Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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आचार्य ककरि का जीवन ]
[ोसवाल सं० १४७४-१५०८
भ्रमन करते रहे । पश्चात् क्रमशः छोटे बड़े ग्राम नगरों में होते हुए आपने भगवान पार्श्वनाथ की कल्याणक भूमि श्री बनारस की यात्रा की । श्रीसंघ के अत्याग्रह से वह चतुर्मास सूरिजी को वहीं पर करना पड़ा । चतुमासानन्तर सूरिजी ने पञ्जाव प्रान्त की ओर विहार किया। वहाँ पर आपके आज्ञानुयायी बहुत से मुनि पहिले से ही विचरण करते थे । जब आचार्य महाराज पञ्जाब में पधारे तब आपके दर्शनार्थी साधु, साध्वी एवं श्रावक श्राविकाओं के दर्शन का तांतासा लग गया। जहां २ श्राप विराजले वहां २ का प्रदेश एक तरह से यात्रा का धाम ही बन जाता। इस तरह आपने केवल दो चतुर्मास ही पञ्जाब में किये । एक शालीपुर दूसरा लव्यपुरी । लोहाकोट में आपने एक श्रमण सभा की जिसमें पञ्जाब प्रान्तीय मुनिवर्ग सब ही सम्मिलित हुए। आचार्यश्री ने तदुपयोगी उपदेश देने के पश्चात् योग्य मुनियों को योग्य पदवियां प्रदान कर उनके उत्साह में खूब ही वृद्धि की तदनन्तर सूरिजी ने सिन्ध भूमि में पदार्पण किया। प्राचार्यश्री के आगमन को श्रवण कर वहां की जनता के हप का पारावार नहीं रहा । जिस समय आप सिंध में पधारे उस समय सिंध प्रान्त में जैनधर्म का काफी प्रचार था । बहुतसे मुनि जो सिन्ध प्रान्त में विचरते थे-आचार्यश्री ककसूरि के पदार्पण के समाचारों को सुनकर कोसों पर्यन्त सूरिजी के स्वागतार्थ पधारे । सूरिजी ने भी क्रमशः एक चातुमास गोसलपुर, दूसरा डामरेल, तीसरा मारोटकोटनगर, इस प्रकार तीन चतुर्मास सिंध प्रान्त में किये और चतुर्मासानंतर सिंध के प्रायः सभी क्षेत्रों का स्पर्शन कर जनता को धर्मोपदेश दिया। वीरपुर नगर में एक श्रमण सभा की। वहां भी योग्य मुनियों के योग्यता की कदर कर योग्य पदवियों से उन्हें सम्मानित किया। तदनन्तर सूरिजी ने कच्छ भूमि में प्रवेश किया। वहां पर भी आपके आज्ञानुवर्ती श्रमणगण विचरण करते थे। आपश्री ने एक चतुर्मास कच्छ के भद्रेश्वर नगर में किया। वहां से सौराष्ट्र प्रान्त की ओर पदार्पण किया। सर्वत्र परिश्रमन करते हुए परम पावन तीर्थाधिराज श्रीशत्रुञ्जय की तीर्थ यात्रा की । जिस समय आप सिद्धिगिरि पर पधारे उस समय सिद्धिगिरि की यात्रार्थ चार पृथक् २ नगरों के चार संघ आये थे। इनमें तीन संघ तो मरुधर वासियों के और एक संघ भरांच नगर का था। स्थावर तीथों की यात्रार्थ आये हुए भावुकों को स्थावर तीर्थ के साथ ही मूरिजी रूप जंगम तीर्थ की यात्रा का भी लाभ मिल गया। मरुधर वासियों ने पूरिजी के दर्शन की बड़ी खुशी मनाई और मरुभूमि की ओर पदार्पण करने की आग्रह पूर्ण प्रार्थना की। सूरिजी ने भी क्षेत्र-स्पर्शना शब्द कह कर उन्हें विदा किया।
इस तरह कई अर्से तक आचार्यश्री ने शत्रुक्षय की शीतल छाया में रह कर निवृत्ति का सेवन किया बाद वहाँ से विहार कर सौराष्ट्र एवं लाट प्रान्त में परिभ्रमन कर वह चतर्मास भरोंच में किया। बीसवें तीर्थकर श्री मुनिसुव्रतस्वामी की यात्रा कर तत्रस्थित जन समाज को धर्मोपदेश दिया । आपश्री के चतुर्मास पर्यन्त वहां पर विराजने से धर्म का बड़ा भारी उद्योत हुआ । चतुर्मासानन्तर विहार कर कांकण की राजधानी सौपारपट्टन तक परिभ्रमन केया और वह चतुर्मास शौर्यपुर में किया। उस समय शौर्यपुर जैनियों का केन्द्र स्थान था। अतः आपके विराजने से वहाँ जिन शासन की खूब उन्नति हुई । तदनन्तर श्राप विहार करते हुए करीब पन्द्रह वर्ग के पश्चात पुनः मरुधर प्रान्त में पधारे। इन पन्द्रह वर्षों के परिभ्रमन की दीर्घ अविध में आपने १५० नरनारियों को श्रमण दीक्षा दी। हजारों मांस मदिरा सेवियों को जैनधर्म में दीक्षित कर श्रोसवंश में सम्मिलित किये। कई मन्दिर मूर्तियों की प्रतिष्ठाएं करवाई। कई वादियों को शाबार्थ में पराजित कर शासन की प्रभावना की । इस तरह आपने अपनी सकल शक्तियों के संयोग से जैन धर्म की पर्याप्त सेवा की। __ आचार्य श्री की अब नितान्त वृद्धावस्था होगई । अब आप अपनी शेष जिन्दगी मरुभूमि में ही व्यतीत करना चाहते थे । मारवाड़ी भक्त लोग भी यही चाहते थे कि सूरीश्वरजी महाराज मरुभूमि में विराज कर हम लोगों पर उपकार करते रहें। सच्ची भावना फलवती हुए बिना नहीं रहती है तदनुसार सूरीश्वरजी महाराज मरुधर में परिभ्रम न करते हुए उपकेशपुर में पधार ही गये । श्रीसंघ ने भी श्राचार्यश्री की शक्ति को जीर्ण देखसूरीश्वरजी का प्रत्येक प्रान्त में विहार
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