Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi

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Page 822
________________ भूल सुधार पद्मप्र यह बात तो सर्व सम्मतसी है कि आचार्य रत्नप्रभ सूरि जिस समय मरूधर में पधारे थे उस समय मारवाड़ में सर्वत्र नास्तिक-तांत्रिक एवं वामर्गियों के अखाडे जमे हए थे अर्थात मरुधर में सर्वत्र उन लोगों का ही साम्राज्य था जैन धर्म का तो नाम निशान तक भी नहीं था यही कारण था कि उस समय रत्नप्रभसूरि तथा आपके मुनियों को सैकड़ों कठिनाइयों एवं परिसहों को सहन करना पड़ा था और शुद्ध आहार पाणी के अभाव दो दो चार चार मस तक भूखे प्यासे भी रहना पड़ाथा । फिर भी उन महान उपकारी पुरुषों ने उन परिसह-कठिनाइयों की सदन करके भी वहाँ के मांस मदिग एवं व्यभिचार सेषित राजा प्रजा और लाखों वीर क्षत्रियों की शुद्धि कर जैन धर्म में दीक्षित कर एक नया और विलकुल नया काम किया था इससे भी पाया जाता है कि मरुधर में रत्नप्रभसूरि पाये थे उसके पूर्व न तो मरूधर में किसी मुनियों का बिहार हुआ था और न वहाँ जैनधर्म पालन करने वाला एक मनुष्य भी था। अब हम यह देखेंगे कि मरूधर जैन धर्म विहीन था वह सम्राट सम्प्रति के पूर्व था या बाद में ? इसके लिये यह विचार किया जासकता है कि सम्राट सम्प्रति ने मरुधर के पड़ोस में आया हुआ आवंती प्रदेश में रहकर भारत में सर्वत्र जैनधर्म का प्रचार करवाया तथा सवालाख नये मन्दिर एवं सवाकरोड़ नयी मूर्तियों की प्रतिष्टा करवाइ थी उस समय मरुधर जैन धर्म से वंचित तो किसी हालत में नहीं रह सका हो-मारवाड़ में कई स्थानों पर सम्राट सम्प्रति के बनाये हुए मन्दिर मूर्तियें विद्यमान हैं जैसे नारदपुरी ( नाडोल ) में भ० र सम्राट सम्प्रति का बनाया कहा जाता है यर्जनपरी (गांगाणी) में भी सम्राट सम्प्रति ने सुफेद सुवर्णमय मूर्ति की प्रतिष्ठा प्राचार्यसुहस्तसूरी के कर कमलों से करवाइ थी तथा अन्य भी कइ स्थानों पर सम्राट् सम्प्रति के बनाये मन्दिर मूर्तियों का होना पाया जाता है । जब सम्राट ने लाखोमन्दिर मूर्तियें स्थापना करवाइ तो थोड़ी बहुत मरुधर में स्थापित करवाइ हों तो इसमें सन्देह करने जैसी कोई बात ही नहीं है अतः सिद्ध होता है कि सम्राट के समय मरुधर में जैन धर्म का प्रचार था। शायद कोई भाई यह सवाल करे कि सम्राट सम्प्रति के बाद में भी बत्रसूरि के समय द्वादश वर्षीय दुकाल पड़ा था अतः सम्प्रति के बाद किसी समय मरुधर में जैन धर्म का प्रभाव और वाममार्गीयों का सर्वत्र साम्राज्य जम गया हो ? उस समय या बाद में रत्नप्रभसूरि मरुधर में आकर महजन संघ की स्थापना रूपी नया कार्य किया हो तो यह बात संभव हो सकती है। बज्रसूरि का सगय विक्रम की दूसरी शताब्दी का है और उस समय मरुधर में जैन धर्म होने के तथा जैन श्रमणों का मरुधर में विहार होने के कई प्रमाण मिलते हैं जैसे कोरंटापुर के महावीरमन्दिर में एक देवचन्द्रोपाध्याय रहते थे और वे चैत्यवासी एवं चैत्य की व्यवस्था भी करते थे उस समय सर्वदेवसूरि नाम नाम के सुविहित आचार्य बनारसी से शत्रुञ्जय जाने के लिये बिहार किया वे क्रमशः कोरंटपुर में आये और थाप अपने सदुपदेश से देवचन्द्रोपाध्याय का चैत्यवास छोडा कर एवं उनको आचार्य पद देकर उपविहारो बनाये । इसी प्रकार नारदपुरी में आचार्य प्रद्योनसूरिआये और वहाँ के श्रेष्टि जिनदात के पुत्र मानदेव को दीक्षा दी वे मानदेवसूरि होकर नारदपुरी के नेमि चैत्य में स्थिरवास कर रहते थे जिन्होंने लघुशान्ति बनाकर तक्षशीला के उपद्रव्य को शान्त किया। इससे पाया जाता है कि विक्रम की दूसरी शताब्दी में भी मरुधर में जैनधर्म मौजूद था । कोरंदपुर में जो महावीर का मन्दिर था वह मन्दिर शायद आचार्य रत्नप्रभसूरि ने दो रूपबना कर एक उपकेशपुर में और दूसरा कोरंटपुर में महावीर मन्दिर को प्रतिष्ठा करवाई थी वही मन्दिर हो ! कारण उनके बाद किसी ने कोरंटपुर में महावीर मन्दिर की प्रतिष्ठा करवाइ हो ऐसा प्रमाण देखने में नहीं आया अतः वह मन्दिर उसी समय का हो तो भी कोई असंभव जैसी बात नहीं है खैर । कुछ भी हो अपने तो विकम की दूसरी शताब्दी में भरूबर में जैन धर्म का अस्तित्व देखना है वह सिद्ध हो गया बाद हूणों के राज समय का प्रमाण मिलता है कि मिहिरकुल के अत्याचारों के कारण मरुधर के कई wwwwwwwwwwwwwwwwwww ranwwwwwnewwwwwww १५४8 www.janorary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only

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