Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi

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Page 779
________________ वि० सं० ११२८-११७४ ] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास से उसी गच्छ वालों को अपने पूर्वजों को प्रतिबोधक मान लेते हैं और वे नूतन पोशाल वालों ने भी ऐसी कल्पित बहिये बनाली । जिसमें न तो यथावत् आचार्यों के नाम हैं न स्थान का पता है न जिस मूल पुरुष को उपदेश दिया उनका ही ठिकाना है अर्थात् सत्य इतिहास पर ऐसा पर्दा पड़ जाता है कि जिससे सत्यवस्तु शोध कर निकालना बड़ा मुश्किल बन जाता है जिससे कई जातियों का २४०० वर्ष जितनी प्राचीन होने पर भी उनको ८००-६०० वर्षे जितनी अर्वाचीन ठहरा दी जाती है जब उन जातियों के पूर्वजों ने प्राचीन अर्वाचीन के बीच का समय १५०० वर्ष जितना समय में उन्होंने देश समाज एवं धर्म की सेवार्थ करोड़ों रुपये एवम् अपने प्यारे प्राणों का बलिदान किया था, उनका नाम निशान भी नहीं मिलता है। एक अंग्रेज विद्वान ने ठीक ही कहा है कि जिस राष्ट्र, समाज एवं जाति को नष्ट करना हो तो पहले उन सबका इतिहास को नष्ट करदें वे राष्ट्र समाज जाति स्वयं नष्ट हो जायंगे कारण जब तक अपने पूर्वजों के गौरव पूर्ण कार्य का खून अपनी नसों में नहीं उबलेगा तब तक वे अपनी उन्नति के पथ पर कभी चलेंगे ही नहीं जब जिस व्यक्ति को अपने पूर्वजों के किये हुए गौरव पूर्ण कार्यों का थोड़ा भी ज्ञान नहीं है वे तो यही समझते हैं कि हमारे पूर्वज हमारे जैसे ही होंगे और जैसे हम हमारी जिन्दगी को व्यतीत करते हैं वैसे ही उन्होंने भी अपनी जिन्दगो व्यतीत की होगी इत्यादि । जैसे एक व्यक्ति के पूर्वजों ने एक मंदिर बनाया है तथा किसी अत्याचारियों से अपनी बहन बेटियां एवं धनजन की रक्षार्थ युद्ध कर प्राणार्पण कर दिया उस स्थान पर चबूतरा एवं छत्री बनी है पर उस व्यक्ति को इस बात का थोड़ा भी ज्ञान नहीं है वहाँ तक यह मन्दिर व छत्री, चबूतरा उसकी नज़रों के सामने होने पर भी उस मन्दिर छत्री के लिये उसके हृदय में थोड़ा भी स्थान नहीं है पर कभी पुराने पोथे संभालने में यह किसी अन्य प्रकार से उसको बोध हुआ कि यह मन्दिर या छत्री हमारे पूर्वजों की अमर कीर्ति है तब उसके हृदय में अपने पूर्वजों के गौरव का स्थान अवश्य बन ही जायगा और जहां तक बन सकेगा वह उनकी बेअदबी नहीं होने देगा और उनका जीर्णोद्धारादि कार्य कर उनको चिरायु बनाने की अवश्य कोशिश करेगा। यह एक इतिहास का अपूर्व चमत्कार है। मेरे खयाल से तो इस महाजन संघ की पतनदशा का मुख्य कारण यही है कि वे अपने पूर्वजों के उज्ज्वल अतीत के इतिहास को भूल गये हैं। आज हम अपनी नजरों से देख रहे हैं कि कई जातियां हमारे से हजार दर्जे पतन की चरम सीमा तक पहुंच गई थीं और उनके उत्थान की किसी प्रकार से उम्मेद नहीं थी पर उनके उपदेशकों ने साधारण जनता तक को इतिहास का उपदेश देकर उनको घोर निंद्रा से जागृत किया जिससे वे स्वल्प समय में ही अपनी उन्नति के पथ पर अग्रेश्वर हो गये हैं। अतः महाजन संघ को भी चाहिये कि वे अपने पूर्वजों के गौरव पूर्ण इतिहास से अवगत हो उन्नति के पथ का अवलंबन करें । मेरा यह परिश्रम केवल महाजन संघ को अपने पूर्वजों के इतिहास का बोध करवाने मात्र का है इत्यादि । पूज्याचार्य सिद्धसुरिजी ने अपने ४६ वर्षों के शासन में मुमुक्षुओं को दीक्षाएँ दी १-शंखपुर कनोजिया जाति के शाह माल्ला ने सूरिजी के पास दीक्षा ली २-आशिकादुर्ग करणावट पुनड ने ३-हर्षपुर आर्य __ " " जोगड़ ने ४-मुग्धपुर छाजेड़ ५-भावनीपुर राखेचा जगमाल ने ६-नागपुर चोरडिया मोकल ने ७-पोलसणी खुमाण ने १५०६ For Private & Personal आचार्यश्री के जीवन में भावुकों की दीक्षाrary.org श्रेष्टि wwwww Jain Education International

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