Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi

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Page 806
________________ जैन मूर्तियों पर के शिलालेख] [ोसवाल सं० १५२८-१५७४ २२४-संवत् १४४३ वर्षे वैशाख सुदि ७ उकेस० साह खीमा भार्या खीमई पुत्र रणमल पुत्र भीमाकेन मातृ पितृ श्रेयोऽथ श्रीचन्दप्रभ बिंब का० प्र० श्री उपकेशगच्छे सिद्वाचार्य संतान श्रीककसूरिभिः । धातु प्र० नम्बर २२५-संवत् ११८५ वर्षे आसाढ़ सुदि ३ रखौ उकेशज्ञा० चिचट गोत्रे साह श्रीसोनपाल पुत्र सदयपरा भार्या विमलादे पुत्र साह शुभकरण मानु श्रेषसे श्री प्रादिनाथ चतुर्विशति पट्ट का०प्र० श्री अकेशगच्छे ककुदाचार्य संताने श्रीसिद्धसूरिभिः । ___ धातु प्र० नम्बर ११७५ २२६-सं० १४६४ वर्षे माघ सुदि १० शनौ उपकेश ज्ञातौ चिचट गोत्रे वेसटान्वय साह स्गेढल भार्या पलाइदे पुत्र सोमदत्त भैरव संसार चान्दो चित्रो श्रेय से श्री शीतलनाथ बिंबं का० प्र० उपकेशगच्छे सिंहसूरिभिः। धातु प्र० नं० १०१२ २२७-सं० १५०४ वर्षे फागुन सुदि ५ बुधे उ१० ज्ञातौ आदित्यनाग गोत्रे साह डुगर भार्या लाहिणि पुत्र साह साल्हा भार्या सरसती पुत्र सलखाभ्यां आत्म श्रेयो) श्रीकुंथुनाथ सिंबं का० उपकेशगच्छे ककुदाचार्य पं० सं० प्र० श्रीककसूरिभिः । धातु प्रथम नम्बर १३३ २२८-संवत् १५०६ वर्षे आसाइ सुदि ५ बुधे उपकेश ज्ञातौ श्रे० ठाकुरसी भार्या देजा पुत्र हरदासेन पितृ ठाकुरली श्रेयोर्थ भ० श्रीदेवगुप्तसूर उपदेशेन भीसुमतिनाथ विवं का० प्रति....."सूरिभिः। धातु प्र० नंवर ११५२ २२६-सम्बत् १५११ वर्षे माघ सुदि ५ सोमे उसवाल ज्ञाति लिंगा गोत्रे समदड़िया उडकोण सुहड़ भार्या...."पुत्र कर्मा केन भार्या कसीरादे पुत्र हेमा संसार चान्दा देवराजयुक्तेन स्वश्रेयसे श्री नेमिनाथ बित्रं कारितं श्री उसकेशगच्छे श्री ककुदाचार्य संताने प्र० श्री ककसूरिभिः । धातु नम्बर १३ २३०-सं० १५१२ वर्षे वैशाख सुदि ५ श्रोसवाल गोत्रे साह महणा भार्या महणदे सुत सीपाकेन भार्या सुलेसरि प्रमुख कुटुम्बयुतेन श्री ग्रादिनाथ विंबं का० प्र० श्रीककसूरिभिः। बाबू पू० नं० ४०१ २३१-० १५१५ फागण सुदि ११ भोमौ श्री उपके स ज्ञातो आदित्यनाग गोत्रे चोरवड़िया शाखायां साह देवाल. भार्या देवाई पुत्र गुण पर भार्या मानादे पुत्र सलखण भार्या सारणी पुत्र करण झांझण मेकरणादि संयुक्तेन मातृ पितृ श्रेयोसार्थ नेमिनाथ प्रतिमा का० प्र० श्रीउप० सिद्धसूरिभिः। धातु नम्बर २३२-संवत् १५२२ वर्षे वैशाख सुदि १५ उपकेश ज्ञातौ छाजेड़ गोत्रे साह मांडा भार्या भिखी पुत्र साल्हाकेन श्री आदिनाथ विंबं का० प्र० भट्टारक श्री देवगुपसूरिभिः । धातु नम्बर मन्दिर मूर्तियों के मुद्रित शिला लेखों की इस समय . पुस्तकें मेरे पास हैंसन पुस्तकों के अन्दर से छपकेशगच्छाचार्यों द्वारा करवाई प्रतिष्ठाएँ के शिलालेखों को मैंने एकत्र कर उनको संवत् क्रमवार करके मैंने मेरे अन्य में पाना प्रारम्भ किया। जब मैंने प्रसंगोपात अन्य शिलालेखों को देखे तो ज्ञात हमा कि उन पुस्तकों के प्रकाशित करवाने वालों मे ठीक सावधामा नही रखी। भस. बहुत टियाँ सगई हैं कई कई शिहालेख तो सूची में देने से भी गये समको मैंने पीछे से संग्रह किया इसलिये जो मैंने पहले संवतों को क्रमशः रखने की योजना की यह नहीं रह सकी। यही कारण है कि संवत् भागे पीछे आये हैं। दूसरा इस बात का भी ज्ञान हो गया कि केवल मेरी उतावल की प्रवृति से तथा नजर कम पड़मे से मेरे प्रत्य में अशुद्धी रह जाती थी पर उन विद्वानों की पुस्तकों में भी अटियाँ कम नहीं रहती हैं यह भी केवल प्रेस की ही नहीं पर प्रकाशित करवाने वालों की भी घटियाँ बहत रह जाती है इसलिये ही सो कहा जाता है कि यस्थ मनुष्य हमेशा भूल का पात्र हुभा करते हैं। उपकेश गच्छाचार्यों द्वारा मन्दिर मूर्तियों की प्रतिष्ठा ... १५३३ www.jainelibrary.org Annapurnwran wwwwww Jain Education International For Private & Personal Use Only

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