Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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आचार्य देवगुप्तसरि का जीवन ]
[ओसवाल सं० १५०८-१५२८
दुर्जण ने
लुबा ने जुजार ने
५-चित्रकोट के तोडियाणी , भोपा ने ६-उज्जैन के समदडिया ,
भोमा ने ७-चंदेरी
पोकरण ८-मथुरा
आर्य
कचरा ने ६-चन्द्रावती
प्राग्वट १०-लाव्यपुर मंत्री जाति के
सम्मेत शिखर का ११-बनारसी
श्रेष्टि
कुमार ने १२-पद्मावती के श्रीमाल ,, रावण ने
शत्रुञ्जय का संघ निकाला १३-रत्नपुर के छाजेड़ , भोमा ने १४-राजपुर के चोरडिया , धरण ने १५-नागपुर के समदड़िया , जैतसी ने १६-नारायणगढ़ के डिडु जाति के शाह रत्नसी ने सं० १११४ का दुकाल में करोड़ द्रव्य व्यय किये। १७-चन्द्रावती के प्राग्वट जाति के भाण ने सं० ११२२ का दुकाल में १८-देवकीपाटण के श्रीमाल जाति के शाह भूता की पुत्री सिणगारी ने तालाब में एक लक्ष द्रव्य लगा। १६-बेनातट के सचेती नरसी की माता रुकमणी ने एक वावड़ी बन्धाने में लक्ष द्रव्य लगाया। २०-वीरपुर का श्रेष्टि जाति के मंत्री राघो युद्ध में काम आया उसकी स्त्री सती हुई। २१-उच्चकोट का आर्य वीरम युद्ध में २२-उपकेशपुर का लघु श्रेष्टि थिरो ,, २३-नागपुर का चोरडिया पेथो , २४-नारदपुरी का प्राग्वट अमरो चार चौरासी घर प्रांगण बुलाकर पांच २ सुवर्ण मुद्रा लाद में दी। २५-शिवपुर श्रीमाल शूरा ने सात वड यज्ञ (जीमणवार ) कर संघ पूजा में सुवर्ण थाली दी। २६-चित्रकोट पोकरणा कुम्मा ने चौरासी न्याति को अपने वहाँ बुलाकर सुवर्ण की कटियों पहरावणी में दी।
उनपचासवें पट्ट पारखवर, देवगुप्त सूरीश्वर थे ।
सिद्धगिरी का संघ साथ में, मैंसाशाह बग्रेश्वर थे । अपमान किया माता का गुर्जर, बदला जिसका जीना था।
उद्योत किया सूरि शासनका, अमरनाम शुभ किना या ॥ इति भगवान पार्श्वनाथ के उनपचासवें पट्ट पर महान् प्रतिभाशाली देवगुप्तसूरीश्वर आचार्य हुए।
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सूरिजी के शासन में तीर्थों के संपादि
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