Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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वि० सं० ११२८-११७४
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
५-खींवसर, मूल चौहान राजपूत थे कोरंटगच्छीय आचार्य ककसूरि ने वि० सं० १०१६ में प्रतिबोध देकर जैन बनाये और खींवसर ग्राम के नाम पर वे लोग खींवसरे कहलाए हैं। इनके पूर्वजों ने अनेकों मदिर बनवाये कई बार तीर्थों के संघ निकाले कई बार दुष्कालों में देशवासी भाइयों एवं पशुओं के प्राण बचाए इत्यादि ।
६-मिनी यह भी चौहान राजपूत थे इनके पूर्वजों ने भी जैनधर्म स्वीकार करके जैनधर्म की बड़ी २ सेवाएं की है। इस जाति के नामकरण के लिये वन्शावलियों में ऐसी कथा लिखी है कि इस जाति में एक सहजपाल नाम का धनी पुरुष हुआ। वह किसी व्यापारार्थ द्रव्य लेकर जा रहा था कि रास्ते में कई हथियार बन्द लुटेरे मिल गये । जब सहजपाल को लूटने लगे तो सहजपाल पागलसा बन गया था पर उसको बुद्धि ने सिखाया और बोला ठाकुरों ! आप लोग बिना हिसाब धन क्यों ले रहे हैं। हां, आपको धन की जरुरत है तो खत तो मंडवालो, सरदारों ने कहा कि तुम्हारी ऐसी ही इच्छा है तो तुम अपना खत मांडलो । इस हालत में शाह ने कागद बही निकाल कर ठाकुरों के नाम खत लिख लिया और कहा कि ठाकुरों इस खत में किसी की साख डलवाने की सख्त जरूरी है। ठाकर ने कहा इस जंगल में किस की: जाय ? शाह ने कहा कि साख बिना तो खत किस काम का ? ठाकुरों ने कहा इस लुंकड़ी की साख डालदें। ठीक शाह ने ऐसा ही किया । ठाकुर माल ले गये । शाह ने सबकी जोड़ लगाई तो करीब ५०००) रु० का माल था सेठजी अपने मकान पर आगये । कोई दो चार वर्ष गुजर गये। बाद में एक समय वे ही ठाकुर ग्राम में आये। शाह ने पल्ला पकड़ कर कहा ठाकुरों अभी तक मेरे खत के रुपयो वसूल नहीं हुए ठाकुर ने कहाकौनसे रुपये ? शाह ने कहा-क्या आप भूल गये इत्यादि । आपस में तकरार होगई तब दोनों राज में गये। शाह ने जोर-जोर से कहा कि देख लीजिये इन ठाकुरों ने हमसे द्रव्य लेकर खत लिख दिया और इस खत में मिन्नी की साख भी डलवाई है इस पर ठाकुर बोले-शाहजी आप राज कचहरी में भी झूठ बोलते हैं। मैंन मिन्नी की साख कब डलवाई थी? शाख तो डलवाई थी लुंकड़ो की इस पर न्यायाधीश ने समझ लिया कि ठाकुरों ने रकम जरुर ली है और शाह ने भी बड़ी बुद्धिमत्ता की है कि लुंकड़ी के स्थान पर मिन्नी का नाम लेकर ठाकुरों से सच बोला ही लिया । न्यायाधीश ने कहा ठाकुरों अापने लुंकड़ी की साख डलवाई तब भी सेठजी से रुपये तो जरूर लिये थे इस पर ठाकुरों को सेठजी की रकम का फैसला करना पड़ा उसी दिन से सेठजी की संतान मिन्नी नाम से प्रसिद्ध हुई । समयान्तर तो सेठजी की जाति ही मन्न होगई है।
इसी मिन्न जाति में भी बहुतसे दानी मानी नर रत्न होकर कई मंदिर बनाये कई संब निकाल कर यात्रा की और साधर्मी भाइयों को सवर्ण मोहरों को पहरावणी दी। कइयों ने दुष्कालों में लाखों करोड़ों का द्रव्य व्यय कर यशः कीर्ति उपाजेन की। खजांची, रुपाणी, लाटुथा, संघी आदि कई जातियां भी इसी मिन्ना गात्र को शाखाओं में से निकली।
इसी प्रकार सूरिजी ने पंवार मागडादिकों को मांसाहारी आदि व्यसन छुड़ाकर जैन बनाया। आपने धर्म कमों में बहुत भाग लिया। अतः आपकी संतान मांण्डोत के नाम से पहचानी जाती है।
____ इसी प्रकार ४८ वें पट्ट पर आचार्य नन्नप्रभसूरि भी बड़े ही प्रतिभाशाली और महाप्रभाविक आचार्य हुए हैं उन्होंने भी हजारों अजैन क्षत्रियों को जैनधर्म में दोक्षित कर महाजन संघ को वृद्धि की थी उनके बनाये हुये गोत्रों के केवल नाम ही लिख दिखे जाते हैं जैसे-सुद्येचा, कोठमी, कोटड़िया, कपुरिया, धाकड़, धूवगोता, नागगोला, नार, सेठिया, धरकट, मथुरा, सोनेचा, मकबाण, फितूरिया, ख बिया, मुखिया, डागलिया, पांडु. गोता, पोसालेचा, बाकीलिया, सहाचेती, नागणा, खीमाणदिया, बडेरा, जोगणेचा, सोनाणां, आड़ेचा, चिंधड़ा, निबाड़ा इस प्रकार कोरंट गच्छाचार्यों की बढ़ी में कुल ३६ जातियों की उत्पत्ति तथा इन जातियों के बनाये हुये मन्दिरों की प्रतिष्ठा तथा तीर्थयात्रार्थ निकाले हुए संघ एवं साधर्मी भाइयों को दी हुई पहरावणी, १४६८
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