Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi

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Page 832
________________ भगवान् पार्थनाथ की परम्परा का इतिहास ] [ मुख्य २ घटनाओं का समय १४० १४६ १५० वर्ष युगप्रधान दुर्बलिकापुष्प सूरि का स्वर्गवास , श्रेष्टि पुत्र चन्द्रनागेन्द्र निवृति और विद्याधर की दीक्षा , आचार्य यक्षदेवसूरि ने दुष्काल के अन्त सोपारपट्टन में भागम बांचना दी आचार्य वनसेन सूरि का पद त्याग चन्द्रनागेन्द्रादि चारों मुनियों को आचार्य पद प्रतिष्ठित किये यक्षदेवसूरि ने , श्राचार्य यक्षदेवसूरि का पद त्याग और कक्कसूरि गच्छ नायक १५० १५३ १५७ १७ १६७ १६८ २०२ २०२ २०२ २०२ २०५ २१८ २१६ २२२ २३० श्राचार्य कक्कसूरि का पद त्याग और देवगुप्तसूरि गच्छ नायक आचार्य देवगुप्तसूरि का पद त्याग और सिद्धसूरि गच्छ नायक , आचार्य चन्द्रसूरि से कोटीगच्छ का नाम चन्द्रकुल या चन्द्र गच्छ हुआ राजा कनकसेन ने वीरपुर नामक नगर को श्राबाद किया आचार्य सिद्धसूरि का पद त्याद श्रा० रत्नप्रभसूरि गच्छ नायक श्राचार्य जजापूरि ने सत्य पुरी के मन्दिर की प्रतिष्ठा करवाई अदित्यनगर गौत्र से चोरड़िया शाखा निकली __ मथुरा में प्राचार्य रकंदिल की आगम वांचना एवं स्वर्गवास , मथुरा का ओसवंश पोलाक ने विवरण सहित आगम लिखवाये , भीनमाल नगर में अजितदेवराज का राज और म्लेच्छों का आक्रमण प्राचार्य सामन्तभद्रसूरि ने बन में रह कर तप करने से चन्द्र गच्छ का बनवासी गच्छ नाम आचार्य रत्नप्रभसूरि का पद त्याग और यक्षदेवसूरि गच्छ नायक युगप्रधानाचार्य नागहस्तिसूरि का स्वर्गवास प्राभानगरी का सेठ जगा शाह ओसियां में आकर महोत्सव कर याचकों को दान दिया श्राचार्य रविप्रभमूरि ने नारदपुरी में नेमि चैत्य की प्रतिष्ठा करवाई आचार्य यज्ञदेवसूरि का पद त्याग भौर ककसूरि गच्छ नायक आचार्य प्रद्योम्नसूरि महान् प्रभाविक आचार्य हुए ,, कपूरि का पद त्ताग और देवगुप्रसूरि गच्छ नायकाचार्य युगप्रधानाचर्य [रोगोपद्रव की शान्ति की] आचार्य मानदेवसूरि जिन्होंने नारदपुरी में रह कर लघुशान्ति बना तक्षशीला का उपकेशपुर के श्रेष्टि सारंग को सुवर्णरसायण प्राप्त हुआ । श्राचार्य देवगुप्तसूर का पद त्याग और सिद्धसूरि गच्छ नायक प्राचार्य मानतुंगसूरि जिन्होंने भक्ताम्बर स्तोत्र बना कर राजा हर्षदेव को जैन बनाया प्राचार्य सिद्धसूरि का पद त्याग और रनाभसूरि गच्छ नायक श्राचार्य वीरसूरि ने नागपुर में नेभि चैत्य की प्रतिष्ठा करवाई - आचार्य रत्नप्रभसूरि का पद त्याग और यज्ञदेवसूरि गच्छ नायक , आचाये यक्षदेवसूरि का पद त्याग और ककसूरि गच्छ नायकाचार्य श्राचार्य जयानन्दसूरि , युगप्रधानाचार्य सिंहसूरि ( ब्रह्मद्वीपी शाखा के) २३५ २५८ २६० २७८ २८० २८१ ३८२ २९० २६८ ३०० ३३६ ३५३ www Jain Education International For Private & Personal Use Only १५५६ www.aimembrary.org

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