाड़ पर जाकर आदीश्वर भगवान् की यात्रा की ।
साथ
कालान्तर में सूरिजी सौराष्ट्र की और विहार करते हुए आगे कोकंण में पधार गये और वह चातुर्मास देवपट्टनपुर में कर दिया | आपके विराजने से जैनधर्म की खूब ही प्रभावना हुई । चातुर्मास के पश्चात्
श्री के उपदेश से बनाये गये तीन भक्तों के तीन मन्दिरों को प्रतिष्ठाएं की। करीब १३ नरनारियों ने परम वैराग्य से आचार्यदेव के पास दीक्षा श्रङ्गीकार करके श्रम कल्याण किया । कई जेनेतरों ने जैन धर्म को स्वीकार कर सत्यत्त्व का परिचय दिया ।
तत्पश्चात् सूरिजीने आगे दक्षिण की और विहार किया ! सर्वत्र धर्मोपदेश क ते हुए विदर्भ देश को बालपुर नगर में चातुर्मास किया । आपके पधारने से उस प्रान्त में भी खूब धर्म जागृति हुई। वहां भी आपने ११ भावुकों को दीक्षा दी । ठीक है; व्यापारी लोगों को लाभ होता है तब वे आगे बढ़ते ही जाते हैं इसी प्रकार हमारे आचार्यदेव ने भी महाराष्ट्र ग्रान्व के इस शेर में उल बोर पर्यन्त अपना विहार क्षेत्र विशाल बना दिया । जब महाराष्ट्र प्रान्तीय साधुओं को शुभ समाचार मिले कि आचार्यदेवगुप्तसूरि जी म० इधर ही पधार रहे । तब उनके हर्ष का पार नहीं रहा । वे दर्शनों के लिये उत्कण्ठित बन गये कई वर्षों से सूरीश्वरजी म० के दर्शनों का लाभ हस्तगत नहीं होने के कारण आचार्यश्री के दर्शनों के लिये चकोर बन गये । आसपास के क्षेत्रों में धर्म प्रचार का कार्य अत्यन्त उत्साह करते हुए सूरीश्वरजी के स्वागत के लिये सम्मुख जाने लगे । क्रमशः मदुरा नगरी में सूरीश्वरजी के दर्शन हुए जिससे पण वर्ग को अत्यन्त आनंद हुआ । आगन्तुक श्रमणों से आचार्यश्री ने महाराष्ट्र प्रान्त की ठीक हालत जानली । तत्पश्चात् महाराष्ट्र प्रान्त में विहार कर जैनधर्म का प्रचार करने वाले साधुओं को यथा योग्य सत्कार एवं पदविया प्रदान कर उनके उत्साह को afa fear | उक्त श्रममण्डली में से अधिक साधु महाराष्ट्र प्रान्त के ही जन्मे हुए थे अतः महाराष्ट्र प्रान्तीय भाषा की जानकारी के कारण लोग धर्म प्रचार के महत्व पूर्व कार्य में स्थूल परिमाण में सफल हुए । सूरिजी महाराज ने तीन चातुर्मास महाराष्ट्र प्रान्त के भिन्न २ नगरों में करके धर्म का अच्छा उद्योत किया | महाराष्ट्र प्रान्त में आचार्यश्री के आगमन से साधु समाज एवं श्राद्धवर्ग में धर्मानुराग की प्रबल वृद्धि हुई । नायक की उपस्थिति में सैनिकों का उत्साह बढ़ना प्रकृति सिद्ध ही है अतः उस प्रान्त में धर्म प्रचार के
सूरीश्वरजी का दक्षिण में बिहार
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
१०९९
www.jainelibrary.org