Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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वि० सं० १०७४-११०८]
[ भगवान् पार्थनाय की परम्परा का इतिहास
मन्दिर बनकर तैयार हो गया तब सूरिजी को बुलवाकर रावजी ने बड़े ही समारोह के साथ प्रतिष्ठा करवाई। इस प्रतिष्ठा के समारोह से इतर धर्मानुयायियों पर पवित्र जैन धर्म के संस्कारों का ऐसा सुदृढ़ प्रभाव पड़ा कि उन लोगों ने कई समय के मिथ्यात्व का वमन कर परम पावन जैनधर्म अङ्गीकार कर लिया।
राव आभड़ की संतान प्रोसवंश में आभड़ जाति के नाम से विख्यात हुई । इस जाति का वंशावलियों में बहुत विस्तार मिलता है पर मैं इनकी वंशावली संक्षिप्त रूप में ही उद्धृत करता हूँ-तथापि
१ राव आभड़
२ जेतो
खेतो
पाबू
नांनग
रामदेव
साहो पेथो दुर्गों
पातो दलपत सांगो जोगड़
जालो नाथो नारायण
३ हानो जामाल दास्थ करावा
३ हानो
जामाल
दशरथ
रुषो
पातो
हरदेव
मालो
४ बाघो
भूतो
लाढूंक
सांगण
मांधू गोरख नोधण मालो
(शत्रुखय का संघ निकाला)
५ राजपाल
सेजपाल
पृथ्वीधर
(महावीर मन्दिर) ७ धरण करण खेतो मधो जैतो
इसके अलावा प्रत्येक व्यक्ति की वंश परम्परा की रूपरेखा पृथक् २ बतलाई जाय तब तो बहुत ही विस्तार हो जाता है। अतः ग्रन्थ बढ़ जाने के भय से इसको इतना विशद रूप न देकर सामान्य रूप में नमूने के बतौर ही लिखना हमारा ध्येय है। अपनी २ जाति के उत्कर्ष को चाहने वाले उत्साही व्यक्ति अपनी परम्परा का विशद इतिहास जन-समाज के सम्मुख प्रत्यक्ष रखकर जातीय उन्नति में हाथ बटावें। इस प्राभड़ जाति के शूरवीर दानवीरों ने अनेक स्थानों पर जैन मन्दिर बनवाये। कई स्थानों से तीर्थों की यात्रार्थ संघ निकाले, कई दुष्कालों में स्थान २ पर दानशालाएं उद्घाटित की इत्यादि अनेक शासन-प्रभावक कार्य किये जिनका पृथक् २ वर्णन लिखा जाय तो निश्चित ही एक स्वतन्त्र ग्रन्थ बन जाता है। मैं केवल मेरे पास आई हुई वंशावलियों में वर्णित कार्यों की जोड़ लगाकर यहां आंकड़े लिख देता हूँ। १४४४
राव प्रामड़ का वंशवृक्ष
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