Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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वि० सं० ११२८-११७४ ]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्पग का इतिहास कारण एक गच्छ के श्रावकों की वंशावलियों दूसरे गच्छ वाले मांडने लग गये हैं।
२-अंचल गच्छाचार्यों में आचार्य जयसिंहसूरि, धर्मघोषसूर, महेन्द्रसूरि, सिंहप्रभसूरि, अजित देवसूरि, आदि बहुत प्रभाविक आचार्य हो गये हैं उन्होंने भी हजारों अजैनों को जैन बना कर महाजन संघ की खूब उन्नति की थी। आगे चल कर उन नूतन श्रावकों की भी कई जातियाँ बन गई जैसे कि १-गाल्ह, २-आथगोता, ३-बुहड़, ४-सुभद्रा, ५-बोहरा, ६-सियाल, ७–कटारिया, कोटेचा, रत्नपुरा बोहरा, ८-नागड़गोला, :-मिटडिया बोहरा, १०-घरवेला, ११–वडेर, १२--गाँधी, १३-देवानन्दा, १४-गोतमगोता, १५-डोसी, १६-सोनीगरा, १७-कोटिया, १८-हरिया, १६-देडिया, २०-बोरेचा। इन जातियों की उत्पत्ति वगैरह का सब हाल पं० हीरालाल हंसराज जामनगर वालों के पास है जिसमें कितनेक हालात तो आंचलगच्छ की बड़ी पट्टावली में छप भी गये हैं । संक्षिप्त जैन गोत्र संग्रह नामक पुस्तक में भी छपा है।
३-मलधारगच्छ-इस गच्छ में भी पूर्णचन्द्रसूरि, देवानंदसूरि, नारचन्द्रसूरि, देवानंदसूरि, नारचन्द्रसूरि, तिलकसूरि आदि महान् प्रतापी आचार्य हुए हैं। इन महापुरुषों ने भू भ्रमन कर हजारों जैनेत्तरों को प्रतिबोध देकर श्रावक बनाए और उस समय से ही उनको महाजन संघ में शामिल मिला लिए तथा उनके साथ रोटी बेटी का व्यवहार चालु कर दिया। आगे चल कर कोई-कोई कारणों से उनकी जातियां बन गई उनके नाम निम्नलिखित हैं:
१-पगारिया, ( गोलिया कोठारी संघी), २ कोठारी, गीरिया; ४ बंब, ५ गंग, ६ गेहलड़ा, ७ खींवसरा, आदि कई जातियों की वंशावलीयों को मलाधार गच्छ के कुलगुरु लिखा करते हैं।
____४-पूर्णिमियागच्छ-इस गच्छ में भी महान विद्वान एवं प्रभाविक आचार्य हुए जिसमें चन्द्रसूरि, धर्मघोष सूरि, मुनिरत्नसूरि, सोमलितक सूरि आदि कई प्राचार्य हुए। उन्होंने भी हजारों जैनेतरों को उपदेश देकर जैनधर्मी बना कर महाजन संघ को खूब ही वृद्धि की । अागे चल कर कई-कई कारणों से उन नूनन जैनों की जातियां बनगई जिनके नाम ये हैं:
१-साढ़, २-सियाल, ३-सालेचा, ४-पूनमिया ५-मेघाणी, ६-धनेरा इत्यादि । इन जातियों की वंशावलिये पुनमिया गच्छ की पोसालों वाले लिखा करते हैं।
५-नाणावालगच्छ-इस गच्छ में भी कई प्रभाविक आचार्य हुए हैं। जिसमें प्राचार्य शांतिसूरि, सिद्धसूरि, देवप्रभसूरि वगैरह कई आचार्य हुए जिन्होंने अपने बिहार के अन्दर बहुत से अजैनों को जैन बना कर महाजन संघ की अच्छी वृद्धि की थी। आगे चल कर कई-कई कारणों से उन नूतन जैनों की भी कई जातियें बन गई जिनके नाम ये हैं:
१- रणधीरा, २-कावड़िया ३-ढढा, श्रीपति-तल्लेरा, ४-कोठारी । इनकी भी कई शाखाएं होगई इन जातियों की वंशावली वे ही नाणावाल पोशालों के कुल गुरु लिखा करते हैं।
६-सुराणागच्छ-इस गच्छ में आचार्य धर्मघोषसूरि हुए जो ऊपर लिख आये हैं आदि कई आचार्य प्रभाविक हुए हैं उन्हीं महापुरुषों ने अपने बिहार के अन्दर कई अजैनों को जैन बना कर महाजन संघ में शामिल करके उसकी खूब वृद्धि की बाद में कई करणों से अलग-अलग जातियां बन गई जैसे १-सुराणा, २-सांखला, ३–भणवट ४-मिटड़िया, ५-सोनी, ६-उस्तवाल, ७-खटोर, 5-नाहरादि जातियों की वंशावली सुराणागच्छ के महात्मा लिखते हैं । जैसे नागोर में म० गोपीचन्दजी वगैरह ।
* बंद, गंग कदरसागच्छ वाले भाचायों के प्रतियोषित होमा भी कहा जाता है। अतः इसका कारण मैं ऊपर लिख भाया है कि मन्दिरों के गोष्टिक बनाने से या वंशावलियाँ इधर उधर देने से ।
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