Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi

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Page 839
________________ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास ] [मुख्य २ घटनाओं का समय बंदर ८ रांदेर बन्दर ६ घणदीव बंदर १० सुरत बन्दर ११ श्रीसाइ बन्दर १२ ठाणा बन्दर इन बन्दरों में करोड़ों का माल आता जाता था जैसे एडन, गौवा, जाउल, अबिसिनिया, अफ्रिका, मलबार, पेगू, सिंहलद्वीप, ईरान, ईराक, अबस्तान, चीन, जापान, सुमित्रा, जावा, काबुल, खंदार इत्यादि । १५ परमाईन् राजा कुमारपाल की आज्ञा से १८ देशों में जीवदया पलती थी १ गुर्जर २ लाट ३ सौराष्ट्र ४ सिन्ध ५ सौवीर ६ मरुधर ७ मेपाट ८ मालवा सपादल ज्ञ १० भंभेरी ११ कच्छ १२ ऊच...१३ जेलंधर १४ काशी १५ आभीर १६ महाराष्ट्र १७ कोकण १८ करणाटदेश इत्यादि । १६ पाहाड़ मंत्री ने शत्रुञ्जय के चौदहवें उद्धार में २६७००००० रु० व्यय किये और श्री गिरनार की पाज बन्धाने में २५७००००० रुपये खर्च किये और राजा कुमारपाल ने ६३००००० द्रव्य व्यय किया। १७ खेमो देदाणी हाडाला ग्राम में रहता था जिसने एक दुकाल को सुकाल बनाया जिसके लिये उसको १२ ग्राम और शाहपद बादशाह ने इनायत किया। १८ कच्छ भद्रेश्वर का जबडुशाह ने सं० १३२-१३-१४-१५ लगेतर दुकाल पड़ा जिसमें साधारण जनता ही नहीं पर राजा महाराजा और बादशाह भी गरीबों के लिये संचा हुमा धान गरीब बनकर लेगये । १६ श्री शत्रुञ्जय तीर्थ के १६ उद्धार-१ भरत चक्रवर्तक २ दंडवीर्य राजा का ३ ईशानेन्द्र ४ महेन्द्र ५ ब्राह्मेन्द्र ६ चमरेन्द्र ७ सागरचक्रवर्ति ८ व्यन्तरेन्द्र चन्द्रयश राजा का १० चक्रधर राजा ११ रामचन्द्र १२ पाण्डव १३ जावा १४ मन्त्री बाहड़ १५ समरसिंह १६ कर्माशाह यह तो बडे उद्धार हैं छोटे उद्धार तो असंख्य हुए। २० श्री शत्रुञ्जय तीर्थ की यात्रार्थ पाने वालों के जानमाज की रक्षाणार्थ गोयल राजपूतों को रखे जिनको प्रत्येक गाड़ी के दो दाई पाने के पैसे दिये जाते थे पर सं० १८७८ में मुकरड़े ४५००) किये थे बाद सं० १६१६ में १००००) तत्पश्चात् १६४२ में १५०२०) बाद सं० १९८३ में यात्रा बन्ध रखी और सं० १९८४ में ६००००) देने का फैसला सरकार ने दिया करार ३५ वर्ष का है। यह तो एक नोट बुक की बातें हैं शेष १२ नोट बुकों की बातें किसी समय पुनः लिखी जायगी। नोट-निम्न लिखित बातें भूल से रह गई थी वे यहाँ पर लिखी जा रही हैं। १ राजा श्रेणिक ने भगवान के पास जैन धर्म स्वीकार किया २ मृगावती राणी और जयन्तिबाई की दीक्षा तथा अानन्द श्रावक को श्रावक के ब्रत दिये ३ राजगृह नगर में धन्ना शालिभद्र सेठ की दीक्षा ४ विनभय पाट्टण के राजा उदाई को दीक्षा दी ५ बनारसी का गाथापति चूजनीपिता तथा सूरादेव सस्त्रियों के साथ श्रावक ब्रत लिये तथा आलंबिया नगरी में पोगाल सन्यासी को दीक्षा दी बहुतों ने ब्रत लिये। ६ राजगृहनगर में राजा श्रेणिक ने दीक्षा की उद्घोषणा करवाई नंदासुनंदादि राजा श्रेणिक की राणियों ने अपने पुत्रों के साथ दीक्षा ली तथा आर्द्र कुमार और गोसालादि का सम्बाद । उपरोक्त घटना समय मैंने कई ग्रन्थों पट्टावलियों के आधार पर लिखना प्रारम्भ किया था पर अजमेर से हमारा विहार होगया और कैसरगंज में हम ठहरे थे, वहाँ सब पुस्तकों का साधन पास में न होने से ऊपर लिखे समय में कुछ त्रुटियों रह: जाने का संभव है। नथा कहीं कहीं ठीक समय न मिलने से पूर्वापर समय को देख कर अनुमान से भी समय लिखा गया है इससे भी कोई स्थान पर गलतियें रह गई हो तो सज्जन समुदाय ठीक सुधार कर पढ़ें। यदि विहार से निवृति मिलने पर साधन मिल गये तो मिलान कर यदि गलतियाँ होंगी तो सुधार कर दिया जायगा ? ऐसी वर्तमान भावना है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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