Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi

View full book text
Previous | Next

Page 835
________________ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास ] प्राग्वट नानग पाटण का दंडनायक प्राग्वट नानग का पुत्र लेहरी राजा की ओर से हस्तियों की खरीद के लिए विदेश गया वनराज चावडा ने पंचासरा पार्श्वनाथ के मन्दिर की प्रतिष्ठा करवाई आचार्य भट्ट सूरि की दीक्षा सिद्धसेनाचार्यों के हाथों से ८०२ ८०२ ८०५ ८०७ ८१० ८१४ ८१५ ८१५ ८२६ ८३४ ८३४ ८३४ ८३७ ८५४ εξε ६०० ६१५ ६१५ ६३३ ६५२ ६६४ ६६५ ६७३ ६७५ ६६५ ६६६ ६६८ १०११ १०११ १०२४ १०२५ १०२६ १०२६ १०३३ १०४२ १०४५ १०४= "" Jain Equ "" "" "" "" " " 39 29 "3 35 "" 22 "" 29 "" 39 "" " "" "1 " 99 "" " "" 22 "" 35 "" "" 99 " 22 " "" "" राजकुँवार श्रम और मुनि बप्पभट्टि को भेट १५६२nternational भट्ट को हस्ती पर बैठा कर राजा श्राम ने सम्मेलन किया मुनि भट्ट को सूरि पद राजा आम के आग्रह से चम्पाशाह पाटण के मन्त्री ने चम्पानगर बसाया मुख्य युगप्रधान संभूति विजय का स्वर्गवास शंकराचार्य और कुमारेल भट्टका दक्षिण में मिलाप आचार्य उद्योतन सूरि ने कुवलय माला कथा लिखी जावलीपुर में बत्सराज का राज आचार्य ककसूर का पद त्याग- देवगुप्तसूरि गच्छनायक द्वासंधान काव्य का कर्त्ता पं० धनंजय हुए [ मुख्य २ घटनाओं का समय प्रधानाचार्य मंदर संभूति हुए कन्नौज में राजा भोज का राज जिसने जैन धर्म की महान् उन्नति की प्रतिहार राजा कक्कने जैन मन्दिर बना कर धनेश्वर गच्छ वालों को सोंपा शिलालेख कृष्णर्षि के शिष्य जयसिंहसूरि ने उपदेशमाला बनाई शीलागाचार्य ने आगमों पर टीकाएँ बनाई आचार्य सिद्धसूरि का पद त्याग और कक्कसूरि गच्छ नायक यशोभद्रसूरि ने मालानी प्रांत से जैन मन्दिर उड़ा कर नारडाई में लाये यशोभद्रसूरि ने चौरासी वादकर वादियों को पराजय किया हड़ी नगर के राजा विदग्धराज के बनाया जैन मन्दिर का शिलालेख आचार्य विजयसिंह सूरि जिन्होंने भुवनसुन्दरी कथा लिखी थी आचार्य भट्टसूरिका गोपगिरी में स्वर्गवास हड़ी का राजा विदग्धराज के पुत्र मम्मट ने मन्दिर को कुछ दान दिया पाटण में सोलंकी मूलराज का राज्याभिषेक उपकेशपुर के मन्दिर के शिलालेख तथा १०१३ की प्रशस्ति शिलालेख आचार्य कसूर का पदत्याग और देवागुप्तसूरि गच्छनायक पद यशोभद्रसूरि ने पांचरूप बना कर एक साथ पांच नगरों में प्र० की शोभन मुनिजी ने जिनशतक पर टीका रची तक्षशिला का नाम बदल कर गजनी हुआ धनपाल कवि ने देशी नाम माला बनाई आचार्य देवगुप्त सूरिका पद त्याग और सिद्धसूरि गच्छनायक आचार्य पार्श्वनागसूरि ने आत्मानुशासन की रचना की ओसियां के मन्दिर में तोरण पट का शिलालेख आचार्य अभयदेवसूरि की दीक्षा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842