Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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वि० सं० १०७४-११०८]
[भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
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पन्ना ने सुखा ने
४-जाबलीपुर के भूरंट कर्मा ने
श्री शत्रुञ्जय का संघ निकाला ५-चन्द्रावती के संचेती
हरपाल ने ६-चित्रकोट
प्राग्वट माला ने ७-सोपरपट्टन के श्रीमाल खंगार ने ८-मथुरा
सालेचा नापा ने -धौलागढ़
छाजेड़
दुल्ला ने १०-पाल्दिका
श्रीश्रीमाल पोकर ने ११-वीरपुर
श्रायं साहूने १२-कोरंदपुर के कुम्भट १३-उज्जैन के रांका १४-दांतीपुर के श्रीश्रीमाल नाथा ने दुकाल में करोड़ों द्रव्य व्यय कर अन्न घास दिया। १५---विणापुर के पोकरणा बखता ने दुकाल में पुष्कल द्रव्य व्यय कर भाईयों के प्राण बचाये। १६-खेड़ीपुर के महता नहारसिंह युद्ध में काम आया उसकी पत्नी सती हई छत्री कराई। १७-चन्द्रावती के प्राग्वट दूधो युद्ध में काम आया उसकी स्त्री सती हुई। १८-राजपुर के श्रीश्रीमाल मालदेव , १६-नागपुर के गुलेच्छा समरथ , २०-पलासी के प्राग्वट रामो २१-भलासणी के आर्य धरमा की पुत्री सारी ने तालाब खुदाया जिण में पुष्कल द्रव्य व्यय किया। २२-चंदपुर के छाजेड़ भैरा की माता ने बावड़ी बनाई , २३-अर्जनपुरी के समदड़िया गौरा ने एक तालाब एक कुआ बनाया ,, ,
इनके अलावा भी सूरिजी के शासन में अनेक शुभ कार्य हुए जिनके विस्तृत उल्लेख वंशावलियों में मिलते हैं । पर स्थानाभाव यहाँ नमूना मात्र बतलाया है। बप्पनाग नाहटा जाति, जिनके वीर शिरोमणि थे ।
आठ चालीस वे पट्ट विराजे, कक्कसूरीश सुरमणि थे। भैंसाशाह का कष्ट मिटाया, कंडा. सुवर्ण बनाया था।
सिक्कचलाया वीर भैंसा ने, जिससे गदिया पद पाया था । इति भगवान पार्श्वनाथ के अडचालीसवें पट्टपर प्राचार्य कक्कसूरि महान् प्रतिभाशाली आचार्य हुए।
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सूरीश्वरजी के शासन में संचादि
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